मैं खुद ही पीडि़त व्यक्ति हूं और मुझे आज तक ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं मिला जिसने अपनी और परिवार की पीड़ा न सुनाई हो। मैं सबकी पीड़ा को ध्यान से सुनता हूँ। मुझे बगैर खुशी के सबकी पीड़ा को सुनना पड़ता है क्योंकि लोगों के बीच यह चर्चा है कि मुझे कवि सम्मेलनों में कविता के साथ – साथ सभी की पीड़ा सुनने की आदत है।
मुझे पूरा संदेह है कि मेरे कवि मित्रों ने ही यह झूठा प्रचार फैलाया है। किस पति को उसकी सगी पत्नी नहीं सुनाती? पड़ोसियों के, कवियों के चिक-चिक व शायरों की दर्द भरी शायरी मैं खूब सुनता हूँ। लगातार सुनता रहता हूँ लेकिन कभी इसकी भनक अपनी एकलौती धर्मपत्नी तक को नहीं लगने दी लेकिन उन्होंने भी मुझे नहीं छोड़ा।
मेरी धर्मपत्नी अर्चना जायसवाल ने मुझसे कहा कि अपनी चिक-चिक सबसे छिपाते हो और दूसरे की नमक-मिर्च, मसाले लगाकर बताते हों। इस पर मैंने बेबस चेहरा बनाते हुए कहा कि उनकी स्वयं की पीड़ा कम जो होती है। इसका परिणाम यह हुआ है कि अब सभी अपनी पीड़ा मुझे सुनाने का अपना अधिकार मान बैठे हैं। अब मुझे सत्ताधारी सरकार होने का भ्रम होने लगा है और वह भी गठबंधन वाली, एकदम विवश। मैं चलती फिरती मशीन हो चुका हूँ।
अपनी सहनशीलता का मूल्य चुका रहा हूँ, लेकिन जब से एक तांत्रिक के बारे में सुना है कि वे पीड़ा हरने का मंत्र देते हैं, वह भी पूर्णतया नि:शुल्क, उनसे मिलने को जी चाहने लगा है । आमतौर पर मुफ्त के माल के मामलों में लोग दिल खोलकर पंजाब अथवा दिल्ली के मतदाता बन जाते हैं लेकिन मेरे अनुभव उनसे अलग हैं । बाल काले व घुंघराले करने के नि:शुल्क उपाय से गंजे होने की ओर बढ़ चला था । इस उपाय पर रुक गया तो कुछ बाल बच भी गए अन्यथा वो भी चले जाते । फ्री और लुभावनी वस्तुओं से मैं बहुत डरता हूँ ।
नि:शुल्कता डराती है , अगर गंभीरता से उसे लें तो लेकिन मुफ्तखोरी गंभीर होने तो दे । बिना कुछ रकम लगाएं मुफ्त में कुछ भी मिले तो छोडऩे से क्या फायदा? ऑफर कोई खाली नहीं जाना चाहिए चाहे हानिकारक ही क्यों न हो, लेकिन पीड़ा व शिकायत की मात्रा अधिक होने से मेरा कर्तव्य- बोध ढीला पडऩे लगा है। उत्सुकता और गैरजिम्मेवारी बढ़ गयी है। अब मेरी स्थिति यह हो चली है कि मैं स्वयं पीड़ा हरने के मंत्र जानने की ललक अपने हृदय में जगा बैठा हूँ लेकिन एक पीड़ा हो तो सम्भवत: यह ललक जगती ही नहीं।
यहाँ तो मेरी पीड़ाओं की सूची लम्बी हो चली है । पुराना शादी – शुदा जो हूँ। फिर मन में विचार आया कि किसी ने यह मंत्र किसी तांत्रिक से लिया है, उसी से जान कर उसे आत्मसात कर लूँ । कभी – कभी प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष जानकारी अधिक लाभ दे जाता है और कठिनाइयों से उबारता जो है।
तांत्रिक जी से जो भी तुरंत मिल कर आए थे, उनकी चर्चा हमने आज ही पान के दुकान पर सुनी थी। वे पीड़ा हरने के मंत्र लेकर अभी – अभी लौटे थे। संध्या होते- होते वे रास्ते में मिल गए। उनके कन्नी काटकर निकलने के प्रयास से मेरा संदेह विश्वास में बदल गया कि इन्होंने अवश्य ही पीड़ाहरण मंत्र ले लिया है और सम्भवत: उन्हें इसे साझा न करने की सलाह दी गयी है। कोई बात अवश्य है जो वे छिपाना चाह रहे हैं लेकिन नशे में होने के कारण बातों-बातों में वे इस बात को छिपा नहीं सके और उगल गए। मंत्र ग्रहण का पूरा प्रसंग बक गए । इसे ही उनके शब्दों में मैं साझा कर रहा हूं। जो आप सुनकर अपनी भी पीड़ा भूल जाएंगे।
