नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम की सिफारिशों पर जजों की नियुक्ति में केंद्र सरकार की ओर से की जा रही देरी के मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि ये अच्छे संकेत नहीं हैं। जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि जजों की नियुक्ति और ट्रांसफर भी सरकार अपनी पसंद नापसंद के मुताबिक कर रही है। मामले की अगली सुनवाई 05 दिसंबर को होगी।
सुनवाई के दौरान जस्टिस कौल ने कहा कि हमने सरकार को पहले भी इसके लिए आगाह किया है। इसके बावजूद अब भी दिल्ली, इलाहाबाद, पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट और गुजरात हाई कोर्ट में जजों के तबादले की सिफारिश केंद्र सरकार के पास लंबित है। इन पर सरकार ने कुछ भी नहीं किया। इस पर अटार्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने सरकार का बचाव करते हुए कोर्ट को बताया कि विधानसभा चुनावों में व्यस्तता की वजह से फाइलों पर कार्रवाई नहीं हो सकी। अटार्नी जनरल ने स्पष्ट किया कि जजों के ट्रांसफर को लंबित रखने की सरकार की ऐसी कोई मंशा नहीं थी। हमने सरकार को इस मुद्दे पर सूचित कर रखा है।
जस्टिस कौल ने कहा कि हमने अलग-अलग हाई कोर्ट में से 14 जजों की नियुक्ति की सिफारिश की है लेकिन सिर्फ गौहाटी हाई कोर्ट में ही नियुक्ति की गई। सरकार की इस तरह से नियुक्ति और स्थानांतरण में पसंद के आधार पर कार्रवाई करने से जजों की वरिष्ठता क्रम पर असर पड़ता है। इसकी वजह से वकील जज बनने के लिए अपनी स्वीकृति वरिष्ठता के लिए ही नहीं देते हैं। जब इसकी सुरक्षा ही नहीं होगी तो वो क्यों जज बनने को राजी होंगे। जस्टिस कौल ने कहा कि पिछली बार हमने जो नाम भेजे थे, उनमें से आठ नाम अब तक लंबित हैं। हमें पता है वो नाम क्यों लटकाए गए हैं। आधे से ज्यादा नाम सरकार ने क्लियर नहीं किए। उन्होंने कहा कि हमें सरकार की चिंता भी मालूम है।
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि कोर्ट सरकार को 1992 में सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति मामले में दिए फैसले को लागू करने का आदेश जारी करे, जिसमें कोर्ट ने सरकार के लिए कॉलेजियम की सिफारिशों पर निर्णय लेने के लिए समय सीमा का प्रावधान किया है। जस्टिस कौल ने अटार्नी जनरल से कहा कि हमने आपकी बात का मान रखते हुए कोई भी आदेश पारित नहीं किया लेकिन सरकार द्वारा हर बार अपनी मर्जी से निर्णय लेना हमें मजबूर करते जा रहा है। उन्होंने कहा कि जजों के तबादले के लिए छह नाम अभी तक बिना कोई कारण बताए केंद्र के पास लंबित हैं। जिसमें चार गुजरात हाई कोर्ट और एक-एक इलाहाबाद और दिल्ली हाई कोर्ट के नाम हैं। इससे पहले के पांच नाम पर भी सरकार ने न तो कोई आपत्ति ही भेजी और ना ही उसकी मंजूरी दी। वहीं पांच अन्य नाम को कॉलेजियम ने दोबारा भेजे हैं। जुलाई में भेजे गए तीन नाम पर अब तक आपत्ति की समय सीमा पार होने के बाद भी लंबित ही हैं। ये क्यों लंबित है, इसका पता ही नहीं है। तब अटार्नी जनरल ने कहा कि सुनवाई की अगली तिथि को सरकार इस मसले पर काम करेगी और कोर्ट को निराश नहीं होना होगा।
कोर्ट ने 07 नवंबर को कहा था कि नियुक्ति और ट्रांसफर के मामलों में चुनिंदा रवैया अपनाना ठीक नहीं है। कोर्ट ने कहा था कि सरकार अपनी पसंद से चुनकर फैसले लेती है। कोर्ट ने कहा था कि योग्य वकीलों को जज बनाने की सिफारिश हमने बंद कर दी क्योंकि सरकार उनके नाम क्लियर नहीं करती। आखिर कब तक अपनी प्रैक्टिस रोक कर रखें।