आज अन्तर्राष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस (Internationl Senior Citizen Day ) है। सभी को पता है कि बुजुर्ग व्यक्ति जीवन भर अनुभव करके परिपक्व हो जाता है। इसलिए कहा गया है कि अनुभव का पथ कभी बूढ़ा नहीं होता यदि बूढ़ा होता तो नदी, तालाब, झील, झरने सभी बूढ़े और शिथिल हो जाते।
बुढ़ापा तो लम्बी यात्रा का पठार है, इससे सभी को गुजरना पड़ता है। इसे अभिशाप नहीं वरदान समझना चाहिए, क्योंकि इस आयु तक आते-आते लोग कितने स्वप्र, कितने अनुभव, कितनी सूझ-बूझ अपने में समेटे होते हैं। बुढ़ापा अवचेतना है, झुरियों में छिपा हुआ अनुभव है। यह एक यात्रा है, जो थकती नहीं वरन शाश्वत और पुरातन है।
जब शरीर शिथिल हो जाता है, जो प्राकृतिक नियम है और सर्वथा सत्य भी है, परन्तु अवचेतना बहुत कुछ करने को जागृत होती है, क्योंकि कोई भी मन से नहीं थकता इसलिए बुजुर्गों की कभी उपेक्षा न करे, क्योंकि वे घर की शान है, जिन्होंने सारी आयु घर और घर के लोगों के जीवन को संवारने में लगा दी।
अपनी सुविधाओं की कभी परवाह नहीं की। वे चरणों की धूल नहीं माथे की शान हैं। उनके हृदय से निकले आशीषों और दुआओं का जो फल मिलता है, उसका कोई मूल्य नहीं। कभी-कभी अब सारे उपाय निष्फल हो जाते हैं, वहां उन बुजुर्गों का आशीर्वाद ही काम करता है।
याद रहे कि दुनिया की हर खुशी हर चकाचौंध खरीदी जा सकती है, पर घर के बुजुर्ग वो ‘शै’ है, जिन्हें एक बार खोने के बाद कभी पाया नहीं जा सकता। इसलिए बुजुर्गों को उसी श्रद्धा से सम्मान दीजिए जैसी श्रद्धा से मंदिर से प्राप्त प्रसाद को सम्मान देते हो, माथे से लगाते हो।