Monday, December 23, 2024

इंडी गठबंधन: यह जीत नहीं हार है

देश में हुए लोकसभा चुनाव के परिणाम आ चुके हैं। ये चुनाव परिणाम कई मायनों में महत्वपूर्ण सन्देश देने वाले कहे जा सकते हैं। इसमें पहली बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी ने चार सौ पार का नारा दिया, उसने एक बार फिर से इंडिया शाइनिंग वाले 2004 के चुनाव की याद याद दिला दी। यह संतोष की बात कही जा सकती है कि राजग को सरकार बनाने लायक बहुमत प्राप्त हो गया है।

इस चुनाव परिणाम को भाजपा के लिए एक बड़े सबक के रूप में देखा जा रहा है, जबकि अपने राजनीतिक अस्तित्व को बचाने के लिए पिछले दस वर्षों से संघर्ष करने वाले विपक्ष को कायाकल्प करने वाली संजीवनी मिलने के रूप में देखा जा रहा है। बावजूद इसके चुनाव नतीजों को इंडी गठबंधन के लिए हार ही कहा जाएगा।

भाजपा वाले गठबंधन ने भले ही बहुमत का आंकड़ा प्राप्त कर लिया है लेकिन खुद भाजपा के नेता इसे जीत के रूप में प्रचारित करने का साहस नहीं जुटा पा रहे है। इसके विपरीत इंडी गठबंधन तो ताल ठोकते हुए इसे भाजपा की हार बता रहा है। यह सही है कि चुनाव में राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबंधन को अपेक्षित सफलता नहीं मिली, लेकिन सरकार बनाने लायक सीट की संख्या उसके पास है। इसलिए इसमें कोई संदेह नहीं कि भाजपा के नेतृत्व में लगातार तीसरी बार सरकार बनने जा रही है। इसलिए इस जीत को कई मायनों में ऐतिहासिक ही माना जाएगा। आज नरेन्द्र मोदी उस कतार में शामिल हो गए हैं, जो उन्हें औरों से अलग बनाते हैं।

भाजपा को सबसे बड़ा झटका उत्तर प्रदेश ने दिया है। यहां दो लड़कों की जोड़ी ने भाजपा की उड़ान की गति को बहुत हद तक रोकने में सफलता प्राप्त की है। हम जानते हैं कि जिस प्रकार से समाचार चैनलों ने स्पष्ट रूप से भाजपा की बहुमत वाली सरकार बनाने का पूर्वानुमान दिखाया था, वह परिणाम से मेल रखने वाला नहीं रहा। देश के विपक्षी दलों ने यह आरोप लगाकर इस एग्जिट पोल को पूरी तरह से खारिज कर दिया। कांग्रेस की ओर से यह दावा भी किया गया था कि इंडी गठबंधन को 290 सीटें मिलेंगी और बहुमत की सरकार बनेगी। सबको यही लग रहा था कि कांग्रेस के दावे में दम नहीं है, लेकिन चुनाव के परिणाम ने यह जाहिर कर दिया कि उनके दावे में दम था। दावे में जो सीटों की संख्या बताई गई थी इंडी गठबंधन उस आंकडे से बहुत पीछे रह गया, लेकिन इंडी गठबंधन के कई उम्मीदवार बहुत कम अंतर से पराजित हुए हैं, इसे भी अप्रत्याशित बढ़त के रूप में ही देखा जा रहा है। इंडी गठबंधन के लिए सबसे ज्यादा सुकून देने वाली बात यह भाजपा गठबंधन 300 के पार भी नहीं जा सका।

