Wednesday, November 6, 2024

कहानी: शक का कोई इलाज नहीं

दीपानी ने नई बहू बनकर घर में पहली बार कदम रखा था। बड़ा अजीब सा लग रहा था। सब अपने-अपने काम में व्यस्त थे। वह अकेली अजनबी की तरह एक कमरे में बैठी थी। सासू अम्मा आते-जाते पूछ लेती, बेटा पानी लाऊं, भूख तो नहीं लगी? नींद आ रही होगी, थोड़ा आराम कर लो। वह बिना कुछ कहे बस न में सिर हिला देती।
भैरवी तू इतनी देर से कमरे में घुसी-घुसी क्या कर रही है? इधर तो आ? अम्मा ने अपनी मुंहबोली ननद की बेटी को आवाज लगाई। ‘अभी आई अम्मा कहकर वह दौड़ती हुई बाहर आई ‘क्या कुछ काम था? हां तू काम करती ही कहां है, जो तुझे कोई काम बताए। तुझे तो पैर पसार कर बस गप्पे लड़ाने की बोलो तो दिनभर नहीं थकेगी।

अच्छा अम्मा अब जो बोलोगी, करुंगी। बताओ क्या करना है? भैरवी कान पकड़ते हए बोली। आपसे काम की मना करना यानि शामत लाना है। दिन में सौ बार एक बात को दोहरा न दें तब तक चैन नहीं मिलता। ‘चल बंद कर अपना लेक्चर और भाभी के पास जाकर बैठ जा, बेचारी अकेली बैठी-बैठी बोर हो रही है, थोड़ी गप्पे-शप्पे लड़ाले। थोड़ा अच्छा लगेगा उसे।
भैरवी हिरनी की तरह कुलाचे मारती हुई दीपानी के पास जाकर बैठ कई। भाभी कितनी सुंदर है आप। लगता है ऊपर वाले ने फुर्सत में बनाया है आपको। बुरा न माने तो एक बात कहें…भैरवी सकुचाते हुए बोली।
हां-हां कहो न दीपानी धीरे से शरमाते हुए बोली।
पर सनातन भैया…. चलो छोड़ों हम भी क्या लेकर बैठ गए।
कहो-कहो दीपानी बोली।
बस कुछ नहीं,….हम तो यही कह रहे थे सनातन भैया का चाल चलन हमें तो कुछ ठीक नहीं लगता।
फिर धीरे से नजरें घुमाकर बाहर झांकते हुए बोली ‘वैसे अम्मा बाबूजी को तो सब पता है। कितनी ही बार मना किया कि देर रात तक घर से बाहर रहने के लिए। पर भैया तो जैसे चिकने घड़े हैं। अम्मा बाबूजी की बातों का तो उन पर जैसे कोई असर ही नहीं होता। शादी के बाद शायद सुधर जाएं, यही सोचकर शादी की इतनी जल्दबाजी की। सनातन भैया ने तो साफ  मना कर दिया था, बड़ी मुश्किल से तैयार हुए।
भैरवी की बातें सुनकर दीपानी का दिमाग घूमने लगा था। सारे सपने जो कई सालों से संजोकर रखे थे कुछ पल में ही वास्तविकता के धरातल पर टूटकर बिखरने लगे थे।
भैरवी, अपनी भाभी से खाने-पीने की पूछेगी कि यूं ही बातें फटकारती रहेगी। बाहर से अम्मा की आवाज आई।
अरे सॉरी भाभी मैं बातों ही बातों में आपको खाना खिलाना ही भूल गई ‘ अफसोस करते हुए उठी और जल्दी से खाना लेकर आ गई।
अरे भाभी आप तो कुछ खा ही नहीं रहीं ठीक से। अम्मा ने अपने हाथों से बनाया है आपके लिए।
तुम्हारी बातों से मेरा पेट पहले ही भर चुका है अब क्या खाऊं? दीपानी मन ही मन बुदबुदाई। ये कमबख्त भैरवी, इसे अभी ही सब कुछ बताना था। ‘
कुछ कहा आपने भाभी?
