सूर्य देवता अपनी प्रखर किरणों से धरती को प्रकाशमान कर रहे थे। आसमान साफ था। आज बादलों का एक टुकड़ा भी धीमी चाल में तैरता दिखाई नहीं दे रहा था। भरी दोपहरी का वक्त था। चारों ओर सन्नाटा-सा छाया था।
सुदूर आकाश में कुछ चीलें उड़ती हुईं काले बिंदु-सी नजर आ रही थीं। गुलमोहर और बोगनवेलिया सुर्ख फूलों से लदे, वातावरण को शोभित किए थे।
नीरजा हाथ में अटैची उठाए मिसेस जेकब की डोरबेल अंगुली से दबा रही थी। दरवाजा एक बुजुर्ग स्त्री ने खोला। नीरजा समझ गई यही मिसेज जेकब हैं। देखिए, मुझे एडना डिसूजा ने आपके यहां बतौर पेइंग गेस्ट रहने के लिए आपके पास भेजा है। ‘फिर पर्स में से एक लैटर निकालकर नीरजा ने मिसेज जेकब के हाथों में दे दिया।
लेटर पर सरसरी निगाह डालकर उन्होंने नीरजा को भीतर आने के लिए कहा। ‘पहले कमरा देखना चाहोगी, या चाय पिओगी? उन्होंने आत्मीयता से पूछा।
‘जी कमरा देख लेती हूं। कमरा बड़ा और हवादार था। रोशनी भी पर्याप्त थी। अटैच बाथ और साथ में एक छोटा स्टोर भी था। कमरे के साथ ही खुली छत थी। नीरजा का मन यह देखकर खिल उठा।
अगले दिन नीरजा कॉलेज जाने के लिए तैयार होकर नाश्ता करने लगी तो मिसेज जेकब ने उसे लंच बॉक्स पकड़ाते हुए कहा खाने-पीने में संकोच मत करना। ‘मैं तुम्हारी मां की तरह जोर जबर्दस्ती करके नहीं खिला पाऊंगी।
आप फिक्र न करें आंटी…. आंटी कहते हुए नीरजा उनकी तरफ देखकर बोली मैं आपको आंटी कह सकती हूं न? जरूर… जरूर.. बेटी। जैसे मैं तुम्हें बेटी कह रही हूं। नीरजा उनकी बात सुनकर खिल उठी। ‘आंटी आप बहुत अच्छी हैं। एकाएक भावुक होकर नीरजा के हृदय से सच मुखरित हुआ।
उसने आंटी को अभी यह सच बताना उचित नहीं समझा कि उसे इसरार कर खिलाने वाली मां अब इस दुनिया में नहीं है और उनकी जगह जिसने ली है उसे इस बात से कोई मतलब ही नहीं रहता कि उसने खाना खाया है या नहीं।
कॉलेज में नीरजा को उसके स्टूडेंट्स बहुत आदर-सम्मान देते। घर पर मिसेज जेकब अपना निश्छल ममत्व लुटातीं उससे बहुत स्नेह रखने लगी थीं। कॉलेज तो वह महज तीन-चार घंटे के लिए ही जाती। बाकी समय घर पर ही रहती थी।
आंटी की दिनचर्या काफी व्यस्त थी। वे कभी भी खाली नहीं बैठती थीं।
धीरे-धीरे नीरजा और आंटी में एक दोस्ती का रिश्ता पनपने लगा। वे अपने दिल की बातें एक-दूसरे से शेयर करतीं, अपना अतीत भी एक दूसरे को बताकर मन का बोझ हल्का कर लेतीं। आंटी के पास पति की सुहानी यादें थी मगर परित्यक्ता नीरजा के पास ये दौलत न थी।
उसके पास विगत के नाम पर महज कड़वी यादें दु:ख और आंसू ही थे, जिन्हें अब वह भुला देना चाहती थी। उसने प्यार में जबर्दस्त धोखा खाया था। अतुल ने उसके साथ प्यार का महज नाटक कर उसके जज्बातों से खेल बाद में उसे धोखा दे दिया।
नीरजा की मेहनत की सारी कमाई अपनी मीठी बातों के जाल में फंसाकर अतुल ने हथिया ली। जब वह खाली हो गई उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया। सौतेली मां को तो मौका मिल गया था उसे और भी प्रताडि़त करने का। पापा के कारण ही वह सौतेली मां के जुल्म सहती रही थी। पापा के स्नेह में कमी न थी। उन्होंने उसे ढांढस बंधाया। जिन्दगी फिर नये सिरे से शुरू करने के लिए प्रेरणा दी।
पापा के असमय निधन से वह पूरी तरह से टूट गई। अब अपना कहने को उसका कोई न था। अतुल से प्रेम विवाह कर उसने मामा लोगों को भी नाराज कर दिया था। वे उसका मुंह भी नहीं देखना चाहते थे।
नीरजा के दुखदायी अतीत को सुन आंटी को उसके साथ हमदर्दी हो गई थी। उसे वे बेटी की तरह समझने लगी थी। उनकी अपनी बेटी रिया जर्मनी में सेटल्ड थी। बेटा डेनियल यू.एस. में एम.एस. कर रहा था।
वह नितांत अकेली हो गई थीं। ऐसे में नीरजा के आ जाने से तनहाई के काले बादल छंट गए। नीरजा की उपस्थिति उजास की किरणें जो बनकर छा गई थीं। वे नीरजा से जब तब अपने पति सैम की बातें किया करतीं। एक दिन इसी तरह बातचीत के दौरान नीरजा पूछ बैठी ‘अंकल आपसे बहुत प्यार करते थे?
