Monday, November 11, 2024

धर्मनिरपेक्षता वाले देश में अल्पसंख्यकवाद विखंडऩ का बड़ा कारण

भारत में स्वतंत्रता के उपरान्त से ही अल्पसंख्यकवाद ने जन्म ले लिया था। भारत के संविधान में अल्पसंख्यक की कोई परिभाषा भी नहीं दी गई है। इसलिए भारत की 140 करोड़ जनसंख्या में समुदाय विशेष की 40 करोड़ की आबादी भी अल्पसंख्यक मानी जाती है तथा 1 लाख वाली संख्या के समुदाय की आबादी भी अल्पसंख्यक मानी जाती है।

अल्पसंख्यक की अवधारणा गैर संविधानिक के होते हुए भी कांग्रेस के द्वारा थोपी गयी थी। अब यह एक ऐसा विधान हो गया है कि देश की अख्ंड़ता के लिए एक गम्भीर चुनौती बन चुका है। एक पंथनिरपेक्ष अथवा धर्मनिरपेक्ष संविधान को अपनाने वाले भारत देश में कोई भी समुदाय अल्पसंख्यक बन जाता है। अब कोई भी धर्म के अनुसार समुदाय बन कर देश व प्रदेश की सरकार से अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त करने की मांग करता रहता है। देश के लोकतंत्र की वोट की राजनीति में नित्य नये नये अल्पसंख्यक समुदाय बनते जाते है।

भारत का संविधान भारत के प्रत्येक  नागरिक को धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक व राजनीतिक समानता का अधिकार प्रदान करता है तो फिर ऐसे समाज में अल्पसंख्यक कौन रह जाता है।? अल्पसंख्यकवाद देश की एकता व अखंड़ता में बाधक है। यह शब्द अंग्रेजों के द्वारा गढ़ा गया था तथा उसी के आधार पर देश का बंटवारा हो गया था। मजाक यह भी है कि अल्पसंख्यकता को देश का कोई कानून स्पष्ट रुप से परिभाषित भी नहीं करता है। एक समुदाय राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक है तो वही समुदाय किसी अन्य राज्य में बहुसंख्यक होता है।

भारतीय संविधान में अल्पसंख्यक की परिभाषा नहीं दी गई है। केवल अनुच्छेद 29 एवम् 30 की शीर्षक ‘अल्पसंख्यक वर्गो के हित संरक्षण एवम् शिक्षा संस्थानों के संचालन’ है। मजहबी अल्पसंख्यकों की भारी संख्या है परन्तु उन्हें अल्पसंख्यकों की विशेष सुविधाएं प्राप्त है। अल्पसंख्यक होने का औचित्य क्या है।? किसी समुदाय अथवा समूह को अल्पसंख्यक घोषित करने की अर्हता क्या है? भारत में सभी नागरिकों को मौलिक अधिकार संविधान के द्वारा प्रदत्त है।

अल्पसंख्यकों के लिए अलग से विचार तार्किक नहीं है। भारत में मुस्लिम, यहूदी, पारसी, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन इत्यादि अल्पसंख्यक है। देश में हिन्दू बहुसंख्यक है परन्तु पंजाब में 38.40 प्रतिशत, अरुणाचल में 29 प्रतिशत, मणिपुर में 31.39 प्रतिशत, जम्मू व कश्मीर में 28.44 प्रतिशत, नगालैंड़ में 8.75 प्रतिशत, मिजोरम में 2.75 प्रतिशत है। तो इन राज्यों में हिन्दुओं को अल्पसंख्यक क्यों नहीं समझा जाता है?

देश संविधान से चलता हैं। संविधान में देश का प्रत्येक नागरिक बराबर है। धर्म के आधार पर जाति व धर्म विशेष के लोगों को अल्पसंख्यक का दर्जा देकर राष्ट्र के संसाधनों  का दोहन कराना अनुचित है। इसकी समीक्षा की जानी चाहिए। करोड़ों की जनसंख्या वाले समुदायों को अल्पसंख्यक कैसे माना जा सकता है।? अल्पसंख्यक के नाम पर दी जाने वाली सुविधाओं  को रोकना होगा।

भारत के आठ राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक होने पर भी वह इस व्यवस्था का लाभ उठाने से वंचित रहता है। देश के कथित बुद्धिजीवी व तुष्टिकरणवादी नेता इस में बाधा उत्पन्न कर रहे है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी देश की सरकार को इस बात पर गम्भीर विचार करने को कहा है। अल्पसंख्यकों की पहचान के लिए केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में स्टेटस रिपोर्ट जमा करके माना है कि यह एक संवेदनशील मामला है। इसके दूरगामी परिणाम होंगे। इस मामले में देश के मात्र 14 राज्यों ने अपना मत दे दिया है जबकि 19 राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशों की अंतिम राय अभी तक केन्द्र सरकार को प्राप्त नहीं हुई है । इसलिए इन राज्यों के द्वारा और समय मांगा गया है।

