धीरूभाई अंबानी के पौत्र अनंत अंबानी की शादी भारत में होने वाली शायद सबसे मंहगी और विशेष शादी है।इस शादी में अनंत के पिता मुकेश अंबानी केवल आसमान के तारे तोड़कर नहीं ला पाए अन्यथा धरती पर जितना कुछ संभव था उन्होंने कर दिखाया।
मै अंबानी परिवार से वर्षों से जुड़ा हूं, हालांकि वे मुझे नहीं पहचानते। पहचानते होते तो मुझे भी अनंत की शादी का निमंत्रण पत्र भेजते। अंबानी परिवार ने अनंत की शादी पर जिस दरियादिली से द्रव्य खर्च किया है , उसे देखकर इस परिवार के प्रति मेरे मन में श्रद्धा और बढ़ गई है । मैं उन लोगों में से नहीं हूं जो अनंत की शादी पर होने वाले खर्च को फिजूलखर्ची मानते हैं। मै इस खर्च को अंबानी परिवार का संवैधानिक और मौलिक अधिकार मानता हूँ।
अंबानी के बेटे की शादी में जो गया वो सौभाग्यशाली है ,और जो नहीं जा पाया वो शायद बदनसीब ही कहा जाएगा। माननीय प्रधानमंत्री से लेकर माननीय शंकराचार्य तक अनंत को शुभकामनाएं,बधाई और आशीर्वाद देने पहुंचे। ये अनंत की किस्मत है कि वे उस परिवार में जन्मे हैं जिसने दुनिया को 22 साल पहले अपनी मुठ्ठी में कर लिया था। अनंत के दादा धीरूभाई अम्बानी ने मात्र 500 रूपये से अपना कारोबार शुरू किया था और आज उनके बेटे मुकेश अम्बानी के पास 12370 करोड़ अमेरिकी डॉलर यानि कोई 1020 लाख करोड़ की सम्पत्ति है। ये अंबानियों का पुरुषार्थ है। वे आज दुनिया के बड़े से बड़े सितारे को अपनी उँगलियों पर नचा सकते है। भारत की सत्ता और विपक्ष और जनता-जनार्दन आखिर किस खेत की मूली है? उनकी मुठ्ठी में देश की सत्ता,देश की अर्थव्यवस्था और देश की निरीह जनता है।
अनंत की शादी की तस्वीरें देखकर जलने वालों की संख्या भी अंबानी की अकूत सम्पत्ति की तरह असंख्य है ,लेकिन जलने वाले जलते रहें, अंबानी जी के ऊपर क्या असर होने वाला है? कोई भी ये हिम्मत नहीं कर सकता कि वो अंबानी जी को धन का अमर्यादित प्रदर्शन करने से रोक सके। प्रतिकार की शक्ति नैतिकता से आती है और दुर्भाग्य से ये शक्ति आज किसी के पास बची नहीं है। सब लक्ष्मी के दरबार में चोबदारों की तरह अपने अपने सेंगोल लेकर उपस्थित हैं। अगर उपस्थित न होते तो शायद अम्बानी परिवार उन्हें जाति बाहर कर देता और जाति से बाहर कोई नहीं होना चाहता । न प्रधानमंत्री, न शंकराचार्य, न कलाकार और न देशी विदेशी राजनेता। लक्ष्मी के सामने सभी नतमस्तक होते हैं। मुझे तो लग रहा था कि जैसे अंबानी के बेटे की शादी में दुनिया के सारे अब्दुल्ला दीवाने हो रहे थे।
अंबानी परिवार ने किस गवैये, किस नचैये को कितना धन दिया इसकी खबरें चटखारे लेकर छपी,दिखाई जा रहीं हैं। अनंत की सेहत और उनकी पत्नी राधिका के लंहगे से लेकर मेकअप तक के कसीदे काढ़े जा रहे हैं। इस नव दम्पत्ति के साक्षात्कार ऐसे दिखाए जा रहे हैं जैसे वे भारत की संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते हों। ये वो देश है जिसमें आज भी लोग अपने बच्चों का विवाह करने के लिए सरकारी योजनाओं पर निर्भर हैं। लोग अपने सारे जीवन भर की कमाई इसमें लगा देते हैं,कई जगह तो लोग कर्ज लेकर अपने बच्चों का विवाह करते हैं, लेकिन इस देश में ही अंबानी भी रहते हैं। उनके पास इतनी सम्पत्ति है कि वे यदि रोजाना 3 करोड़ रूपये भी खर्च करें तो उन्हें अपनी सम्पत्ति खर्च करने के लिए कम से कम 932 साल छह महीने चाहिए। यानि अंबानी की कम से कम दस पीढिय़ां तो बिना हाथ हिलाये आनंद के साथ रह सकतीं हैं।
दुनिया के हर देश में अपने-अपने अंबानी है। पूंजीवादी देशों में तो अंबानियों का होना स्वाभाविक है लेकिन भारत जैसे महान लोकतान्त्रिक देश में किसी का अंबानी होना एक अजूबा है। भारत में 500 रूपये की पूँजी से अरबों-खरबों की पूँजी बनाने का करिश्मा यूं ही नहीं हो जाता । इस करिश्में में वे तमाम संवैधानिक और असंवैधानिक शक्तियां भी बराबर से सहयोगी होतीं हैं जिनके दर्शन आपने अनंत की शादी के प्रीतिभोज में किये। मैं किसी का नाम लेकर किसी को लांछित नहीं कर सकता। किसी को लांछित करने का कोई कारण भी नहीं है। ये एक परिवार का सुखद प्रसंग है। दुखद सिर्फ इतना है कि देश के राजनेता हों या शंकराचार्य या फिल्मों के दिग्गज सितारे उन गरीबों के बच्चों की शादियों में नहीं जाते जहाँ तड़क-भड़क नहीं होती। गरीबों के यहां जाने और न जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता।
फर्क पड़ता है अंबानियों के यहां न जाने से। अंबानी के बेटे की शादी में भारतीय राजनीति के तमाम दिग्गज शरीक हुए ये ही कुछ दिनों पहले तक अंबानी को सबसे ज्यादा कोस रहे थे।
देश के एक सामान्य नागरिक और अंबानी परिवार के उपभोक्ता की हैसियत से मैं अनंत और राधिका के सुखद और उज्ज्वल जीवन के लिए अपनी शुभकामनाएं और बधाई प्रेषित करते हुए अनंत से आग्रह करूंगा कि जब उनके हाथ में अंबानी परिवार की सत्ता आए तो वे अपनी शादी में हुए धन के बेहूदा प्रदर्शन की पुनरावृत्ति नहीं होने देंगे।
भारत में अनंत जैसी शादियों पर प्रतिबंध की जरूरत है, क्योंकि आज भी इस देश में 80 करोड़ से ज्यादा जनता सरकार द्वारा मुहैया कराये जा रहे पांच किलो अन्न पर निर्भर है। अंबानी जैसी फिजूलखर्ची इन गरीबों का अपमान है। उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश है। देश में यदि शादियों की फिजूल खर्ची रोकने के लिए कोई कानून प्रभावी नहीं है तो नए कानून बनाये जाएँ। सत्ता और धर्म के शीर्ष पर बैठे लोग इस तरह के फूहड़ धन प्रदर्शन से जुड़े आयोजनों में जाने से अपने आपको रोकें ,अन्यथा देश में उल्टी गंगा हमेशा बहती रहेगी और हमारा संविधान टुकुर-टुकुर ये सब देखता रहेगा।
राकेश अचल – विभूति फीचर्स