नयी दिल्ली। दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक होने के बावजूद भारत का वार्षिक प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन वैश्विक औसत का केवल एक तिहाई है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा आज संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में यह बात कही गयी है। इसमें जलवायु परिवर्तन से निपटने में भारत की उपलब्धियों पर और अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम की एक हालिया रिपोर्ट का हवाला देते हुये कहा गया है कि भारत 2 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान वृद्धि के अनुरूप एकमात्र जी20 राष्ट्र है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारत की विकास रणनीति की पहचान जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का प्रबंधन करना और साथ ही विकास संबंधी प्राथमिकताओं पर वांछित ध्यान देना है।
जलवायु कार्रवाई पर भारत द्वारा की गई महत्वपूर्ण प्रगति इसमें कहा गया है कि भारत ने पहले एनडीसी के अधिकांश लक्ष्यों को काफी पहले ही हासिल कर लिया। राष्ट्र ने 2021 में गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा स्रोतों से 40 प्रतिशत संचयी विद्युत शक्ति स्थापित क्षमता हासिल की और 2019 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 2005 के स्तर से 33 प्रतिशत कम कर दिया – क्रमशः 2030 के लक्ष्य वर्ष से नौ और ग्यारह साल पहले ही यह संभव हो गया है।
इसके अलावा, 31 मई 2024 तक स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता में गैर-जीवाश्म स्रोतों की हिस्सेदारी अप्रैल 2014 में 32 प्रतिशत से बढ़कर 45.4 प्रतिशत हो गई है। भारत 2030 तक वृक्ष और वन क्षेत्र के माध्यम से 2.5 से 3.0 अरब टन का अतिरिक्त कार्बन सिंक बनाने की दिशा में भी आगे बढ़ रहा है, जिसमें 2005 से 2019 तक 1.97 अरब टन कार्बन समतुल्य कार्बन सिंक पहले ही बनाया जा चुका है।
इसमें कहा गया है कि 2005 से 2019 के बीच भारत की जीडीपी लगभग सात प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर के साथ बढ़ी है, जबकि उत्सर्जन लगभग चार प्रतिशत से बढ़ा है। यानी उत्सर्जन वृद्धि की दर हमारे जीडीपी की वृद्धि दर से कम है। इससे पता चलता है कि भारत ने अपने आर्थिक विकास को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से सफलतापूर्वक अलग कर लिया है, जिससे उसके जीडीपी की उत्सर्जन तीव्रता कम हो गई है।
भारत का कुल अनुकूलन-संबंधित व्यय 2015-16 में सकल घरेलू उत्पाद के 3.7 प्रतिशत से बढ़कर 2021-2022 में सकल घरेलू उत्पाद का 5.60 प्रतिशत हो गया है, जो विकास योजनाओं में जलवायु लचीलापन और अनुकूलन के एकीकरण को दर्शाता है।
बढ़ती अर्थव्यवस्था की विकासात्मक प्राथमिकताओं और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए भारत की ऊर्जा ज़रूरतें 2047 तक 2 से 2.5 गुना बढ़ने की उम्मीद है। यह देखते हुए कि संसाधन सीमित हैं, सर्वेक्षण ने बताया कि ऊर्जा संक्रमण की गति को जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन सुधारने और सतत सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए संसाधनों पर वैकल्पिक मांगों को ध्यान में रखना होगा।
भारत के निम्न-कार्बन पथ के विकास के लिए विभिन्न चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए सर्वेक्षण ने उल्लेख किया कि नवीकरणीय ऊर्जा और स्वच्छ ईंधन के विस्तार से भूमि और पानी की मांग बढ़ेगी। अधिकांश नवीकरणीय ऊर्जा भूमि-गहन हैं और विभिन्न ऊर्जा स्रोतों में सबसे अधिक भूमि उपयोग की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, अक्षय ऊर्जा के विस्तार के लिए बैटरी भंडारण प्रौद्योगिकियों की आवश्यकता होती है, जिसके लिए महत्वपूर्ण खनिजों की उपलब्धता की आवश्यकता होती है और ऐसे खनिजों का स्रोत भौगोलिक रूप से केंद्रित होता है।
ऊर्जा सुरक्षा का समर्थन करते हुए स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण में तेजी लाने में ऊर्जा दक्षता उपायों के महत्व को पहचानते हुए, सर्वेक्षण ने ऊर्जा दक्षता में सुधार के लिए सरकार द्वारा की गई कई पहलों पर प्रकाश डाला। उनमें से कुछ में इमारतों के लिए ऊर्जा संरक्षण भवन संहिता (ईसीबीसी) को लागू करना, उपकरणों के लिए मानक और लेबलिंग (एसएंडएल) और स्टार-रेटेड कार्यक्रम, टिकाऊ जीवन शैली को अपनाने के लिए पर्यावरण के लिए जीवनशैली (LiFE) पहल, औद्योगिक क्षेत्र के लिए प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार (पीएटी) योजना और परिवहन क्षेत्र के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर शामिल हैं। इसमें कहा गया है कि उपर्युक्त सभी पहलों में लगभग 1,94,320 करोड़ रुपये की कुल वार्षिक
लागत बचत और लगभग 30.6 करोड़ टन वार्षिक कार्बन उत्सर्जन में कमी आयेगी।
सर्वेक्षण में बताया गया है कि देश ने कारोबारी माहौल को बेहतर बनाने और संसाधनों की अधिक मात्रा को उत्प्रेरित करने के लिए कई उपाय किए हैं। सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र की परियोजनाओं के लिए आय जुटाने हेतु जनवरी-फरवरी 2023 में 16,000 करोड़ रुपये मूल्य के सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड जारी किया गया। अर्थव्यवस्था के उत्सर्जन की तीव्रता को कम करने के प्रयासों में योगदान देने के बाद अक्टूबर-दिसंबर 2023 में सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड के माध्यम से 20,000 करोड़ जुटाए गये।
इसके अलावा, रिजर्व बैंक ने देश में ग्रीन फाइनेंस इकोसिस्टम को बढ़ावा देने और विकसित करने के लिए विनियमित संस्थाओं के लिए ग्रीन डिपॉजिट की स्वीकृति के लिए फ्रेमवर्क लागू किया है। इसके अलावा, केन्द्रीय बैंक अपने प्राथमिकता क्षेत्र ऋण नियमों के माध्यम से अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा दे रहा है।