नई दिल्ली। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे की सुप्रीम कोर्ट पर की गई टिप्पणी से भाजपा ने किनारा कर लिया है। मगर, इस मुद्दे को लेकर राजनीतिक चर्चा जारी है। निशिकांत दुबे की टिप्पणी पर असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की प्रतिक्रिया आई है। उन्होंने कहा कि भाजपा ने हमेशा न्यायपालिका की स्वतंत्रता और गरिमा को बरकरार रखा है। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने एक्स पर पोस्ट शेयर करते हुए लिखा, “भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता और गरिमा को भारत के लोकतंत्र की आधारशिला के रूप में हमेशा बरकरार रखा है।
हाल ही में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने सांसद निशिकांत दुबे द्वारा सुप्रीम कोर्ट के संबंध में की गई टिप्पणियों से पार्टी को अलग करके इस प्रतिबद्धता की पुष्टि की है।” उन्होंने आगे लिखा, “नड्डा ने इस बात पर जोर दिया कि ये व्यक्तिगत राय है और पार्टी के रुख को नहीं दर्शाती है। उन्होंने न्यायिक संस्थाओं के प्रति भाजपा के गहरे सम्मान को दोहराया। भाजपा इस सैद्धांतिक स्थिति को बनाए रखती है, लेकिन न्यायपालिका के साथ कांग्रेस पार्टी के ऐतिहासिक संबंधों की जांच करना उचित है। कांग्रेस ने कई मौकों पर न्यायपालिका के सम्मानित सदस्यों की सार्वजनिक रूप से आलोचना की है।” सीएम सरमा ने कुछ जजों का जिक्र करते हुए एक्स पर लिखा, “जस्टिस दीपक मिश्रा: कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने बिना ठोस सबूतों के उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया।
जस्टिस रंजन गोगोई: अयोध्या मामले में फैसले समेत कई ऐतिहासिक फैसलों के बाद कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा। जस्टिस अरुण मिश्रा: संवैधानिक कर्तव्यों का पालन करने के बावजूद अपने न्यायिक फैसलों और कार्यपालिका से कथित निकटता के लिए निशाना बने। जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़: महत्वपूर्ण मामलों में अपनी व्याख्याओं को लेकर अनुचित जांच का सामना करना पड़ा, खासकर जब फैसले कुछ राजनीतिक अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं थे। जस्टिस एस. अब्दुल नजीर: रिटायरमेंट के बाद आंध्र प्रदेश के गवर्नर बनाए जाने पर कांग्रेस ने उनकी आलोचना की, जिसमें आरोप लगाया गया कि इससे न्यायिक स्वतंत्रता को खतरा है, जबकि अतीत में भी इसी तरह की नियुक्तियां हुई हैं।
“उन्होंने कहा, “यह पैटर्न दर्शाता है कि कांग्रेस अक्सर तब न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर सवाल उठाती है, जब फैसले उनके राजनीतिक हितों के खिलाफ जाते हैं। ऐसी चुनिंदा आलोचना न केवल न्यायिक प्रक्रिया की पवित्रता को कम करती है, बल्कि लोकतांत्रिक चर्चा के लिए भी चिंताजनक मिसाल स्थापित करती है। सभी राजनीतिक दलों के लिए जरूरी है कि वे न्यायिक फैसलों के प्रति एकरूपता और ईमानदारी बरतें। न्यायपालिका का सम्मान फैसलों के अनुकूल होने पर निर्भर नहीं होना चाहिए। चुनिंदा प्रशंसा से जनता का भरोसा और लोकतंत्र के मूल सिद्धांत कमजोर होते हैं। अंत में यही कहूंगा कि भाजपा न्यायपालिका की भूमिका का निष्पक्ष रूप से सम्मान करती है। विपक्षी दलों को अपने दृष्टिकोण पर विचार करना चाहिए। साथ ही यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सिद्धांतों पर आधारित हों।”