प्रसिद्ध वकील अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल करते हुए राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग कानून 2004 की धारा 2 (एफ) को चुनौती दी है कि राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान की जानी चाहिए। एक अन्य याचिका में सुप्रीम कोर्ट को याचना की गई है कि अल्पसंख्यक को परिभाषित किया जाय तथा जिला स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान के लिए दिशा निर्देश तय किये जायें। सुप्रीम कोर्ट ने इन दोनों याचिकाओं को एक साथ संलग्न कर दिया है तथा केन्द्र सरकार को इनका जबाब देने के लिए कहा है।

केन्द्र सरकार के अल्पसंख्यक मंत्रालय ने अक्टूबर 2022 को स्टेटस रिपोर्ट जमा करके कहा कि राज्यों को अपना मत प्रकट करने के लिए कुछ और समय दिया जाय। केन्द्र सरकार ने सभी राज्यों, केन्द्र शासित प्रदेशों, गृह मंत्रालय, कानून मंत्रालय, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग तथा राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग के साथ विचार किया है परन्तु अभी और अतिरिक्त समय दिया जाना चाहिए। कुछ समुदाय राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक है परन्तु राज्य स्तर पर दूसरा समुदाय अल्पसंख्यक है। जिला स्तर पर अन्य समुदाय अल्पसंख्यक है। लेकिन यदि राज्यों के स्तर पर किसी समुदाय को अल्पसंख्यक घोषित करने की मांग होगी तो फिर इस तरह की मांगों का कोई अंत होने वाला नहीं है।

देश में अमीर व गरीब दो ही वर्ग होने चाहिए और उसी आधार पर सरकारी नीतियों को बनाना चाहिए परन्तु देश में अल्पसंख्यकवाद व बहुसंख्यकवाद की राजनीति चल रही है। इससे देश का भला नहीं होने वाला है। अल्पसंख्यकवाद से इस काल्पनिक भय को उत्पन्न किया जाता है कि उनकी उपेक्षा की जा रही है जिसमें अल्पसंख्यकों के लिए विशेष अधिकारों की मांग की जाती है। कुछ मामलों में उन्हें विशेष अधिकार भी दिये गये है। इससे बहुसंख्यकों को यह संदेश मिलता है कि वे दोयम दर्जे के नागरिक है तथा अल्पसंख्यक स्वंय को विशिष्ट मानते है तथा उन्हें विशेष संरक्षण की आवश्यकता है। इन दोनों धारणाओं से यह घारणा उत्पन्न होती है कि देश के सभी नागरिक बराबर नहीं है जबकि संविधान देश के सभी नागरिकों को बराबरी का दर्जा देता है।

अल्पसंख्यक बनाम बहुसंख्यक की बहस एक नागरिक को दूसरे से अलग करती है। धार्मिक और शैक्षिक मामलों में जैसे अधिकार अल्पसंख्यकों को प्राप्त है वैसे ही बहुसंख्यकों को नहीं दिये गये है जिससे लगता है कि एक ही देश में दो विधान चल रहे है। अनुच्छेद 15 में धर्म, मूल, वंश, जाति, लिंग या जन्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है परन्तु अल्पसंख्यक हितैषी कानून इस मौलिक अधिकार का स्पष्ट उल्लंधन है। मौलिक अधिकार चूंकि संविधान का मूल ढ़ांचा है। अत: यह मूल ढांचा बाध्यकारी है। परन्तु अल्पसंख्यक कई प्रकार की सुविधाऐं लेते है।

अल्पसंख्यकवादी राजनेता और दल अल्पसंख्यकों को निरन्तर उकसाते रहते है कि उनकी (अल्पसंख्यकों की) उपेक्षा हो रही है। अल्पसंख्यकों पर कट्टरपंथी साम्प्रदायिकता हावी रहती है। इसी साम्प्रदायिकता के कारण देश का विभाजन वर्ष 1947 में हो गया था। संविधान सभा की अल्पसंख्यक अधिकारों की समिति के सदस्य पी सी देशमुख ने कहा था कि अल्पसंख्यक से अधिक क्रूरतापूर्ण और कोई शब्द नहीं है। इसी कारण देश बंट गया। एच सी मुखर्जी ने कहा कि यदि हम एक राष्ट्र चाहते है तो मजहब के आधार पर अल्पसंख्यकों को मान्यता नहीं दे सकते।

तजम्मुल हुसैन ने कहा कि हम अल्पसंख्यक नहीं है। यह शब्द अंग्रेजों ने निकाला था। वे देश से चले गये। अब इस शब्द को डि़क्शनरी से हटा देना चाहिए।  स्वयं नेहरु जी ने कहा था कि सभी वर्ग विचारधारा के अनुसार समूह बना सकते है। धर्म या मजहब आधारित वर्गीकरण नहीं किया जा सकता। सरदार पटेल ने अल्पसंख्यक वादियों से प्रश्न किया था कि आप  स्वयं को अल्पसंख्यक क्यों मानते है? पंथ व मजहब के आधार पर अल्पसंख्यक विशेषाधिकार अलगाववाद का विचार देते है तथा इस सुविधा से वंचित बहुसंख्यक वर्ग को निराश करते है। इसी कारण अल्पसंख्यकवाद राष्ट्रीय एकता के लिए गंभीर खतरा है। वर्तमान में इस देश में अल्पसंख्यकवाद से मुक्ति प्राथमिकता के आधार पर की जानी चाहिए।
-ड़ा. सूर्य प्रकाश अग्रवाल

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