नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को भगोड़े नीरव मोदी के बहनोई मैनक मेहता को सुझाव दिया कि वह सीबीआई को उसके विदेशी बैंक खातों तक पहुंच बनाने के लिए अधिकार पत्र उपलब्ध कराने पर विचार करना चाहिए। सीबीआई ने आरोप लगाया है कि मेहता ने पीएनबी धोखाधड़ी घोटाले में बड़ी मात्रा में धन प्राप्त किया है, जिसमें नीरव मोदी मुख्य आरोपी है। जांच एजेंसी ने यह भी आरोप लगाया कि मेहता ने अपने और अपनी पत्नी के विदेशी बैंक खातों में पैसे ट्रांसफर किए।
भारत के प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने मेहता के वकील को सुझाव दिया कि वह बैंक विवरण तक पहुंचने के लिए सीबीआई द्वारा नामित एक अधिकारी को अधिकार पत्र दे सकते हैं और मामला खत्म हो जाएगा। यदि नहीं, तो अदालत को सीबीआई की याचिका को स्वीकार करना होगा और इस पर फैसला करना होगा।
सीबीआई के वकील ने कहा किया कि मेहता ने अधिकार पत्र देने से इनकार कर दिया था और परिणामस्वरूप, एजेंसी को लेटर रोगेटरी (एलआर) जारी करना पड़ा। वकील ने कहा, “एलआर पर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है। हमने इसे आगे बढ़ाने के लिए दूतावास (सिंगापुर में) को लिखा है।”
सीबीआई के वकील ने आगे तर्क दिया कि उन्हें आशंका है कि उन खातों में बड़ी रकम चली गई है। मेहरा एक विदेशी नागरिक हैं और उनकी पत्नी बेल्जियम की नागरिक हैं। एक बार देश छोड़ने के बाद वह वापस नहीं आएंगे। मेहता ब्रिटिश नागरिक हैं और हांगकांग में अपने परिवार के साथ रहते हैं।
मेहता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अमित देसाई ने दलील दी कि उनके मुवक्किल लंबे समय से भारत में हैं और उन्होंने हमेशा सहयोग किया है और सीबीआई द्वारा झूठे आरोप लगाए गए हैं। उन्होंने कहा कि उनके मुवक्किल प्राधिकार पत्र देने को तैयार हैं, लेकिन फिर उन्हें और एक साल भारत में रहना होगा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उनके मुवक्किल को कुछ समय के लिए जाने की अनुमति दी जानी चाहिए।
शीर्ष अदालत ने कहा कि मेहता को देश से बाहर यात्रा करने की अनुमति देने का मतलब बिना सुनवाई के सीबीआई की अपील को खारिज करना होगा। अदालत मेहता को सीबीआई को अधिकार पत्र देने के लिए मजबूर नहीं कर सकती। दलीलें सुनने के बाद शीर्ष अदालत ने मामले की आगे की सुनवाई 9 फरवरी के लिए सूचीबद्ध कर दी।
शीर्ष अदालत बॉम्बे हाईकोर्ट के पिछले साल अगस्त के उस आदेश को चुनौती देने वाली सीबीआई की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें मेहता को हांगकांग की यात्रा करने और वहां तीन महीने रहने की अनुमति दी गई थी।