सतशास्त्रों के अध्ययन-मनन और सतपुरूषों की संगति करने से सद्बुद्धि उत्पन्न होती है। उसी को विवेक कहा जाता है।विवेक से वैराग्य उत्पन्न होता है। वैराग्य उत्पन्न होने से अन्त:करण शुद्ध हो जाता है। शुद्ध अन्त:करण द्वारा ही आत्मदर्शन अर्थात आत्मा का साक्षात्कार सम्भव है।
आत्मदर्शन की क्षमता प्रभु ने सबको दी है, आवश्यकता है उस क्षमता का सदुपयोग करने की। आत्म चेतना का गुण पैदा करके प्रभु ने हमें अपने स्वजनों की सारी कुंजियां (चाबियां) प्रदान की हैं। आत्मा के भीतर इतनी चमत्कारिक बहुमूल्य शक्तियां भरी पड़ी हैं कि उनमें से कुछ शक्तियों का ही ठीक प्रकार से उपयोग कर लिया जाये तो ऐसी अद्भुत सफलताएं मिल सकती हैं, जिन्हें देखकर सारा विश्व अचरज में पड़ जाये।
अष्ट सिद्धि नव निद्धि का खजाना आपके भीतर है। योग के अपरिमित चमत्कार, तंत्र विज्ञान की अलौकिक शक्तियां अपने भीतर हैं। फिर भी व्यक्ति स्वयं को दीन-हीन अहाय और निर्बल क्यों मानता है?
अपनी शक्तियों को पहचानो और प्रभु दर्शन के लक्ष्य को सिद्ध करो। इसी के लिए तो यह मानव शरीर प्रभु ने कृपा कर हमें प्रदान किया है।