Friday, February 28, 2025

मेडिकल कॉलेज के चिकित्सकों का कमाल, एएसडी डिवाइस लगाकर मरीज की बचाई जान

मेरठ। लाला लाजपत राय स्मारक मेडिकल कॉलेज मेरठ पश्चिमी उत्तरप्रदेश का पुराना चिकित्सालय है जो कई वर्षों से जनहित में अपनी स्वास्थ्य सेवाये दे रहा है। इसी क्रम में मेडिकल कॉलेज के चिकित्सकों ने कमाल करते हुए सफलतापूर्वक एएसडी डिवाइस लगाकर महिला मरीज की जान बचाई है।
मरीज लक्ष्मी, 22 वर्ष/महिला, निवासी मेरठ है। जो काफ़ी लंबे समय से सांस फूलने की बीमारी से पीड़ित थी। मरीज का इलाज काफी समय प्राइवेट चिकित्सालय में चल रहा था, परंतु कोई आराम नहीं मिल पा रहा था। मरीज़ ने मेडिकल कॉलेज मेरठ के कार्डियोलॉजी विभाग में विभागाध्यक्ष डॉ. धीरज सोनी से संपर्क किया। मरीज़ की पूरी बात सुनने के पश्चात उनको ईको जाँच कराये जाने की सलाह दी गई। ईको जाँच के उपरांत पता चला कि मरीज के दिल में काफी बड़ा छेद है। जिसे एएसडी (एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट) कहा जाता है।

 

मुजफ्फरनगर से नोएडा के लिए बस सेवा जल्द होगी शुरू, रोज सुबह 2 बसें जाएंगी, मंत्री कपिल देव ने दिए निर्देश

 

 

 

 

डॉ. धीरज सोनी विभागाध्यक्ष कार्डियोलॉजी विभाग ने बताया कि Atrial Septal Defect (ASD) एक जन्मजात हृदय दोष है। यह हृदय के दो ऊपरी कक्षों (एट्रिया) के बीच की दीवार (सेप्टम) में एक छेद होता है। इस दोष की वजह से, हृदय के बाएं आलिंद से रक्त दाएं आलिंद में असामान्य रूप से बहता है। इससे हृदय को ज़्यादा मेहनत करनी पड़ती है।
एएसडी के बारे में ज़रूरी बातें कुछ एएसडी छोटे होते हैं और अपने-आप बंद हो जाते हैं। कुछ एएसडी बड़े होते हैं और इलाज की ज़रूरत होती है। एएसडी की पहचान अक्सर जीवन के पहले साल में हो जाती है। एएसडी के कारण बचपन में कोई खास लक्षण नहीं दिखते। एएसडी का पता आमतौर पर इकोकार्डियोग्राम या मर्मर परीक्षण के दौरान चलता है। एएसडी के इलाज के लिए कैथीटेराइज़ेशन या सर्जरी की जा सकती है।

मुज़फ्फरनगर में कोतवाल ने हड़का दिया था भाकियू कार्यकर्ताओं को, गुस्साए भाकियू नेताओं ने थाने ने भट्टी चढ़ाई, धरना शुरू

 

 

 

एएसडी के लक्षण और उपचार
एएसडी के लक्षणों के लिए मूत्रवर्धक और अतालतारोधी दवाएं दी जा सकती हैं। एएसडी को बंद करने के लिए कैथीटेराइज़ेशन या सर्जरी की जा सकती है। एएसडी के बाद, हृदय ऊतक ठीक होने में समय लगता है। यह एक जन्मजात बीमारी है। जिसमें बच्चे के दिल में जन्म से ही छेद होता है। इसमें मरीज को सांस फूलना, घबराहट, धड़कन बढ़ना, चक्कर आना आदि जैसी शिकायतें होती हैं। मेडिकल कॉलेज मेरठ के कार्डियोलॉजी विभाग में इकोकार्डियोग्राफी की जांच द्वारा पता लगा कि मरीज को 25 मिली मीटर का दिल में एक छेद है एवं मरीज़ को बताया गया कि दिल में 25 मिमी का छेद है। मरीज के परिजनों को भी उपरोक्त के संबंध में समझाया गया कि डिवाइस क्लोजर प्रक्रिया द्वारा इसे सफलतापूर्वक बंद किया जा सकता है। मरीज के घरवाले तैयार हो गए। मरीज को भर्ती करके उसके दिल में सफलतापूर्वक 28 मिमी का ASD डिवाइस लगाया गया। प्रक्रिया उपरांत मरीज अब पूरी तरह से ठीक है। डिवाइस क्लोजर प्रक्रिया का खर्चा प्राइवेट चिकित्सालय में लगभग दो से ढाई लाख रुपए का आता है परंतु मेडिकल कॉलेज मेरठ में मरीज को यह डिवाइस क्लोजर सरकार द्वारा दी जा रही विभिन्न सुविधाओं के क्रम में बिल्कुल फ्री लगाया गया। प्राचार्य डॉ. आरसी गुप्ता ने उपरोक्त सफलता हेतु  कार्डियोलॉजी विभाग को शुभकामनाएँ दी हैं।

- Advertisement -

Royal Bulletin के साथ जुड़ने के लिए अभी Like, Follow और Subscribe करें |

 

Related Articles

STAY CONNECTED

74,854FansLike
5,486FollowersFollow
143,143SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय