न परमात्मा तुमसे दूर है और न तुम परमात्मा से दूर हो। वह कहीं गुम भी नहीं हुआ जो ढूंढ रहे हो। वह यहीं है, तुम्हारे ही पास है, तुम्हारे ही भीतर है, अन्तर केवल यह है कि अभी तुम देख नहीं पा रहे हो, अनुभव नहीं कर रहे हो, इसलिए तुम्हें परमात्मा बिछड़ा हुआ लगता है। अपने से दूर लगता है। उसे देखने के लिए जिस दिव्य दृष्टि की आवश्यकता है उस दृष्टि को पाने के लिए निरन्तर साधना पथ की यात्रा करनी होगी। हम परमात्मा से अथवा परमात्मा हमसे बिछड़ा हुआ है ऐसा विचार ही भ्रम है। जो कभी गुम हुआ ही नहीं जो कभी हमसे दूर हुआ ही नहीं उससे मिलने की बात कहनी भी झूठ हो जायेगी। वह हमारे साथ था, हमारे साथ है और हमारे साथ हमेशा रहेगा भी। आवश्यकता है उसकी उपस्थिति को अनुभव करने की। उपस्थिति की अनुभूति होगी उसकी भक्ति करने से। भक्ति भाव से होती है। शास्त्रों का वचन है भक्ति भय से नहीं भावना से होती है। भक्ति से व्यक्ति कायरता को नहीं वीरता को प्राप्त करता है। भक्ति भगाती नहीं जगाती है। भक्ति करने से मनुष्य कर्मवीर, धर्मवीर, दानवीर और शूरवीर बनता है। भक्ति महान शक्ति है। जीवन बदलने के लिए भक्ति एक क्रांति है। इसलिए अपने भीतर स्थित परमात्मा को पहचानने के लिए अपने भीतर भक्ति भाव जागृत कीजिए।