न..न.नहीं तो।
ओह, हमें लगा शायद आप कुछ कह रही हैं। लो भैया आ गए, अच्छा तो हम अब चलते हैं। वैसे हमने आपको जो बताया है, भैया को उसकी भनक भी मत लगने देना वरना हमारी खटिया खड़ी बिस्तर गोल हो जाएगा।
अरे दीपानी, तुमने तो कुछ खाया ही नहीं। पूरी थाली जैसी की तैसी रखी है
सनातन ने आते ही टोका।
कुछ तो खाना पड़ेगा, ऐसे काम नहीं चलेगा। रोटी का कौर तोड़ते हुए सनातन बोला।
प्लीज जिद मत करो। कुछ भी खाने का मन नहीं कर रहा। दीपानी रुखे स्वर में बोली।
घर की याद आ रही है न चलो मम्मी-पापा को फोन करके अभी बुला लेता हूं।
नहीं, नहीं ऐसा मत करना। नई-नई जगह में तो शुरु में ऐसा ही लगता है।
दीपानी ने बहाना बनाया।
ठीक है अपना ध्यान रखना कहकर सनातन बाहर चला गया।
अब दीपानी असमंजस में पड़ गई। सनातन को देखकर उसकी बातें सुनकर ऐसा कुछ तो नहीं लगता कि वह..
पर भैरवी क्यों झूठ बोलेगी भला। जहां आग होती है वहां तो धुंआ निकलता है।
शाम को फिर भैरवी आकर बैठ गई कैसा लगा सनातन भैया से बातें करके?
बहुत अच्छा, उनसे बातें करके परभर में ही सारी उदासी दूर हो गई।
यही तो उनकी कला है। बड़ी मीठी-मीठी बातें करते है ताकि किसी को उन पर शक न हो। अब आपको ही देखो पहली बार में ही कितनी इम्प्रेस हो गईं उनसे। मैं आपकी दुश्मन थोड़े ही हूं, न ही मेरी आपसे कोई दुश्मनी है। मुझे तो आपका मासूम चेहरा देखकर दया आ रही है। वैसे चिंता न कीजिएगा, कुछ नहीं बिगडऩे वाला है आपका, बस थोड़ी सावधानी रखने की जरूरत है। वरना ऐसा न हो कि वह लड़की आपकी जिंदगी बर्बाद कर दे।
भैरवी एक बार फिर बहुत कुछ कहकर चली गई और दीपानी के मन में हलचल मच गई।
सारी बहुत इंतजार करना पड़ा न क्या करुं नौकरी ही कुछ ऐसी है। सनातन अफसोस करते हुए बोला।
पहली ही रात को देर से घर आना…जरूर दाल में कुछ काला है अब दीपानी का शक और गहराने लगा।
सनातन एक बात पूछूं, पर अन्यथा न लो तो?
एक नहीं जितनी चाहो उतनी पूछो।
हम एक-दूसरे के बारे में अच्छी तरह जान ले तो ज्यादा अच्छा रहेगा।
मैं कुछ समझा नहीं, क्या कहना चाहती हो तुम?
क्या किसी लड़की से तुम्हारा कभी अफेयर था? अभी तुम्हारी लाइफ  में कोई लड़की है?
ओफो दीपानी, मोहब्बत की बातें करने की बजाय ये कैसी बातें लेकर बैठ गईं तुम। शायद इस बात को लेकर तुम परेशान हो। ‘अरे बाबा! न ही मेरी जिंदगी में कोई लड़की आई और न ही मेरा किसी से अफेयर था और न है।
सुबह दीपानी ने पूछा ‘अच्छा भैरवी ये बताओ तुम्हें कैसे पता कि सनातन किसी लड़की से प्रेम करते हैं?