भाजपा के लिए चिंतन का मुद्दा यह है कि उसके मूल कार्यकर्ता इस चुनाव से दूर रहे। भाजपा नेतृत्व ने जितना भरोसा बाहर से आए नेताओं पर किया, उतना अपने पुराने कार्यकर्ताओं पर नहीं किया। बाहर से आए नेता केवल दिखावा करते रहे और भाजपा के पुराने कार्यकर्ताओं की अनदेखी की गई। जिसके कारण भाजपा का समर्थक मतदाता मतदान केंद्र तक पहुंच ही नहीं सका। यह भी भाजपा के लिए एक बड़ा अवरोधक बनता दिखाई दिया, जबकि इंडी गठबंधन के नेता यह योजना बनाकर मैदान में थे कि अधिक मतदान कराने का प्रयास किया जाए।

उत्तर प्रदेश में सपा और कांग्रेस के गठबंधन को मिली सफलता इस बात का परिचायक है कि इन दोनों दलों ने मुस्लिम और यादव मतों पर ज्यादा मेहनत की। इसके अलावा पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को भी अपने पाले करने के लिए मेहनत की। इसी मेहनत ने अपेक्षित परिणाम दिए।

यहां यह उल्लेख करना भी महत्वपूर्ण होगा कि इस बार मायावती की बहुजन समाज पार्टी ने इंडी गठबंधन के लिए विजय के द्वार खोलने में मदद की। ऐसा नहीं है कि उनकी मदद करने की मंशा थी, वह मदद नहीं करना चाहती थीं, लेकिन अजा, जजा और पिछड़े वर्ग का जो वोट भाजपा को मिलना था, वह इस बार भाजपा को नहीं मिला। इसे भी भाजपा की हार के रूप में देखा जा रहा है। वैसे राजनीतिक दृष्टि से आकलन किया जाए तो यह भाजपा की बड़ी जीत ही कहा जाएगा, क्योंकि भाजपा के नेतृत्व वाले राजग गठबंधन ने तीसरी बार सत्ता को अपने पास रखा है। इंडी गठबंधन भी इसलिए सक्रिय हो गया है, क्योंकि अगर किसी भी स्थिति में बिल्ली के भाग्य से छींका टूट गया तो मलाई खाने का अवसर मिल सकता है।

परिणामों के बाद अब इसमें कोई संदेह नहीं है कि राजग की सरकार बनेगी, साथ ही एक मजबूत विपक्ष भी होगा। इसलिए अब भाजपा नीत सरकार को बेहद सधे कदमों से चलना होगा। जैसा कि सभी जानते हैं कि जब विपक्ष कमजोर रहा, तब उन्होंने संसद को कई बार बाधित किया। चूंकि अब विपक्ष मजबूत है तो इस बात की बहुत ज्यादा संभावना बन जाती है कि वे छोटी-छोटी बातों पर संसद को बाधित कर सकते हैं। यह बात सही है कि नरेन्द्र मोदी की सरकार ने राजनीतिक भ्रष्टाचार पर बहुत हद तक सफलता प्राप्त की है, और अपने तीसरे कार्यकाल में भी भ्रष्टाचार को समाप्त करने का संकल्प दोहराया है।

हम जानते हैं कि विपक्ष के कई बड़े राजनेता भ्रष्टाचार के आरोप को झेल रहे हैं। इनमें से कई जमानत पर बाहर हैं। इसलिए यह भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सरकार का साथ देंगे, इसकी गुंजाइश कम ही है। लेकिन यह सच है कि भारत में भ्रष्टाचार का निर्मूलन होना ही चाहिए। यह देश को अच्छा बनाने का कदम है, जिसके लिए सभी दलों को साथ देना चाहिए। जहां तक राजनीति की बात है तो लोकसभा चुनाव के दौरान जिस प्रकार से प्रचार किया गया, उसमें नकारात्मकता अधिक देखी गई। रचनात्मक विरोध तो कहीं भी देखने को नहीं मिला। लेकिन अब चूंकि चुनाव समाप्त हो गए हैं और परिणाम भी आ चुके हैं, इसलिए अब नकारात्मक राजनीति से सभी दलों को तौबा करने की ओर कदम बढ़ाने चाहिए। क्योंकि अब विरोध करने का नहीं, बल्कि देश को बनाने का समय है।
-सुरेश हिंदुस्तानी

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