लखनऊ। विपक्ष के राजनीतिक दलों में बहुजन समाज पार्टी अलग-थलग पड़ गई है। केंद्रीय सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खिलाफ मोर्चाबंदी करने वाले नेताओं को बहुजन समाज पार्टी (बसपा) रास नहीं आ रही है। पिछले कुछ घटनाक्रम इस बात की तस्दीक भी करते हैं।
दरअसल दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और इससे पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उत्तर प्रदेश के दौरे पर आए और पूर्व मुख्यमंत्री व समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव से तो मुलाकात की लेकिन बसपा से दूरी बनाए रखे।
आम आदमी पार्टी ने दिल्ली को लेकर केंद्र में लाए जा रहे विधेयक के विरोध में समाजवादी पार्टी से समर्थन मांगा। अरविंद केजरीवाल और अखिलेश यादव ने भाजपा पर जमकर हमला बोले। उन्होंने यह संदेश देने की पूरी कोशिश की कि वे भाजपा के खिलाफ लामबंद हो रहे हैं। इस दौरान अरविंद केजरीवाल ने बसपा मुखिया मायावती से न तो मुलाकात की और न ही समर्थन मांगा।
इतना ही नहीं, इससे पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लखनऊ दौरे पर आए थे। उन्होंने भी केवल अखिलेश यादव से मुलाकात की थी। बहुजन समाज पार्टी की मुखिया से कोई संपर्क नहीं किया। न ही बसपा को लेकर उनकी कोई टिप्पणी आई।
राजनीतिक विश्लेषक वरिष्ठ पत्रकार आशीष मिश्र कहते हैं कि विपक्षी दल बसपा को भाजपा की बी टीम समझ रहे हैं या फिर बी टीम होने का जनता के बीच संदेश देने की कोशिश में हैं। इसलिए विपक्षी दल बसपा के साथ नहीं आना चाहते हैं। दूसरी बात सपा ने 2019 के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन किया तो सपा को केवल 05 सीटें मिलीं और बसपा के खाते में 10 सीटें चली गईं। इसके बाद बसपा अध्यक्ष मायावती ने गठबंधन तोड़ दिया।
वह कहते हैं कि ऐसे में अखिलेश यादव को इस बात का डर है कि बसपा को साथ लेने से एक बार फिर से कहीं उन्हें नुकसान का सामना न करना पड़े। रही बात कांग्रेस की तो वह भी बसपा से दूरी बनाकर रहना चाहती है। कांग्रेस जिस दलित और मुस्लिम मतदाताओं का साथ पाकर सत्ता में लंबे समय तक काबिज रही है, ऐसे में बसपा खुद कांग्रेस के साथ नहीं जाना चाहेगी।
जानकारों का कहना है कि पार्टियों की अपनी-अपनी रणनीति के अलावा दूसरा कारण यह भी है कि बसपा की राजनीतिक पकड़ कमजोर देखने लगी है। लिहाजा कोई भी दल उसके साथ नहीं जाना चाहता है। हां एक बात जरूर है कि अगर बहुजन समाज पार्टी 2019 के लोकसभा चुनाव में अकेले दम पर लड़ती है तो इसका लाभ भारतीय जनता पार्टी को मिलना लगभग तय है।
2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा को लगभग एक करोड़ 18 लाख वोट मिले थे। इतना वोट मिलने के बावजूद बसपा केवल बलिया की रसड़ा विधानसभा सीट पर जीत दर्ज कर सकी थी। अब बहुजन समाज पार्टी को दलित वोट खिसकने का डर सताने लगा है। उत्तर प्रदेश में लगभग तीन करोड़ दलित मतदाताओं में से आधे से भी कम बसपा के खाते में आए हैं। बसपा से दूर जा रहे दलित मतदाताओं पर सबसे अधिक पकड़ भाजपा की मजबूत होती जा रही है। लोकसभा चुनाव को लेकर विपक्ष के ज्यादातर दल लामबंद होकर भाजपा के विजय रथ को रोकने की कवायद में जुट गए हैं। वहीं बहुजन समाज पार्टी का रुख अभी तक सामने नहीं आया है।