पटना। अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर विपक्षी एकता को लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दिल्ली से लेकर कई राज्यों की राजधानी नाप चुके हैं। इस दौरान वे झारखंड और महाराष्ट्र भी पहुंच चुके है तो उत्तर प्रदेश में विपक्ष के नेता अखिलेश यादव से मिल चुके हैं।
इस दौरान कहा जा रहा है कि अगर झारखंड, बिहार और उत्तर प्रदेश में आदिवासी और राजद तथा समाजवादी पार्टी के वोटबैंक साथ मिला तो भाजपा की परेशानी बढ़ जाएगी।
बिहार में पिछले लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी जदयू एनडीए के साथ चुनाव मैदान में उतरी थी और राज्य की 40 में से 39 सीट पर एनडीए के प्रत्याशी विजय हुए थे जबकि झारखंड में 14 सीटों में से 12 सीटें भाजपा आजसू गठबंधन को मिला था।
कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार की मुहिम में कांग्रेस और राजद मजबूत स्तंभ साथ दिख रहे हैं, लेकिन ओडिसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने नीतीश के मुलाकात में किसी राजनीति की बात नहीं होने का खुलासा कर इस मुहिम को झटका जरूर दिया है।
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी विपक्षी एकजुटता की मुहिम का हिस्सा बनने को पहले दौर की सकारात्मक बातचीत हो चुकी है। इस गठबंधन में झारखंड में सत्ताधारी झारखंड मुक्ति मोर्चा सकारात्मक नजर आई है लेकिन झारखंड कांग्रेस उहापोह की स्थिति में है।
जदयू के नेता और बिहार के मंत्री विजय कुमार चौधरी दावा करते हुए कहते हैं कि मुख्यमंत्री अब तक जितने भी नेताओं से मुलाकात सकारात्मक रही है। उन्होंने यहां तक कहा कि जल्द ही बैठक का कार्यक्रम भी तय हो जाएगा।
नीतीश कुमार हालांकि खुद को किसी पद की चाहत से अलग कर लिया है। हालांकि जानकारों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकल्प के तौर पर नीतीश कुमार को विपक्ष की ओर से खड़ा कर उस सवाल का मुकम्मल जवाब दिया जा सकता है, जिसमें पूछा जाता है कि विपक्ष के पास ‘पीएम फेस’ कहां है?
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी तंज कसते हुए कहा कि विपक्ष की एकता मुहिम में बाराती और सहबाला सभी तैयार है लेकिन दुल्हे का पता ही नहीं हैं।