काठमांडू। संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में इजराइल के खिलाफ आए प्रस्ताव पर भारत के साथ नेपाल भी अनुपस्थित रहा। नेपाल सरकार के इस फैसले से इजराइल को लेकर उसके रुख में बदलाव आया है। इससे पहले संयुक्त राष्ट्र में इजराइल के खिलाफ आए प्रस्ताव पर नेपाल ने फिलिस्तीन के पक्ष में मतदान किया था जिसके बाद काफी आलोचना हुई थी।
19 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र में इजराइल द्वारा फिलिस्तीन की भूमि एक वर्ष के भीतर छोड़ने के प्रस्ताव पर हुए मतदान में नेपाल अनुपस्थित रहा। हालांकि यह प्रस्ताव 124 मतों के साथ पारित हो गया। भारत, नेपाल सहित 43 देश इस मतदान के दौरान अनुपस्थित रहे जबकि अमेरिका सहित 14 देशों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया।
नेपाल के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अमृत राई ने कहा कि इस बार के मतदान में नेपाल द्वारा अनुपस्थित रहने के पीछे देश की तटस्थ कूटनीति है। राई ने कहा कि इजराइल के साथ हमारे मित्रवत संबंध हैं। हजारों नेपाली नागरिक वहां रोजगार के सिलसिले में रहते हैं, इसलिए उसके खिलाफ आए प्रस्ताव का समर्थन करने का सवाल ही नहीं उठता।
इससे पहले 28 अक्टूबर 2023 को इजराइल द्वारा फिलिस्तीन पर हमले के खिलाफ आए प्रस्ताव में नेपाल ने फिलिस्तीन के पक्ष में मतदान किया था। उस समय सरकार के इस फैसले का जमकर विरोध हुआ था। इतना ही नहीं नेपाल में इजराइल के राजदूत ने तत्कालीन प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहाल प्रचण्ड और विदेश मंत्री नारायणकाजी श्रेष्ठ से मुलाकात कर अपनी आपत्ति दर्ज की थी।
हमास के आतंकियों द्वारा पहले दिन इजराइल पर किए हमले में कई नेपाली नागरिकों की जान चली गई थी। इतना ही नहीं नेपाल के कई नागरिकों को हमास के आतंकियों द्वारा बंधक भी बना लिया गया था जिसे अभी तक रिहा नहीं किया गया। हमास द्वारा किए गए इस कुकृत्य घटना के बावजूद नेपाल सरकार द्वारा फिलिस्तीन के समर्थन में मतदान करने से सरकार की आलोचना हुई थी।