नोएडा। तीन हजार से अधिक फर्जी फर्म तैयार कर सरकार को करीब 15 हजार करोड़ रुपये की जीएसटी का नुकसान पहुंचाने वाले गिरोह के एक अन्य सदस्य व 25 हजार रुपए के इनामी शातिर बदमाश को थाना सेक्टर-20 पुलिस ने गिरफ्तार किया है। इस मामले में पूर्व में 28 लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है। गिरफ्तार आरोपी के घर की कुर्की का आदेश न्यायालय द्वारा जारी हुआ था। वहीं इस मामले में फरार चल रहे 4 लोगों के घर की कुर्की तीन दिन पूर्व पुलिस ने की है।
परिचित व गैर परिचित लोगों का आधार कार्ड और पैन कार्ड अवैध रूप से हासिल करके उसके माध्यम से फर्जी कंपनियां खोलकर 15 हजार करोड़ से ज्यादा के जीएसटी घोटाला करने के मामले में फरार चल रहे 25 हजार रुपए के एक इनामी को थाना सेक्टर 20 पुलिस ने आज गिरफ्तार किया है। पुलिस आयुक्त के मीडिया प्रभारी ने बताया कि थाना सेक्टर-20 पुलिस ने एक सूचना के आधार पर विकास डबास पुत्र रविंद्र डबास निवासी मुबारकपुर दिल्ली को गिरफ्तार किया है। उन्होंने बताया कि इसकी गिरफ्तारी पर 25 हजार रुपए का इनाम नोएडा पुलिस द्वारा घोषित था। उन्होंने बताया कि विकास के घर की कुर्की के लिए कोर्ट द्वारा आदेश जारी हुआ था।
उन्होंने बताया कि पूछताछ के दौरान पुलिस को इससे अहम जानकारी मिली है। उसके आधार पर इस घटना में शामिल अन्य लोगों की तलाश की जा रही है। उन्होंने बताया कि इस मामले में पुलिस ने अब तक 29 लोगों को गिरफ्तार किया है। उन्होंने बताया कि 4 मई वर्ष 2023 को एक खबरिया चैनल में काम करने वाले संपादक सौरव द्विवेदी ने शिकायत दर्ज कराई थी कि उनके आधार कार्ड और पैन कार्ड का दुरुपयोग करके उनके नाम से कंपनी खोली गई है। जिसकी सहायता से करोड़ों रुपए के जीएसटी का आईटीसी लिया गया है। मीडिया कर्मी की शिकायत पर घटना की रिपोर्ट दर्ज कर मामले की जांच कर रही पुलिस ने इस घटना का खुलासा किया तथा अब तक इस मामले में गौरव सिंघल, गुरमीत सिंह, राजीव ,राहुल, विनीता, अश्वनी, अतुल सेंगर, दीपक मुरजानी, यासीन, विशाल, राजीव, जतिन, नंदकिशोर, अमित कुमार ,महेश, प्रीतम शर्मा, राकेश कुमार, अजय कुमार, दिलीप कुमार, मनन सिंघल, पीयूष, अतुल गुप्ता, सुमित गर्ग सहित 29 लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
गिरोह का पर्दाफाश करने वाले पुलिस अधिकारियों ने बताया कि जीएसटी में इनपुट टैक्स क्रेडिट के रूप में ऐसी व्यवस्था बनाई गई है, जिसमें पहले भुगतान किए गए जीएसटी के बदले में क्रेडिट मिल जाते हैं। ये क्रेडिट फर्म के जीएसटी अकाउंट में दर्ज हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि फर्जी कंपनियों द्वारा वास्तविक माल का आदान-प्रदान नहीं किया जाता है। गिरोह के आरोपियों ने, जो कंपनियां बनाई थीं, वह धरातल पर नहीं थीं, उसका वजूद महज कागजों में ही था। जाली बिल पर करोड़ों रुपये का लेनदेन दिखाया गया। सभी बिल फर्जी होते थे। कंपनियां एक दूसरे से फर्जी तरीके से इनपुट टैक्स क्रेडिट का आदान-प्रदान करती रहीं।
फरार आरोपियों में कई के विदेश भागने की भी आशंका है। आरोपियों ने देश के अलग-अलग हिस्से में रहने वाले कामगारों से आधार कार्ड हासिल किए। इसी दस्तावेज के सहारे फर्जी पैन कार्ड का सहारा लिया और सिम भी इसी दस्तावेज से ली। बाद में इसी का इस्तेमाल जीएसटी रजिस्ट्रेशन में हुआ। कागजों पर फर्म का अस्तित्व रहा और कई साल तक आरोपी जीएसटी रिफंड के नाम पर लाभ लेते रहे।