दल-बदल को लोकतंत्र का सबसे बड़ा अपराध मानकर कांग्रेस की तत्कालीन सरकार के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने दल-बदल के खिलाफ क़ानून की नींव रखी और संयोग देखिये कि आज यही दल-बदल कांग्रेस के लिए अभिशाप और भाजपा के लिए वरदान बन गया है। आज दल-बदल राष्ट्रहित में किया जाने वाला सबसे बड़ा सद्कर्म बनता जा रहा है।
आपकी आप जानें किन्तु मुझे शुरू से दल-बदलू पसंद नहीं हैं। मैं दल-बदल को प्रश्रय देने वालों के भी खिलाफ हूं। दल-बदल चाहे कोई भी दल करे या कराये मुझे देशद्रोही लगते है। लेकिन मेरे लगने या न लगने से क्या होता है? मैं यानि आम जनता दल-बदल को मूकदर्शक की तरह टुकुर-टुकुर देखने, सहने के लिए अभिशप्त है। जब राजनीतिक दल ही दल-बदल को सबसे बड़ी योग्यता मानते हों तो बेचारा आम आदमी इसके खिलाफ खड़ा होकर कर भी क्या सकता है। मैं आपको दल-बदल के इतिहास में नहीं ले जाऊँगा। गूगल पर विकिपीडिया खंगालने के लिए भी नहीं कहूंगा क्योंकि इससे दल-बदल की सेहत पर कोई असर पडऩे वाला नहीं है।
दल-बदल एक अनवरत, सतत, सनातन कार्य है। त्रेता से होता आ रहा है और कलियुग में तो दल-बदल इतना सुगम हो गया है जितना कि दिल-बदलना। दल बदलने में दिल बदलने से भी कम समय लगता है। इंदौर में कांग्रेस के प्रत्याशी किन्हीं बम साहब के दल-बदल ने ये प्रमाणित कर दिया है। लोग मेडिकल टूरिज्म के लिए दुनिया के कोने-कोने से भारत आते है पर अब मुझे लगता है कि भविष्य में दुनिया के तमाम राजनीतिक दल अपने यहां दल-बदल करने के लिए गुरुदीक्षा लेने भारत आया करेंगे। भारत किसी और मामले में विश्व गुरु हो या न हो किन्तु दल-बदल के मामले में तो ब्रह्मंड गुरु बन चुका है।
भारत में लोकतंत्र की सेहत के लिए दल-बदल एक अनिवार्य प्रक्रिया है। जो दल जितना ज्यादा दल-बदल कराएगा उसे उतना मजबूत और लोकतांत्रिक माना जाएगा। एक दल का दुष्ट-पापी दूसरे दल में आते ही दुष्टता और अपने पापों से मुक्त हो जाता है। अर्थात दल-बदल पाप मोचन का सबसे सरल, सुगम और सुबोध तरीका है। हमारे यहां बड़े-बड़े सूरमाओं ने, राजे-महाराजों ने दल-बदल किये हैं ,बम टाइप के साधारण लोग उनके सामने कहाँ लगते हैं। आज मान्यता हो गयी है कि जिसने अपने राजनीतिक जीवनकाल में दल-बदल नहीं किया उसने समझो कि कुछ नहीं किया। दल के प्रति निष्ठावान बने रहने से क्या मिलता है आखिर? दल-बदल कीजिये तो नगद नारायण के साथ ही टिकिट,मंत्री पद और न जाने क्या-क्या मिलता है।
मैं अगर सत्ता में होता या तीसरी बार सत्ता में आने की तैयारी कर रहा होता तो अपने चुनाव घोषणा पत्र में दल-बदल को राजधर्म की मान्यता दिलाने के लिए दल-बदल क़ानून को ही समाप्त करने का वचन देता । वचन देता ही नहीं उसे प्राण-पण से निभाता भी। आप सोचकर देखिये कि दल-बदल के फायदे कितने हैं और नुकसान कितने? गुणा-भाग करने के बाद आप जो हासिल पाएंगे वो लाभ ही निकलेगा हानि नहीं। दल-बदल में सुविधा ये है कि आप इसे जितनी बार करना चाहें कर सकते हैं। दल-बदल के लिए किसी शैक्षणिक योग्यता की जरूरत नहीं। इसके लिए जरूरी है आपका किसी एक दल से ऊबना या किसी एक दल से मुक्ति पाना। मैं अपने ऐसे कुछ मित्रों को जानता हूँ जिन्होंने एक से ज्यादा बार दल बदल किया। दल-बदल का आध्यात्मिक पक्ष ये है कि इसे घाट-घाट का पानी पीना कहते हैं।
