Sunday, May 19, 2024

सुरक्षा न भविष्य आजीविका के लिये मेहनत को मजबूर मजदूर के हाथ

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आज विश्व में मजदूर दिवस के अवसर पर मजदूरों के हितों की रक्षा, आदर्श रोजगार, सुरक्षा, कार्य व पैसे की गारंटी, परिवार की दशा में सुधार आदि आज भी मात्र एक विषय के समान हैं। मजदूर व उसके परिवार के उत्थान लिये प्रभावी उपाय न होने से आज भी मेहनत कश व्यक्ति आम सुविधाओं से दूर अमीरी और गरीबी की बड़ी असमानता के बीच जीवन जीने को मजबूर है। सुबह सवेरे से लेकर देर शाम तक कमर को झुका देने वाली मेहनत के बावजूद अगले दिन की मजदूरी की चिन्ता एक मजदूर के परिवार को बनी रहती है।

करेंगे नहीं तो खायेंगे क्या? यह मुहावरा पूरे परिवार के लिये एक कटु सच्चाई है। तेज़ ठण्ड हो या गर्मियों की लू की परवाह न करते हुए मेहनत करने बारिश के समय असहाय हो जाते हैं। एक छोटे से आशियाने को बनाने व परिवार के सदस्य की शादी के समय लिया गया कर्ज उम्र भर नहीं उतरता और इसी कर्ज तले दबे मजदूर का जीवन चक्र पूरा हो जाता है। प्रकृति का दोहन कर सम्पन्न हुए खास वर्ग द्वारा किये जाने वाले विकास के दावे कब धरातल पर उतर कर मजदूर परिवारों की जिंदगी में बदलाव लाएंगे यह सवाल आज भी यक्ष प्रश्न के समान है।
कार्य के समय नहीं है सुरक्षा
कठिन व जोखिम भरे कार्यों के समय मजदूरों की सुरक्षा को लेकर गम्भीरता नजर नही आती। फैक्ट्रियों, मिलों, ईंट भट्टे, तारकोल की सड़क निर्माण, ऊँची इमारतों पर कंस्ट्रक्शन से लेकर उनकी सजावट व विद्युत व जलापूर्ति सुनिश्चित करने से लेकर स्वच्छता कार्य मे स्वास्थ्य पर पडऩे वाले विपरीत प्रभाव को लेकर गम्भीरता का अभाव है। सुरक्षा में लापरवाही के परिणाम स्वरूप अनेक मजदूर हादसों का शिकार हो जाते हैं।
मजदूर के परिवार की स्थिति
पूरे परिवार द्वारा कड़ी मेहनत के बावजूद पीढिय़ों तक भी परिवार की दशा में बदलाव नही हो पा रहा है। मुफ्त के राशन के लिये घण्टो कतार में लगना, मुफ्त इलाज के लिये सरकारी अस्पताल में लाइन में लगना, सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिये हफ़्तों महीनों कार्यालयों में चक्कर काटना व पात्र होने के बावजूद अधिकारियों की मिन्नते करना आदर्श सामाजिक व्यवस्था पर एक दंश के समान है।
बढ़ रहा कर्ज बढ़ रहा तनाव
आपातकालीन ज़रूरतों में लिया गया कर्ज आर्थिक तंगी के कारण अक्सर अदा नही हो पाता। ब्याज के साथ बढ़ता कर्ज मानसिक तनाव को पैदा कर जाता है जिससे परिवार में कुण्ठा पनप रहीं हैं।
हादसों के बाद होते हैं आंदोलन
सुरक्षा न होने के कारण हादसो में हुई मौत के बाद के मृतक मजदूर के परिवार के आश्रितों के लिये मुआवजे की माँग की जाती है। आंदोलन के बाद मुआवजे का आश्वासन दिया जाता है। जो मजदूर के असुरक्षित भविष्य को  जाहिर करता है।
नहीं है शासन प्रशासन गम्भीर
मजदूरों की सही संख्या क्या है यह सही डाटा आज तक उपलब्ध नहीं है। कुशल, अकुशल कारीगरों से लेकर अनेक श्रेणियों में कार्य करने वाले दिहाड़ी मजदूर, महिला व पुरुष मजदूरों की सही संख्या का डाटा उपलब्ध न होने से सरकार द्वारा जारी अनेक योजनाओं का उचित लाभ भी पात्र व्यक्तियों तक नहीं पहुंच पा रहा है।

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