मेरठ। मेरठ में हुए करोड़ों रुपये के स्टांप घोटाला मामले में उपनिबंधकों को नोटिस की तैयारी शुरू हो गई है। महानिरीक्षक निबंधन अमित गुप्ता ने तत्कालीन उपनिबंधकों को नोटिस जारी कर उनसे स्पष्टीकरण मांगा है। नोटिस में कहा गया है कि पांच साल तक स्टांपों की जांच क्यों नहीं की गई। पांच साल के कार्यकाल में जो भी उपनिबंधक, बाबू और कर्मचारी थे, इसकी जानकारी जुटाने का काम विभाग ने शुरू किया है।
मुज़फ्फरनगर में खेत में काम कर रहे युवक की करंट लगने से दर्दनाक मौत, गांव में शोक
तीन साल में 997 रजिस्ट्री में पांच हजार से ऊपर का भौतिक स्टांप लगाने का खुलासा हुआ है। इसमें सरकार को करीब 7.50 करोड़ रुपये की हानि हुई है। सिविल लाइन, परतापुर थाने में पांच मुकदमे दर्ज हुए हैं। पुलिस ने स्टांप घोटाले के मामले में मुख्य आरोपी विशाल वर्मा सहित पांच आरोपियों को गिरफ्तार किया, जोकि जेल में बंद हैं। नासिक से जांच रिपोर्ट आई है, जिसमें स्टांप असली मिलने की पुष्टि हुई है। बताया गया कि 10-12 साल पहले बड़ी-बड़ी प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री में लगे भौतिक स्टांप को दोबारा रजिस्ट्री में लगाया गया है। इसमें बिल्डरों की भूमिका मिली है।
मेरठ दौरे के दौरान प्राक्कलन समिति ने कोषागार और रजिस्ट्री विभाग के अधिकारी-कर्मचारियों की भूमिका की जांच करने के निर्देश दिए थे। जिस पर महानिरीक्षक निबंधक ने तीन साल से बढ़ाकर जांच पांच साल के समय सीमा में हुए रजिस्ट्री में स्टांपों के बारे में जानकारी मांगी है। उपनिबंधकों को नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण मांगा गया। पांच साल तक रजिस्ट्री में पुराने स्टांप लगते रहे और उनकी जांच तक नहीं हुई। इसके विभागीय अधिकारियों की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं।