नवरात्र में नौ देवियों की पूजा का विशेष महत्व है। यह पर्व शक्ति साधना का पर्व कहलाता है। वैज्ञानिक दृष्टि से जिस समय नवरात्र आते हैं वह काल संक्रमण काल कहलाता है। वातावरण में विशेष परिवर्तन होता है। जिसमें अनेक प्रकार की बीमारियां होने की संभावना रहती है। उपवास के माध्यम से शरीर के बढ़े हुए या कम हुए तापमान को नियंत्रित कर शुद्ध आचार-विचार, आहार के द्वारा नई ऊर्जा प्राप्त करते हैं। ऐसा करने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ जाती है।
कहा जाता है कि नवरात्र रिद्धि-सिद्धि लेकर आते हैं। मातृ शक्तियों की पूजा आराधना हमारे धर्म की विशेषता ही नहीं अपितु मूलाधार भी है।
भगवान श्री विष्णु के साथ लक्ष्मीजी, शिवजी के साथ पार्वती जी, भगवान राम के साथ सीताजी, कृष्ण के साथ राधा की पूजा तो होती ही है स्वतंत्र रूप से मां भगवती की पूजा आराधना तथा भगवती के जागरण भी होते हैं।
वासंतिक नवरात्र से भारतीय नववर्ष शुरु होता है। विक्रमी संवत् का प्रारंभ गुप्त वंश के महान सम्राट विक्रमादित्य के विदेशी आक्रमणकारी (जो लगभग अजेय थे) शंकों को परास्त कर विजय स्मृति के रूप में प्रारंभ किया था। भारत में प्रचलित सभी काल गणनाओं के अनुसार सभी संवतों का प्रथम दिन भी चैत्र शुक्ल प्रथम ही हैं। प्रचलित मान्यताओं के साथ मर्यादा पुरुषोत्तम राम का राज्याभिषेक का दिन भी चैत्र शुक्ल प्रथमा ही है। सृष्टि के निर्माण के प्रारंभ की तिथि भी चैत्र शुक्ल प्रथमा है।
नवरात्र के तहत नौ दिन मां भगवती के नौ रूपों की पूजा अर्चना कर उपवास रखा जाता है। वर्ष में दो बार आने वाले इन नवरात्रों के तहत दुर्गा मंदिरों में विशेष उत्सव और समारोह होते हैं। अधिकांश भारतीय परिवारों में देवी की विशेष पूजा व हवन भी किये जाते हैं। इन दिनों देवी के निमित्त व्रत रखने का विधान है। कुछ लोग केवल एक लौंग का जोड़ा खाकर ही व्रत करते हैं जबकि कुछ लोग फलाहारी व्रत रखते हैं। यदि नौ दिन के व्रत रखना संभव न हो तो पहले और अंतिम नवरात्र का व्रत रखना चाहिए। इसका समापन कन्याओं को भोजन करवाकर उन्हें वस्त्र, पैसे आदि भेंट करने से होता है।
नवरात्रों में मंदिर जाएं या नहीं घर पर एक निश्चित स्थान पर पूजन करने का शास्त्रों में विधान है। पूजा स्थल का यदि फर्श कच्चा है तो गोबर से लीपकर और यदि फर्श पक्का है तो पानी से धोकर वहां लकड़ी का एक पटरा रखा जाता है और घड़े या लोटे में जल भरकर कलश की स्थापना की जाती है। सिंहवाहिनी भगवती दुर्गा का चित्र पटरे पर रखा जाता है। गणेश जी की मूर्ति, मौली या फिर पीत रंग का कपड़ा लपेटकर पटरे पर रखा जाता है। कलश पर नारियल को लाल कपड़े से लपेटकर रखा जाता है। इस प्रकार आठ या नौ दिन पूजा के बाद मां भगवती और रामनवमी की पूजा कर कन्या का पूजन भी किया जाता है। कन्याओं को रोली का टीका लगाकर उनके हाथ में मौली बांधी जाती है। कई लोग घर में रखे गये श्री दुर्गा सप्तशती पाठ का विधान अनुसार पूजा के बाद हवन भी करते हैं। ब्रह्म पुराण के अनुसार आज इसी दिन ब्रह्मा जी की पूजा आराधना का शास्त्रीय विधान भी है।
मां भगवती के नौ रूप इस प्रकार हैं- शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघण्टा, कुष्मांडा, स्कन्द माता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी एवं सिद्धदात्री। वैसे तो वर्ष में चार बार नवरात्रों का आगमन होता है। लेकिन चैत्र शुक्ल पक्ष एवं अश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक आने वाले नवरात्रों का विशेष महत्व है।
नवरात्रों में भक्तगण से व्रत अथवा उपवास रखकर मां भगवती की विधि-विधान पूर्वक पूजा अर्चना करते हैं। जनमानस में मां भगवती से जुड़ी नवरात्रों की कई कथायें प्रचलित है। शरद ऋतु एवं वसन्त ऋतु के मिलने के कारण शारीरिक एवं मानसिक कष्ट लोगों को ज्यादा झेलने पड़ते हैं। इस दौरान सब्जियों व फलों की उपज में भी कमी आ जाती है। साथ ही दूषित वायु एवं जल के कारण कई प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं। ऐसे मौसम में नवरात्रों में रखे व्रत उपवास एवं खानपान के संयम का फल चिरस्थायी होता है।
नवरात्रों में किये गये देवी पूजन, हवन, धूप-दीप आदि से घर का वातावरण व आत्मा तक को एक अलौकिक शक्ति एवं शुद्धि की प्राप्ति होती है। हमारे धार्मिक ग्रन्थों में देवी पूजा की कई विधियां, व्रत एवं आत्म संयम का वर्णन किया गया है किन्तु आधुनिक युग के परिवेश में वेद पुराणों में लिखित पूजा का विधान से पालन कर पाना प्रत्येक मनुष्य के लिए संभव नहीं है। दिखावे के लिए किया गया पूजा पाठ, समय-शक्ति का अपव्यय होता है। इसलिए समय, साधन और श्रद्धा के अनुसार नवरात्रों से संबंधित जप एवं मंत्र के भावार्थ को अपने जीवन में सार्थक करने का प्रयत्न किया जाना चाहिए। आंतरिक व बाहरी स्वच्छता व शक्ति प्राप्ति का सहज मार्ग मां दुर्गा के नवरात्रों के लिए व्रत पालन का संकल्प बिना किसी दबाव, दिखावे अथवा नि:स्वार्थ और श्रद्धा अनुसार किया जाना चाहिए।
चेतन चौहान – विभूति फीचर्स