हमें सब पता है फोन पर लगे पड़े रहते हैं। हंस-हंसकर बातें करते हैं। बातें करने के तरीके से ही समझ जाते हैं हम तो कि किससे बातें कर रहे हैं।
अनवी नाम है उस लड़की का। अब तो यकीन करेंगी हमारी बातों पर। भैरवी ने आत्मविश्वास भरे स्वर में कहा।
शक की कोई दवा नहीं होती। अब दीपानी को पक्का यकीन हो गया था कि भैरवी सही और सनातन गलत है।
वह दिनभर बस इसी बारे में सोचा करती। उसका काम में मन नहीं लगता। एक काम भी सही नहीं करती।
आज तो सब्जी में नमक इतना ज्यादा हो गया कि सनातन पहला कौर खाते ही भड़क गया। एक काम ढंग से नहीं होता तुमसे, जरा सब्जी खाकर देखना… कहां रहता है तुम्हारा ध्यान आजकल।
ध्यान तो तुम्हारा भटका हुआ है फिर भला मेरा मन कहां से लगेगा। न टाइम से घर आते हो न ठीक से बातें करते हो, हर वक्त काम का बहाना। संडे भी नहीं है तुम्हारे पास मुझे देने के लिए। न जाने किसके चक्कर में पड़कर अपना घर बर्बाद कर रहे हो। ‘ दीपानी सनातन पर बुरी तरह टूट पड़ी। आज उसने अपने मन का सारा गुबार निकाल लिया था।
अच्छा तो यह सब चल रहा है तुम्हारे मन में इसलिए तुम इतनी उखड़ी-उखड़ी सी रहती हो हमेशा। वैसे यह सब बातें तुम्हें पता कहां से चली?
दीपानी कुछ कहती इससे पहले अम्मा बोल पड़ीं। बेटा सनातन ऐसा वैसा लड़का नहीं है। किसी की बातों में आकर तूने बिना सोचे-समझे इतना बड़ा इल्जाम कैसे लगा दिया?
अम्मा बगैर आग के धुआं नहीं निकलता। दीपानी ने सफाई पेश की।
जरुर इस भैरवी की बच्ची ने ही तेरे कान भरे हैं। वही आती है तेरे पास। अम्मा बोली।
ओह तो उस भैरवी को अपना जासूस बनाकर रखा है तुमने, जिसने दूसरों का घर फुड़वाने के अलावा आज तक कोई काम ही नहीं किया। सनातन गुस्से से भड़कते हुए बोला।
इतने में भैरवी आ गई। ‘अच्छा हुआ तू सही समय पर आ गई। अम्मा उसे देखते ही बोल पड़ी।
तूने सनातन के बारे मेें क्या-क्या उल्टा सीधा बोल दिया। उसकी तो नौकरी ही ऐसी है देर से आना उसकी मजबूरी है। इसका मतलब यह तो नहीं कि वह चरित्रहीन है।
नहीं अम्मा, हमने ऐसा कब कहा। हम तो सुनी-सुनाई बात बता देते हैं। भाभी को। इसका मतलब यह तो नहीं कि वह शक करने लगे भैया पर।
हमारे हिसाब से तो सनातन भैया से अच्छा कोई है ही नहीं। भैरवी ने मौका देखकर फौरन अपना पैंतरा बदल दिया।
दीपानी उसके इस व्यवहार से हतप्रभ रह गई। अब वह अच्छी तरह समझ गई थी उसकी चाल।
भैरवी की बातों में आकर उसने सनातन पर बेवजह शक किया। उसे अपने किए पर पछतावा हो रहा था। माफी मांगने के लिए उसकी निगाहें सनातन को टटोलने लगी पर वह तो गुस्से में घर छोड़कर जा चुका था।
अब दीपानी ने सोच लिया था कि कभी किसी पर बेबुनियाद शक नहीं करेगी। उसकी निगाहें अब बेसब्री से सनातन के लौटने का इंतजार कर रही थीं।
प्रमिला शर्मा-विनायक फीचर्स

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