Saturday, February 22, 2025

नयी दिल्ली में आचार्य पं. सीताराम चतुर्वेदी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारम्भ

नई दिल्ली। श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के आधुनिक विषय पीठ एवं सर्वदर्शन विभाग तथा राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वाधान में अभिनवभरत आचार्य पं. सीताराम चतुर्वेदी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मुरलीमनोहर पाठक ने की। उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि आचार्य  किशोर कुणाल  (संस्थापक सचिव – महावीर मन्दिर न्यास) के पुत्र  सायण कुणाल रहे, जबकि मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. प्रदीप जैन एवं सारस्वत अतिथि के रूप में प्रो. कल्पलता पाण्डेय (पूर्व कुलपति, जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय, बलिया) उपस्थित रहीं। इस अवसर पर विशेष अतिथि के रूप में आचार्य पं. सीताराम चतुर्वेदी के पुत्र प्रियशील चतुर्वेदी उर्फ़ रतन गुरु भी उपस्थित रहे।
कार्यक्रम का शुभारम्भ वैदिक मंगलाचरण, दीप प्रज्ज्वलन एवं माता सरस्वती एवं आचार्य पं. सीताराम चतुर्वेदी की प्रतिमा पर पुष्पार्चन के साथ हुआ। कार्यक्रम के संयोजक प्रो. मीनू कश्यप एवं प्रो. जवाहर लाल ने अतिथियों का स्वागत किया, मंच संचालन प्रो. दयाल सिंह पंवार ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. ब्रजेश मिश्र द्वारा किया गया।
राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति, प्रो. श्रीनिवास वरखेड़ी  द्वारा आचार्य जी के सम्मान में एक संदेश प्रेषित किया गया, जिसका वाचन प्रो. दयाल सिंह पंवार ने किया। साथ ही, एक चलचित्र के माध्यम से आचार्य सीताराम चतुर्वेदी  के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला गया।
मुख्य वक्ता डॉ. प्रदीप जैन ने कहा कि आचार्य सीताराम चतुर्वेदी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने संस्कृत साहित्य को समृद्ध करने के लिए अनेक ग्रंथों, गीतों एवं शास्त्रों की रचना की। संस्कृत भाषा एवं भारतीय संस्कृति में उनका योगदान अतुलनीय है।सारस्वत अतिथि प्रो. कल्पलता पाण्डेय ने उनके शिक्षण-पद्धति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वे अनुशासनप्रिय प्रशासक और समर्पित शिक्षाविद् थे। उनका सम्पूर्ण जीवन लेखनी को समर्पित था, जो अंतिम क्षण तक सक्रिय बना रहा।
मुख्य अतिथि  सायण कुणाल ने कहा कि पंडित सीताराम चतुर्वेदी  केवल संस्कृत भाषा के अध्यापन तक सीमित नहीं थे, बल्कि उन्होंने भारतीय संस्कृति और ज्ञान परंपरा को भी सशक्त बनाया। वे एक कुशल प्रशासक, नाटककार, समीक्षक, वक्ता और संगीतज्ञ भी थे।
विशिष्ट अतिथि  प्रियशील चतुर्वेदी ने आचार्य जी के जीवन और उनकी रचनाओं को संजोने की अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि आज भी वेदपाठी भवन में आचार्य जी द्वारा रचित अनेक ग्रंथों को सुरक्षित रखा गया है।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलपति प्रो. मुरलीमनोहर पाठक ने कहा कि आचार्य पं. सीताराम चतुर्वेदी का व्यक्तित्व बहुआयामी था। उन्होंने साहित्य, संगीत और कला में अतुलनीय योगदान दिया। उनके जैसा बहुप्रतिभाशाली व्यक्तित्व दुर्लभ है।
संगोष्ठी के अंतर्गत तीन तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया, जिसमें 60 से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत किए गए।
प्रो. सुधा श्रीवास्तव* (वसंत कन्या महाविद्यालय, वाराणसी), प्रो. मधुकेश्वर भट्ट (निदेशक केंद्रीय योजनाएं एवं कार्यक्रम, राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली) प्रो. वीर सागर जैन (आचार्य, जैन दर्शन विभाग) मुख्यवक्ता के रूप में उपस्थित हुए।
इस अवसर पर प्रो. शिवशंकर मिश्र, प्रो. जगदेव शर्मा, प्रो. अरावमुदन, प्रो. कल्पना जैन, प्रो. के. अनन्त, प्रो. बिष्णुपद महापात्रा, डॉ. अभिषेक तिवारी, डॉ. कामकक्षमा, डॉ. सौरभ दुबे, डॉ. विजय गुप्त, डॉ. प्रवेश व्यास, डॉ. विकास चौधरी, डॉ. आलोक, डॉ. श्वेता, डॉ. हिमानी, डॉ. जीवन जोशी, डॉ. प्रियंका, डॉ. श्रद्धा मिश्रा, डॉ. सीमा सहित अनेक शिक्षाविद्, शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।
- Advertisement -

Royal Bulletin के साथ जुड़ने के लिए अभी Like, Follow और Subscribe करें |

 

Related Articles

STAY CONNECTED

74,854FansLike
5,486FollowersFollow
143,143SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय