नई दिल्ली| प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार पार्टी नेताओं, पार्टी सांसदों और पार्टी की अन्य महत्वपूर्ण बैठकों के साथ-साथ सार्वजनिक रूप से यह कह चुके हैं कि उनकी सरकार का मूल मंत्र – सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास है और उनकी सरकार इसी एजेंडे को लेकर काम कर रही है।
इतना ही नहीं प्रधानमंत्री लगातार अपने मंत्रियों और नेताओं को यह नसीहत भी देते हैं कि जनता ने उन्हें काम करने के लिए चुना है इसलिए उन्हें अनावश्यक हर मामले में बयानबाजी करने से बचना चाहिए। प्रधानमंत्री लगातार अपने नेताओं को यह हिदायत भी देते रहते हैं कि उन्हें अपने-अपने क्षेत्रों में लगातार सक्रिय रहना चाहिए, राजनीति के साथ-साथ सामाजिक कार्यों में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेना चाहिए और अपने कामकाज के बल पर ही चुनाव के समय जनता से वोट मांगना चाहिए।
सूत्रों की माने तो प्रधानमंत्री स्वयं कई बार अपने बयान बहादुर मंत्रियों की क्लास ले चुके हैं और उन्होंने कई बार भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से भी ऐसे नेताओं को समझाने को कहा है।
प्रधानमंत्री कई बैठकों में अपने नेताओं को गलत बयानबाजी से बचने की सलाह देते हुए यह कह चुके हैं कि वे सारा दिन काम करते हैं लेकिन कुछ लोग ऐसे बयान देने के आदि हो चुके हैं कि सारा दिन मीडिया में उन्ही का विवादास्पद बयान चलता रहता है।
सूत्रों के मुताबिक, प्रधानमंत्री बिहार से आने वाले अपने एक कद्दावर मंत्री को विवादास्पद बयानों के लिए फटकार लगाते हुए यह कह चुके हैं कि वो उन्हें समझा-समझा कर थक चुके हैं। एक फरवरी को लोक सभा में बजट पेश करने से पहले होनी वाली कैबिनेट बैठक में भी प्रधानमंत्री ने अनावश्यक रूप से बयानबाजी करने के लिए अपने कई मंत्रियों को फटकार भी लगाई थी।
आपको याद दिला दें कि, पिछले महीने भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक को संबोधित करते हुए भी प्रधानमंत्री ने हर मुद्दे पर विवादास्पद बयान देने वाले नेताओं पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा था कि एक नेता हैं जो फिल्मों पर बयान देते रहते हैं। उनके बयान टीवी पर चलते रहते हैं और उन्हें लगता है कि वे नेता बन रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कार्यकारिणी की बैठक में यहां तक कह दिया था कि पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा के फोन करने के बाद भी ये नेता मानते नहीं हैं।
देश की राजधानी दिल्ली से लेकर मध्य प्रदेश, कर्नाटक, बिहार और उत्तर प्रदेश के अलावा देश के कई अन्य राज्यों में पार्टी अपने ही नेताओं, विधायकों, सांसदों और मंत्रियों के अनावश्यक और विवादास्पद बयानों की वजह से असहज स्थिति में आ जाती है।
पार्टी के जनाधार का विस्तार करने के मिशन में जुटी भाजपा के लिए उसके बयान बहादुर नेता कितनी बड़ी समस्या बन चुके हैं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि शुक्रवार को भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने सांसदों के साथ ऑनलाइन बैठक में बहुत ही सख्त शब्दों में पार्टी सांसदों को यह निर्देश दिया कि वे धार्मिक और विवादास्पद मुद्दों पर बयान न दें। उन्होंने स्प्ष्ट तौर पर हिदायत देते हुए यह कहा कि इस तरह के मुद्दों पर अगर जरूरत पड़ी तो पार्टी की तरफ से सिर्फ अधिकृत प्रवक्ता ही बयान देंगे।
दरअसल, नड्डा ने पार्टी के सभी सांसदों की यह ऑनलाइन बैठक बजट और राष्ट्रपति के अभिभाषण को लोगों तक पहुंचाने के तौर तरीकों पर चर्चा करने और सांसद खेल स्पर्धा सहित पार्टी द्वारा सांसदों को दी गई अन्य जिम्मेदारियों पर चर्चा के लिए बुलाई थी लेकिन बयानवीर नेताओं के बयानों से नाराज नड्डा बैठक में सांसदों को प्रधानमंत्री के मूल मंत्र और विजन के बारे में समझाते हुए अनावश्यक, विवादास्पद और खासतौर से धार्मिक मुद्दों पर बयानबाजी नहीं करने का निर्देश देते नजर आए।
नड्डा ने तो यहां तक कह दिया कि सनातन धर्म से जुड़े मामले हों या धर्म से जुड़े धार्मिक मामले, यह जिनका विषय है उन्ही को इस पर बोलना चाहिए। राजनीतिक लोगों का इन विषयों पर बोलने का क्या मतलब है? उन्हें इस पर बयान नहीं देना चाहिए और न ही इस तरह के मामलों में पड़ना चाहिए।
उन्होंने आगे कहा कि जिन सांसदों की आस्था बागेश्वर धाम में हैं, वे वहां जाएं लेकिन इस पर बेवजह बयानबाजी न करें। उनकी इस तल्ख टिप्पणी को एक सांसद के लिए नसीहत के तौर पर देखा जा रहा है। हालांकि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष द्वारा सांसदों को दिए गए इन निर्देशों को पार्टी के अन्य बयानवीर नेताओं के लिए भी एक चेतावनी के रूप में माना जा रहा है।
आपको बता दें कि, अगले कुछ दिनों में सरकार और पार्टी संगठन दोनों में ही बड़े स्तर पर बदलाव होने जा रहे हैं और ऐसे में यह कहा जा रहा है कि बयानबहादुर नेताओं को नुकसान का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि सरकार के कामकाज और चुनाव के मुद्दों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना ²ष्टिकोण बिल्कुल साफ कर चुके हैं कि वो समाज के सभी वर्गों को लेकर आगे बढ़ेंगे भले ही वे वर्ग उन्हें वोट दें या न दें और चुनाव वो सिर्फ और सिर्फ विकास और अपने कामकाज के एजेंडे पर ही लड़ेंगे।