Friday, November 22, 2024

वो ‘चेतावनी’ सुनी जाती तो बच सकता था जोशीमठ !

पद्मभूषण से सम्मानित चिपको आंदोलन की नींव रखने वाले प्रमुख पर्यावरणविद चंडी प्रसाद भट्ट ने जोशीमठ में भू- धंसाव पर 19 मार्च 1976 में गहरी चिंता व्यक्त कर जोशीमठ संकट पर NBT में एक लेख लिखा था. जिसकी हेडलाइन थी ‘भूस्खलन में धस रहा पर्वतीय नगर जोशीमठ’ !
उन्होंने लिखा था कि जोशीमठ के धसने का क्रम कई वर्षों से चल रहा है, लेकिन 1970 में अलकनंदा नदी में आई बाढ़ से जोशीमठ की कई बस्तियों पर प्रभाव पड़ा। जोशीमठ से मलारी मार्ग व जोशीमठ से बदरीनाथ मोटर मार्ग कई स्थानों पर धंस गया था। जोशीमठ नगर के धंसने की चिंता पर उन्होंने लिखा था कि 1974 मार्च में एक प्रसिद्ध वनस्पति शास्त्री ने फूलों की घाटी से लौटते हुए औली और अलकनंदा के संगम से एक किलोमीटर नीचे तक अलकनंदा के प्रबल वेग से मिट्टी के कटाव और जोशीमठ के आसपास ओक के पेड़ों के कटाव के प्रभाव से होने वाले भूस्खलन की ओर ध्यान दिलाया था।
इन सभी चेतावनियों के बीच कोई भी सरकार जोशीमठ की सुध नहीं ले पाई, साल 1976 से 2023 तक सरकारें जनता के मुहाने तो पहुँची लेकिन जोशीमठ के स्थानीय नागरिकों के जीवन संकट पर कोई रुख ना अपना सकी।

जोशीमठ के वर्तमान विधायक व पूर्ववर्ती सरकारों के मंत्रियों ने जोशीमठ को लेकर कोई गम्भीरता नहीं दिखाई. अधिकांश नेता अपनी सभी सरकारी सुख सुविधाओं के प्रति जागरूक रहते है लेकिन जोशीमठ की सुध किसी ने नहीं ली जिंदाबाद, मुर्दाबाद के नारों के बीच 1976 का मुद्दा जनसरोकार ना बनकर भू-धंसाव में तब्दील हो गया !

आज सैंकड़ों लोग बेघर हो गए सिर्फ इन सत्ताधारियों की बेरुखी से…

सवाल साफ है कि वर्तमान में भी उत्तराखंड की कई जगह भू- धंसाव की चपेट में है क्या अब भी शासन प्रशासन समय पर जाग पाएगा…?

-कर्मवीर त्यागी

 

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