आप याद कीजिये कि ये देश पहली बार दल-बदल से नहीं गुजर रहा। लंकापति रावण के भाई विभीषण दल-बदल का आदर्श उदाहरण है। वे दल-बदल न करते तो मुमकिन है कि कभी भी लंकापति नहीं बन पाते। विभीषण ने समझदारी से, होशियारी से, हिकमत अमली से काम लिया और सद्गति को प्राप्त हुए। आज भी दल-बदल करने वाला सबसे पहले विभीषण जी का आभार प्रकट करता है। करना भी चाहिए ,क्योंकि यदि विभीषण ने सत्ता-सुख पाने का ये आसान तरीका ईजाद न किया होता तो अधिकांश दलों में लोग चप्पलें घिसते-घिसते मर जाते लेकिन सत्ता सुख हासिल नहीं कर पाते। शरणागत को ही गति मिलती है।आजकल तो राजनीतिक दलों ने अपने-अपने यहां शरणार्थी शिविर खोल रखे हैं।
दल-बदल का हासिल ये है कि ये महंगे चुनाव खर्च से मुक्ति दिलाता है। अब जैसे इंदौर में, खजुराहो में या सूरत में कांग्रेस और सपा के प्रत्याशियों ने जिस साधुवाद से दल बदल किया उसका कितना ज्यादा लाभ इस गरीब देश को हुआ। जनता चुनाव प्रचार की कांय-कांय से बची। सड़कें विद्रूप होने से बचीं और केंद्रीय चुनाव आयोग का अमला चुनावी इंतजाम करने से, हल्दी लगी और न फिटकरी फिर भी रंग चोखा ही आया।
भगवान करे कि भारत जैसे लोकतंत्र में दल-बदलुओं को हमेशा परम पद की प्राप्ति हो। दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की जगह दल-बदलुओं कि लिए संविधान में आरक्षण की व्यवस्था की जाये। दल-बदलुओं को वे सारी सुविधाएं और सम्मान मिलना चाहिए जो किसी परमवीर चक्रधारी या भारतरत्न का तमगा गले में लटकाने वाले को हासिल हैं। मैं तो कहता हूँ कि तमाम दल-बदलुओं का मृत्योपरांत अंतिम संस्कार भी राजकीय सम्मान के साथ किया जाना चाहिए। पार्टी के प्रति निष्ठावान नेताओं और कार्यकर्ताओं को आत्मचिंतन कर पता लगाना चाहिए कि उन्हें उनकी निष्ठा के बदले आखिर मिलता क्या है? दल-बदलू वो सम्मान पल भर में हासिल कर लेता है जो एक निष्ठावान कार्यकर्ता या नेता पूरी उम्र किसी दल की सेवा करने के बाद भी प्राप्त नहीं कर पाता।
आपको बता दूँ कि दल-बदल करना बेहद आसान सद्कर्म है। बस अपने गले में पड़ा पुराना गमछा उतार फेंकिए और नया गमछा डाल लीजिये। सामने वाले के सामने कृतज्ञ भाव से झुकिए, गुलदस्ता लीजिये या दीजिये। एक ग्रुप फोटो खिंचवाइये और बस हो गया दल बदल। दल-बदल के साथ ही आपको घर की बैठक में लगीं पुरानी तस्वीरें भी बदलना पड़ती हैं, लेकिन ये महंगा सौदा नहीं है। इसके लिए किंचित बेशर्मी की चादर ओढ़ना पड़ती है और आपका चश्मा मय नंबर और फ्रेम के बदल जाता है।
(राकेश अचल-विभूति फीचर्स)