‘हां बहुत। ‘कितना? इस पर आंटी मुस्करा दीं।
‘आप मुस्कराई क्यों? क्या मैंने कोई बेतुकी बात पूछी है?
‘नहीं। प्यार का एहसास करते रहना चाहिए। इससे सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित होती है। मैं ऐसा मानती हूं। ये सैम का प्यार ही है जो मुझे जीवंत रखे है। नहीं तो मैं भी सैम के साथ दफन हो गई होती। उनके प्यार की गहराई मापी नहीं जा सकती। ही वॉज सो वैरी एफेक्शनेट। डेनियल भी बिल्कुल अपने पापा की तरह है।
लुक्स में भी और स्वभाव से भी। इतना कह फिर खुशी से चहकती हुईं वे आगे बोलीं इस बार क्रिसमस पर आने का वादा है उसका।
दूधवाला आया तो नीरजा उठकर दूध लेने चली गई, फिर वहीं से पूछने लगी आंटी लंच में क्या बनेगा। मैं बना लूंगी नीरू। तुम रहने दो। कॉलेज जाने के लिए तैयार हो जाओ तुम्हें देर हो जाएगी।
नहीं होगी आंटी अभी बहुत वक्त है आज मेरे शुरू के दो पीरिएड्स फ्री हैं देर से ही जाऊंगी।
क्यों मेरी आदत बिगाड़ रही हो। सारा काम तैयार मिलने लगेगा तो आलसी हो जाऊंगी।
आप और आलसी! ऐसा तो कभी हो ही नहीं सकता मेरी प्यारी ‘बिजी बी।
नीरजा की बात पर दोनों खुलकर हंसने लगीं।
आंटी यानी कि सैम की प्यारी मोना टैरेस पर बैठीं स्वेटर बुन रही थीं और यादें उन्हें अतीत में ले गईं, वह सुहाना अतीत जब सैम उनके साथ थे।
बालों में सफेदी आ गई थी, लेकिन इससे उनके गरिमामय व्यक्तित्व में और भी भव्यता आ गई थी। मानो उनकी वो शिद्दत से जीने की चाह, आंखों से झलकती रोमानियत और एक संतुष्ट जीवन जिये जाने का आभास देता उनका चेहरा, कुल मिलाकर उनका प्रभाव हर मिलने-जुलने वालों पर गहराई से पड़ता।
सैम ने उसे जिस ऊंचाई पर बैठा रखा था उससे उसमें गहरा आत्मविश्वास आ गया था। सैम ने उसे सिवाय प्यार के किसी और बंधन में कभी नहीं बांधा। वे खुलकर जीने और जीने देने में विश्वास रखते थे।
साठ के करीब आते-आते भी वह उन्हीं के कारण अपने को जवान तरोताजा महसूस करती थीं। जिन्दगी बच्चों के जाने के बाद फिर से सेकंड हनीमून मना रही थी। कभी भूले से भी अगर वह बढ़ती उम्र का जिक्र कर देती तो वे उसे फौरन चुप करा देते। जिन्दगी सालों से नहीं जी जाती माई डियर। ‘डू नॉट एड ईयर्स टू लाइफ, एड लाइफ टू ईयर्स समझी। मन बूढ़ा नहीं होना चाहिए।
उसकी हंसती-खेलती जिन्दगी को ग्रहण लग गया जब सैम बिना किसी बीमारी के अचानक ही एक दिन उसका साथ सदा के लिए छोड़ परलोक सिधार गए।
तब से वह और उसकी तनहाई थी। बच्चों ने उनसे अपने साथ रहने की बहुत जिद की, लेकिन इस घर से सैम की यादें जुड़ी थीं उसे भला वह कैसे छोड़ सकती थीं।
क्रिसमस के त्यौहार पर डेनियल के आ जाने से घर का माहौल खुशियों से भर गया था। डेनियल अत्यंत सरल प्रकृति का भावुक और मिलनसार युवक था। नीरजा ने देखा आंटी बेटे की झूठी तारीफ नहीं करती थीं।
नीरजा स्वभाव से थोड़ी रिजर्व्ड थी वह किसी से जल्दी से घुल-मिल नहीं पाती थी। डेनियल के आ जाने से वह ज्यादा समय अपने कमरे में ही रहने लगी। आंटी ही बार-बार उसे आवाज देकर बुलातीं, फिर उन दोनों को बातचीत करने के लिए अकेले छोड़ स्वयं इधर-उधर खिसक जातीं।
