लखनऊ। लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन में भले ही बसपा मुखिया मायावती शामिल न हों, लेकिन उनके बयान ने बसपा के इसमें शामिल होने की उम्मीद अभी भी बरकार रखी है। बीते दिनों मायावती की सपा को दी गई नसीहत के सियासी मायने भी तलाशे जाने लगे हैं। इसे मायावती की ओर से गठबंधन को लेकर खिड़की खुली रखने के संकेत की तरह देखा जा रहा है।
दरअसल, मायावती ने बीते दिनों एक बयान में किसी का नाम लिये बगैर कहा कि विपक्ष के गठबंधन में बसपा सहित अन्य जो भी पार्टियां शामिल नहीं हैं, उनके बारे में किसी का भी फिजूल टिप्पणी करना उचित नहीं है। मेरी उन्हें सलाह है कि वह इससे बचें, क्योंकि भविष्य में देश में जनहित में कब किसको, किसकी जरूरत पड़ जाए, कुछ भी कहा नहीं जा सकता।
बसपा प्रमुख ने कहा कि टीका-टिप्पणी करने वाले ऐसे लोगों और पार्टियों को बाद में काफी शर्मिंदगी उठानी पड़े, यह ठीक नहीं है। इस मामले में समाजवादी पार्टी खासतौर पर इस बात का जीता-जागता उदाहरण है।
सियासी जानकर बताते हैं कि बसपा मुखिया मायावती सियासी दांव-पेंच खूब जानती हैं। वो भली-भांति जानती हैं, कब कौन सी बात करनी है। जिसका असर राजनीति में पड़ेगा।
समाजवादी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि 28 दलों वाले विपक्षी गठबंधन में बसपा को शामिल करने के पक्ष में सपा नहीं है। क्योंकि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा व बसपा ने गठबंधन कर चुनाव लड़ा था। उसमें बसपा को सपा के मुकाबले दोगुनी यानी 10 सीटें मिली थी। बसपा को फायदा हुआ था और सपा को नुकसान। उसे बसपा का वोट ट्रांसफर नहीं हो पाया था। ऐसे में इनको गठबंधन में लाने का कोई फायदा नहीं है।
कांग्रेस में अक्सर कुछ नेता बसपा की इंडिया गठबंधन में एंट्री के पक्ष में नजर आए हैं। बसपा बार-बार यह जरूर कहती रही है कि हम 2024 का चुनाव अकेले लड़ेंगे।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक रतनमणि लाल कहते हैं कि मायावती को लोकसभा चुनाव में किसके साथ गठबंधन करना है या नहीं, उन्होंने कुछ तय नहीं किया है। वो सारे ऑप्शन खुले रखना चाहती हैं। मायावती हर दलों से ज्यादा स्पष्टवादी हैं। इसी कारण उन्होंने सभी दलों को चेता दिया है। वो किसी भी गठबंधन में शामिल हो सकती हैं। लेकिन, वो अभी अपने पत्ते खोलेंगी नहीं।
वरिष्ठ राजनीतिक जानकार वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि अखिलेश को इस बात का अंदाजा भी है कि बसपा के आने से उनकी केंद्रीय राजनीति फीकी पड़ सकती है। बसपा ज्यादा सीटें भी मांगेगी। यही कारण है कि बसपा को गठबंधन में शामिल करने की कोशिश में जुटी कांग्रेस अब अखिलेश के दबाव के आगे ढीली पड़ती दिख रही है।
मायावती अभी फिलहाल कोई जल्दबाजी नहीं करेंगी। वह सोच समझकर गठबंधन करेंगी। वह नहीं चाहती हैं कि उनके ऊपर किसी की बी-टीम का आरोप लगे। न ही चाहेंगी कि भाजपा से कोई ऐसा राजनीतिक विवाद हो, जिसके कारण उनके ऊपर जांच जैसी कोई मुसीबत आए। इस कारण मायावती ने कुछ मुद्दों पर विपक्ष का साथ दिया है तो कुछ मुद्दों पर वह सरकार के साथ भी खड़ी नजर आई हैं। उन्होंने भले ही बहुत कुछ कह दिया हो, लेकिन गठबंधन को लेकर अभी तक पत्ते नहीं खोले हैं।
कांग्रेस के प्रवक्ता अंशू अवस्थी कहते हैं कि लोकतंत्र में सभी को अपनी बात कहने का अधिकार है, कांग्रेस पार्टी ने दलित समाज के उत्थान के लिए अभूतपूर्व काम किए हैं। मायावती ने जो बात कही है, वह बिल्कुल सच है। हम इस बात को शुरू से कहते आ रहे हैं कि 2024 का लोकसभा चुनाव देश के संविधान को, लोकतंत्र को बचाने का चुनाव है। हम चाहते हैं कि समान विचारधारा को मानने वाले और संविधान के साथ खड़े हुए लोग एक साथ आएं, यही देश के लिए और देश के लोगों के हित में है।