रात दो बज रहे होंगे तब ही नींद खुल गई, लगा मानो कोई बाहर पुकार रहा है। बाहर निकला तो बेशरम की तरह हंसते हुए मकान मालिक खड़ा था।
– क्या बात है?
– मकान खाली करो।
– ये कोई समय है- मैंने चिढ़ते हुए कहा।
– ये जमीन किसकी?
– आपकी
– ये मकान किसका?
– आपका।
– तुम किसके किरायेदार?
– आपके।
– तो मेरी जब मर्जी होगी मैं आऊंगा, तुम सलाह देने वाले कौन हो? तुनककर उन्होंने पूछा।
– जरा टाइम तो देखो- रात के दो बज रहे हैं।
– बजते रहें- रोज बजते हैं, मै तुम्हें बताने आया हूं वर्ना कल खाली नहीं किया तो मैं जेसीबी से सब नेस्तनाबूद कर दूंगा, उसने कहा।
– भाई- मालिक-सरकार ये भी कोई बात है- कोई कानून है या नहीं?
– सब कानून मेरी जेब में हैं, उसने मुझे सख्ती के साथ कहा।
– मैं घबरा गया- इतना अच्छा मकान था, जिसे इतने सस्ते किराये पर ले रखा था। इसको छोडऩे का जी नहीं हो रहा था। मैंने नरमाई दिखाते हुए कहा- श्रीमान मालिक साब मुझे छ: माह की मोहलत दे दें।
– क्यों?
– मुझे बेटी की शादी करना है और बीवी के नाम से कुछ रुपये भी बैंक में डालने हैं।
– और कुछ काम?
– और भी काम खोज लूंगा- हो सकता है एकाध कोई इमारत खरीद लूं- कहकर मैं उसके उत्तर की प्रतीक्षा करने लगा।
– कितने दिनों में मकान खाली करेगा?
– मालिक- सर जी, छ: महीने का वक्त तो दो। मैंने जी हुजूरी करते हुए कहा।
– जा दिया, लेकिन ध्यान रखना मैं छ: माह बाद मकान खाली करवा लूंगा, वना जेसीबी चलवा दूंगा- मकान मालिक ने कहा।
– गुड नाइट। मैंने कहा और वह चलता बना। सुबह मैंने पत्नी को बताया कि मकान को खाली करने की छ: माह की मियाद दी है।
– वो क्या खाली करवायेगा? मैं ऐसे-ऐसे लोगों को जानती हूं कि चाहकर भी वह खाली नहीं करवा सकता- पत्नी ने साड़ी को कमर में खोंसकर कहा। मैं सोच रहा हूं, इसी मकान में रहते हुए बिटिया की शादी कर दें, ताकि कोई परेशानी न हो।
– यह बात तो सही है, तुम आराम करो मैं बेटी के लिए वर और मकान खाली न करने के उपाय पर चर्चा करके आती हूं- पत्नी ने मुझे साहस देते हुए कहा। वह चर्चा करने चली गई। मकान मालिक मकान खाली न कराए इसके लिए बाबाओं के पास ताबीज-गंडे भरवाने को चली गई। मुझे शक्तिशाली बने रहने के लिए न जाने कहां की भभूत लेती आई और मुझे खिलाती रही। बिटिया को मालूम हुआ कि मकान को खाली करना है तो उसे भी दुख हुआ। उसे भी 25 वर्षों से अधिक यहां साथ में हो गया था। हमारी परेशानी जानकर वह एक दिन एक अफसर लड़के को ले आई जो दिखने दिखाने में सुंदर नहीं था। उसी से विवाह की जिद करने लगी। एकांत में मैंने पूछा भी- तू कितनी सुंदर और वह कहां का लंगूर-। पापा- वेतन डेढ़ लाख है, ऊपरी कमाई एक लाख- सूरत-शक्ल को क्या चाटेंगे? जेब में रुपया हो तो सब तलुए चाटेंगे- उसने गंभीरता से कहा। हम उसकी दूरदृष्टि पर बाग-बाग हो गए- वाह क्या बात है। हमने विधि-विधान से इसी मकान में उसका विवाह किया। एक फर्ज निपट गया था। अब हम सोच रहे थे कि किसी तरह से मकान मालिक को किसी कानून-कायदे में फंसवा कर मकान पर कब्जा कर लेंगे। पत्नी भी यही चाह रही थी कि किसी भी तरह से मकान को खाली न करना पड़े। इसी बीच थोड़ा जर्जर हो चुके मकान की मरम्मत भी करवा ली। मकान नया सा लगने लगा था। शायद मैं भूल ही गया था कि अब इसे खाली करना है। मकान मालिक बहुत काइयां था। वह एकदम सुबह-सुबह आ गया।
– चलो जी मकान खाली करे।
मैं उसे देख घबरा गया- सर-श्रीमान-मालिक एक-दो महीनों का समय और दे दें।
– तुम्हारी कभी इच्छा मकान को खाली करने की होगी ही नहीं- आज अभी इसे खाली करो वर्ना देखो जेसीबी भी आई है।
– प्लीज कुछ विचार करो तो।
– भाई तू नहीं मानेगा, इतने बरस हो गए एकाध तो सेेकण्ड लाइन बनाकर मकान बना देता, ताकि तुझे खुशी होती। ये मकान नहीं तो वहां तो है, वे खुश रखेगा- कहकर मकान मालिक तेजी से आगे बढ़ा। छाती के पास से पकड़ लिया और मैं छटपटाता ही रहा और उसने मुझे बरसों से रह रहे इस देह शरीर से निकाल दिया। इसके बाद की कथा बहुत छोटी है- सब कॉलोनी वाले आए, रोना-धोना मचा और मुझे श्मशान ले जाकर जलाकर लौट आए। किराये के मकान को स्थाई अपना कहने का किसी को अधिकार नहीं है। मौत यह सच्चाई से परिचित कराती रहती है।
डॉ. गोपाल नारायण आपटे-विभूति फीचर्स