डेनियल पूरी कोशिश करता कि नीरजा उसके साथ अनकंफर्टेबल महसूस न करे। वह छोटी-छोटी साधारण सी बातों में उसे लगाकर उसकी झिझक दूर करने की कोशिशों में लगा रहता। उसकी कोशिश धीरे-धीरे रंग लाने लगी। नीरजा की झिझक दूर होने लगी थी। अब वे दो दोस्तों की तरह बातें करने लगे। आंटी मन ही मन में देखकर अत्यंत प्रफुल्लित होतीं। उनका यह सपना था कि नीरजा उनकी बहू बने। वह जानती थीं उनके बेटे को वह बहुत खुश और संतुष्ट रखेगी। उन्होंने नीरजा को बारीकी से परख लिया था। वह एक भावुक सेवापरायण सिंसीयर लड़की थी। वह जिस प्यार के लिये तरस रही थी वह उसे इस घर में उन मां-बेटे से भरपूर मिल सकता था।
उन्हें नीरजा की इस घर में इतनी आदत हो गई थी कि वह उसके बगैर अब इस घर की कल्पना से ही दहशत से भर जाती। वह किसी भी कीमत पर नीरजा को डेनियल की जीवनसंगिनी बनाकर ही रहेंगी।
मन में एक शंका उठती कहीं डेनियल ने यू.एस. में कोई गर्लफ्रैंड तो नहीं बना रखी है, कभी किसी और लड़की से शादी का वादा कर रखा हो। वह अपने प्रभु ईसा को याद करतीं। हे प्रभु ऐसा न हो। फिर स्वयं ही कहतीं ‘आमीनÓ।
डेनियल तीन सप्ताह की छुट्टी लेकर आया था। दिन पंख लगाकर उड़ रहे थे। उनका दिमाग दिन-रात इसी उधेड़बुन में लगा रहता कि कैसे डेनियल से कहें कि नीरजा को प्रपोज करे। वे नीरजा से घुमा-फिराकर डेनियल के बारे में उसकी सोच पता करने की कोशिश करतीं।
वे देखतीं उनके यह पूछने पर नीरजा की पलकें झुक जातीं। गालों पर जैसे हया की लाली छा जाती ये बातें उन्हें अपने फेवर में लगतीं, उन्हें कुछ तसल्ली हो जाती।
एक दिन नीरजा सीढिय़ों से फिसल गई। गनीमत थी कि फ्रेक्चर नहीं हुआ था, लेकिन पैर की मोच के कारण वह ठीक से खड़ी नहीं हो पा रही थी। तब डेनियल ने उसे बांहों में लेकर पलंग पर लिटा दिया था। मोच तो दो-चार दिन में ठीक हो गई मगर इस घटना के बाद से खासकर डेनियल की इन दिनों की गई तीमारदारी से वे दोनों नजदीक आ गए थे। आंटी ने एक दिन बेटे से पूछ ही लिया क्या उसे नीरजा पत्नी के रूप में स्वीकार होगी?
डेनियल की तरफ से हरी झंडी मिलने पर उन्होंंने उसी समय नीरजा को पुकारा और उससे भी साफ शब्दों में पूछ लिया क्या उसे डेनियल का जीवन भर का साथ स्वीकार होगा?
नीरजा ने जब अपने पास्ट को लेकर कुछ झिझक दिखाई, उन्होंने कहा कि वह यह बात डेनियल को बता चुकी है कि तुम्हारा पास्ट बहुत सुखद नहीं रहा है और अब तक तो तुम उसे समझ भी चुकी हो।
नीरजा ने जिस कृतज्ञता से उनकी ओर देखा उन्होंने एकदम उसे गले से लगाकर प्यार से उसके माथे को चूमते हुए कहा बेटी प्रभु बड़ा दयालु है। वह अंधेरे के बाद उजाला भी देता है। दुख के बाद सुख के दिन जब आते हैं तो उनकी मधुरता और भी बढ़ जाती है।
शादी के बाद डेनियल ने मां और पत्नी को यू.एस. में कुछ दिन तक खूब घुमाया-फिराया वहां के दर्शनीय स्थल दिखाये। इस बीच इंडिया में भी रिसेशन खत्म होने से जॉब की अच्छी संभावनाएं बन गई थीं।
मां और पत्नी के साथ वह इंडिया लौट आया था। मां और पत्नी के बीच पहले से ही अच्छा तालमेल था। वे सास-बहू नहीं, बल्कि दो अभिन्न सखियों की तरह रहतीं। डेनियल के लिए वह एक समर्पित पत्नी तो थी ही।
उषा जैन ‘शीरी – विभूति फीचर्स