कानपुर । वन विभाग को बिल्हौर तहसील में ब्रिक गार्ड (पौधों की सुरक्षा के लिए ईंट का घेरा) का निर्माण करना है, लेकिन टेंडर अभी खुला नहीं है। बावजूद इसके ब्रिकगार्ड का निर्माण शुरू है। मजे की बात यह है कि वन विभाग की जमीन पर हो रहे इस निर्माण कार्य की जानकारी से अधिकारी भी पल्ला झाड़ रहे हैं।
इस प्रकरण से टेंडर प्रक्रिया पर तो सवाल उठ ही रहे हैं, भ्रष्टाचार की बू भी आ रही है। इतना ही नहीं, यह ब्रिक निर्माण कार्य कौन करवा रहा है, यह भी पता कराना मुश्किल हो रहा है। अज्ञात ठेकेदार ने करोड़ों रुपये का कार्य बिल्हौर तहसील क्षेत्र में शुरू कराया है।
विभागीय सुगबुगाहट के बीच अब यह साफ होने लगा है कि बिना टेंडर कार्य करा रहा अज्ञात ठेकेदार निश्चिंत है कि टेंडर उसी को ही मिलेगा। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है। बिना टेंडर और वर्क आर्डर के करोड़ों रुपये का कार्य वन विभाग
की जमीन पर अधिकारियों की मिलीभगत के बिना कोई कैसे करवा सकता है। इस मामले के जानकार यह कहने में कोई संकोच नहीं कर रहे हैं कि मामला कमीशनबाजी का है। मामले में डीएफओ श्रद्धा यादव का गोलमोल जवाब उन्हें शक के दायरे में खड़ा कर रहा है।
यह है मामला
उत्तर प्रदेश में हरियाली को बढ़ावा देने के लिए हर वर्ष वन विभाग करोड़ों रुपये खर्च करके पौधरोपण कराता है। कानपुर वन विभाग ने भी पौधरोपण की तैयारी शुरू कर दी है और पौधों को सुरक्षित रखने के लिए ब्रिक गार्ड बनवाने के लिए करीब दो करोड़ रुपये के टेंडर की प्रक्रिया चल रही है। इसी बीच 20 मार्च को बिल्हौर तहसील के ककवन ब्लॉक के अर्न्तगत एक अज्ञात व्यक्ति अथवा कह लीजिए,ठेकेदार ने वन विभाग की जमीन पर पौधरोपण के लिए ब्रिक गार्ड बनवाना शुरू कर दिया। जबकि अभी टेंडर खुला ही नहीं है।
ऐसे खुली पोल
ब्रिक गार्ड में ईंट, सीमेंट आदि में गुणवत्ता का आरोप लगाकर ग्रामीणों ने विरोध किया। मामला क्षेत्रीय वनाधिकारी कार्यालय पहुंचा। रेंजर अनुज सक्सेना ने बिना देर किये 22 मार्च को मौके का निरीक्षण किया और कार्य को रुकवा दिया।
उन्होंने कार्य करा रही कार्यदाई संस्था और सम्बन्धित ठेकेदार या व्यक्ति के बारे में भी जानकारियां इकट्ठा करनी चाहीं, लेकिन पता नहीं चल सका।
शायद, क्षेत्रीय वनाधिकारी भी इस बात से आश्चर्यचकित थे कि उनके पास वर्क आर्डर आया नहीं, टेंडर प्रक्रिया गतिशील है, बावजूद इसके निर्माण कार्य कैसे हो रहा है। प्रत्यक्षदर्शियों की मानें तो इस दिन क्षेत्रीय वनाधिकारी के हटते ही फिर कार्य शुरू हो गया और सैकड़ों ब्रिक गार्ड बनकर तैयार हो गये।
डीएफओ ने कहा, टेंडर की प्रक्रिया अभी चल रही है
मामले में प्रभागीय निदेशक सामाजिक वानिकी प्रभाग कानपुर (डीएफओ) श्रद्धा यादव ने कहा कि टेंडर की प्रक्रिया अभी चल रही है और मुझे नहीं पता कि कौन ठेकेदार ब्रिक गार्ड बनवा रहा है। जब उनसे पूछा गया कि बिना टेंडर जारी हुए करोड़ों रुपये की लागत से ब्रिक गार्ड का निर्माण कार्य करा रहे अज्ञात ठेकेदार के खिलाफ वन विभाग कार्यवाही करेगा ?,
इस पर उनका गोलमोल जवाब रहा और कुछ भी बोलने से मना कर दिया। यही नहीं ,देर शाम डीएफओ के वाट्सएप पर
साक्ष्य दिये गये कि ब्रिक गार्ड अभी भी बन रहे हैं। इस पर भी उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। 25 मार्च को भी डीएफओ से जानने की कोशिश की गई कि टेंडर खुला कि नहीं पर उनका फोन ही नहीं उठा।
उठते हैं सवाल
यूपी में योगी सरकार में जेम पोर्टल से ही टेंडर छोड़े जाने के दावे किये जाते है लेकिन बड़ा सवाल यह है कि आखिर वह कौन सा ठेकेदार है जो बिना टेंडर जारी हुए ब्रिक गार्ड बनवा रहा है। आखिर जेम पोर्टल से ठेके छोड़ने के दावे क्यों किये जाते है ?,छह दिन में सैकड़ों ब्रिक गार्ड बन चुके हैं और उसके लाखों रुपये खर्च हो चुके हैं। बिना टेंडर जारी हुए ठेकेदार इतना धन क्यों खर्च कर रहा है ?,
वन विभाग के प्रमुख अधिकारी डीएफओ श्रद्धा यादव ठेकेदार के खिलाफ बोलने से क्यों बच रही हैं? यह सभी सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि वन विभाग की जमीन पर काम हो रहा है और जिम्मेदार अपनी आँखें मूंदे आराम फरमा रहे हैं। नियमों को ताक पर रखकर काम करवा रहे ठेकेदार को ही काम मिलने का पूरा दावा किया जा रहा है। फिलहाल, मामले में जो भी सच्चाई हो, यह तो जांच का विषय है लेकिन कहीं न कहीं भ्रष्टाचार की बू जरूर आ रही है।