आमतौर पर हमारे आस-पास रहने वाले गली के कुत्तों की दशा दु:खद और चुनौतीपूर्ण होती जा रही है। अक्सर हम इन कुत्तों को वफादार होने का प्रमाण देते है, लेकिन इन कुत्तों के प्रति समाज कितना वफादार है? यह चिंतन का विषय है। आज गली के कुत्तों के सामने रोटी-पानी के अस्तित्व का संकट सामने आ रहा है। एक समय था जब हमारी संस्कृति के अनुरूप पहली रोटी गाय की एवं अंतिम रोटी कुत्ते की रखी जाती थी, लेकिन अब बदलते स्वरूप में गाय व कुत्ते की रोटी उन तक नहीं पहुंच पा रही है। बड़े-बड़े बंद मकानों में हमारा निवास हो गया है, व्यर्थ में हमारी रसोई से प्रतिदिन कई लोगों का खाना नाली में बहा दिया जाता है लेकिन एक रोटी के लिए आज गली के कुत्ते का अस्तित्व संकट में आ गया है। यह समाज के सामने चिंतन करने की अवस्था है। आखिर क्यों गली के कुत्तों से हमारी दूरी बनती जा रही है।
सही मायने में गली के कुत्ते, हमारे समाज का ही एक अभिन्न हिस्सा हैं। यह प्रतिदिन हमारी दिनचर्या में शामिल रहते हैं लेकिन समाज में इन कुत्तों की दशा अक्सर चिंता का कारण बनती है। गली के कुत्तों की दशा एक अभिव्यक्ति है जो हमारे समाज में उनकी अस्तित्व की मान्यता को दर्शाती है। प्राय: कुत्ते सड़कों पर घूमते हैं, अपनी जिंदगी को साझा करते हैं, लेकिन हमें भी चाहिए कि इनके अस्तित्व को बचाने में हम भी अपना योगदान दें। इन कुत्तों का जीवन चुनौतीपूर्ण है क्योंकि इन्हें ठीक से खाना, पानी और देखभाल नहीं मिलती है। इसके बावजूद वे येन-केन अपना अस्तित्व बचाये रखते है। समाज में गली के कुत्तों के साथ भी सही दृष्टिकोण बनाए रखना बहुत जरूरी है। हमें इनकी रक्षा करना चाहिए, स्वच्छता के लिए उनका ध्यान रखना चाहिए और उन्हें प्रेम से सम्बोधित करना चाहिए ताकि हम सामाजिक सद्भावना बढ़ा सकें। समाज के इस रवैये में मानवीयता झलकनी चाहिए।
इन कुत्तों को प्राय: विभिन्न बीमारियों, और अपनी जीवन की स्थिति की कमी के साथ संघर्ष करना पड़ता है। इसे सुधारने के लिए हमें उनकी देखभाल, खानपान, और स्वच्छता की दिशा में कदम उठाना होगा। समाज को जागरूक करने और सहायता प्रदान करने के माध्यम से हम इन कुत्तों की जीवन स्थिति में सुधार कर सकते हैं और एक उत्तरदाता समुदाय की भूमिका निभा सकते हैं। कुत्तों की स्वास्थ्य स्थिति को लेकर लाडनूं के एनथ्रोपासोण्ट्रिक विजनरी ऑगनाईजेशन संस्थान के अध्यक्ष, समाजसेवी महेशप्रकाश सांखला की टीम के नेतृत्व में नगरपालिका के साथ मिलकर इन गली के कुत्तों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए एक टीका अभियान चलाया गया, जिसके अन्तर्गत गली के सैकड़ों कुत्तों के स्वास्थ्य की देखभाल हुई, संभवत यह राजस्थान का इस प्रकार का पहला ही मामला होगा। सामाजिक संस्थाओं को चाहिए कि वे बेजुबान प्राणियों अस्तित्व पर मंडराते संकट से राहत के लिए भी जागरूकता अभियान चलाये।
इसके अलावा समाज के प्रत्येक व्यक्ति को इन बेजुबान प्राणियों की रक्षा के प्रति समर्पित होना पड़ेगा। जरूरत है कि इन कुत्तों के आवास, खाना-पानी की समुचित व्यवस्था के प्रति ध्यान दे तो इस वफादार प्राणी के अस्तित्व पर आये खाना-पानी के संकट की पूर्ति कर सकते है। इन कुत्तों को आहार और पानी की कमी से जूझना पड़ता है, जिससे उनकी शारीरिक कमजोरी बढ़ती है। इसके अलावा गली के यह कुत्ते बीमारियों और परासिटिक इंफेक्शन से पीडि़त रहते हैं क्योंकि उन्हें सही देखभाल नहीं मिलती। इससे उनकी स्वास्थ्य स्थिति में सुधार की आवश्यकता है। इस समस्या को सुलझाने के लिए समाज में जागरूकता फैलाना और उचित देखभाल प्रदान करना बहुत आवश्यक है। अधिक संवेदनशीलता और सहयोग से ही हम इन कुत्तों की स्थिति में सुधार कर सकते हैं। इस प्रकार, हम गली के इन कुत्तों की दशा पर सकारात्मक कदम उठाकर इनकी समृद्धि और सुरक्षा की रक्षा कर सकते है।
प्राय: देखा गया है कि कुछ लोग गली के इन कुत्तों के साथ बुरा व्यवहार भी करते है जबकि आईपीसी की धारा 428, 429 और पीसीए एक्ट की धारा 11 के तहत गली के आवारा कुत्तों को मारना दंडनीय अपराध है। हाईकोर्ट ने भी इसके बाबत निर्देश जारी किया है कि अगर कोई इन आवारा कुत्तों या मवेशियों को परेशान करेगा या मारने की कोशिश करेगा तो इसकी शिकायत पुलिस थाने में भी की जा सकेगी। उनकी बढ़ती संख्या को देखते हुए सरकार की नीति और एनिमल बर्थ कंट्रोल 2011 के तहत जिस क्षेत्र में इन आवारा कुत्तों का आतंक है, वहां उनकी नसबंदी करवाई जा सकती है।
-डा. वीरेन्द्र भाटी मंगल