मुझे सबसे बड़ी पीड़ा यह थी कि दफ्तर के मेरे बड़े अधिकारी मुझसे यह अपेक्षा रखने लगे थे कि मैं उनके कहे अनुसार रिश्वत देने वालों को सीधे उनके पास भेज दूँ। नियमों की अनदेखी कर विशेष लोगों के हित में गलत निर्णय लेने की पृष्ठभूमि तैयार कर दूँ। ऐसा नहीं करने पर मैं जो पहले उनका विश्वासपात्र था, अब उनकी प्रताडऩा का पात्र बन गया था। तरह-तरह के मनगढ़ंत आरोप मौखिक रूप से मुझ पर लगाए जाने लगे। कर्मचारियों को मेरे बारे में गलत जानकारी दी जाने लगी। इसी पीड़ा से उबरने का उपाय मैंने अपने मित्रों से पूछ लिया।
मित्र ने मेरी पीड़ा बड़े धैर्यपूर्वक घंटों विस्तार से सुनी। फिर वे मेरी तरह भावुक और भोले हो गए। उन्होंने अपने नौकर से शराब की बोतल मंगाई। फिर मुझे कहा- इसे पी लो। तुम्हारी पीड़ा कम होगी। वे भी साथ में पीने लगे। मुझे बड़े स्नेह से और जोर – जबरदस्ती अधिक पिलाने लगे। इसी क्रम में खोद- खोदकर मेरे बड़े अधिकारी की सारी जानकारी पिलाते- पिलाते उन्होंने मुझसे ले ली। पूरा समय दिया। पेट से एक से एक गोपनीय बातें उगलवा लीं।
फिर उन्होंने गीता रहस्य से बात प्रारम्भ की। कहने लगे कि प्रसन्नता, सुख के साथ दु:ख, पीड़ा जीवन की यात्रा के अल्प पड़ाव हैं। कोई प्रसन्नता वाले पड़ाव पर अधिक रुक जाता है, कोई लम्बा टिकता है। तुम पीड़ा वाले पड़ाव पर रुके हुए हो। यह सब पूर्व जन्मों का फल है जो नसीब में लिखा है। जो लिखा है, उसे काटना पड़ता ही है। उसे भोगना ही भाग्य है।नसीब में लिखा नहीं मिटता। मनुष्य सिर्फ कर्म करने का स्वामी है। उसे फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। मेरा लिखा है कि तुम्हें समझाऊंगा, सो लगा हूँ और लोगों को समझा रहा हूं। मेरी प्रसन्नता के साथ सम्पन्नता लिखी है, सो भोग रहा हूँ।
फिर घंटों तक मुझे यह समझाते रहे कि इस पीड़ा के साथ मैं कैसे रह सकता हूँ। उन्होंने यहां तक कह दिया कि तुम्हारे कार्यालय के बड़े अधिकारी मेरे अच्छे मित्र हैं । मैं उनसे बात कर तुम्हारी पीड़ा का अंत करा दूंगा। तब तक मैं काफी पी चुका था और मेरे सहकर्मी बड़े अधिकारी के उनके मित्र होने की बात से तो मेरे अंदर से सत्य बाहर आने के लिए संघर्ष करने लगा। इससे मैं पराजित हो गया। इसके बाद मैंने अपने मित्र से कह दिया-आप तो पहले काफी निर्धन थे। आप पर तो अवैध धन अर्जित करने का मुकदमा चल रहा है ।
सुना है कि आपने लाखों का गबन किया है । आपने तो अपने सुकर्मों से अपनी लिखी नसीब के रेखा मिटा ली । मुझे भी कोई रहस्य बताइये कि मैं अपनी लिखी मिटा लूँ । यह सुनते ही मेरे मित्र एकदम तैश में आ गए और उन्होंने मुझे धक्के देकर अपने घर से भगा दिया।
उनके प्रसंग को सुनकर मैं सकते में आ गया। मेरी आशाओं पर पानी फिर गया। अब मुझे भी अपनी पीड़ाओं से निकलने के लिए किसी उपाय की खोज करनी होगी। क्या आप कोई अन्य गुरु बता सकते हैं? गुरु न सही तो कोई टोटका ही बता दें जिससे मेरी पीड़ाओं का हाल पतला होकर पड़ोसी शत्रु राष्ट्र की अर्थव्यवस्था की तरह हो जाये। मेरी प्रसन्नता उनके आतंकवाद की तरह सुदृढ़ हो जावे ।
किंचित मेरी पीड़ाओं पर अवश्य विचार कर उपाय बतावें। इससे हर विवाहित पति को भी प्रेरणा मिलेगी और मेरा विश्वास है कि इस पुण्य कार्य हेतु आपका पति पीडि़त महासंघ द्वारा सम्मानित भी किया जाएगा और सारी पीडि़त आत्माओं से भरपूर प्यार भी मिलेगा।
-डॉ. नर्मदेश्वर प्रसाद चौधरी