मनुष्य का स्वयं से अधिक विशलेषक और सुधारक कोई दूसरा नहीं हो सकता। यहां प्रश्र यह है कि व्यक्ति स्वयं को कितना समझ पाता है और स्वयं को सुधार कैसे पाता है, कितना और किस सीमा तक सुधार पाता है।
किसी व्यक्ति द्वारा की गई स्वयं की समीक्षा का महत्व निर्विवाद होता है। मनुष्य की जीवनचर्या उसकी सम्पूर्ण गतिविधियों का प्रदर्शन कर देती है। एक व्यक्ति कैसे अपना पूरा दिन व्यतीत करता है, यही उसकी दिनचर्या है। ऐसे ही दिनों, महीनों और वर्षों को एक साथ देंखे तो जीवनचर्या सामने आ जाती है।
इस प्रकार एक व्यक्ति का सम्पूर्ण व्यक्तित्व एवं कृतित्व उभरकर सामने आ जाता है। हमारी जीवनचर्या कैसी है, इस पर हर व्यक्ति को नजर रखनी चाहिए। यदि यह अच्छी है तो लोग उसकी प्रशंसा करेंगे। यदि कुछ कमियां हैं तो इसमें वे भी सामने आ जायेगी।
लोग किसी व्यक्ति पर टीका-टिप्पणी करने का कोई अवसर खोते ही नहीं है। बेहतर यही होगा कि इस कार्य को व्यक्ति स्वयं करे और अपनी जीवनचर्या की अन्वीक्षा करके उसमें सुधार के प्रयास करें। प्रमुख लोगों के निकट रहने वाले कई बार कुछ कहने से बचते हैं चाहे इसके पीछे चाटुकारिता की भावना हो अथवा भय हो।
इसलिए श्रेष्ठ यही है कि प्रमुख व्यक्तियों को आत्म समीक्षा अवश्य करनी चाहिए, सहयोगियों से विमर्श किया जा सकता है, किन्तु समीक्षा स्वयं ही करनी चाहिए, क्योंकि प्रमुख व्यक्तियों के क्रियाकलापों का प्रभाव दूर तक होता है।