बहुत पुरानी बात है। एक नगर में एक चित्रकार रहता था। अपनी लगन के बल पर उसने बढिय़ा चित्रकारी करने में महारत हासिल कर ली थी। वह दृश्यों, मनुष्यों के चेहरों का इतना अच्छा चित्रंकन करता कि चित्र वास्तविक और सजीव मालूम होते।
धीरे-धीरे एक बड़े इलाके में उसकी कीर्ति फैल गई। धन्नासेठ चित्र बनवाने के लिए उसे खूब धन देते। वह पूरे मनोयोग से चित्र बनाता। राजा भी उसकी अनेक बार तारीफें सुन चुका था। एक बार राजा ने संदेशवाहक के जरिए उस चित्रकार को दरबार में हाजिर होने का संदेश भिजवाया। चित्रकार जब राजा के दरबार में पहुंचा तो उसे राजा और दरबारियों ने उचित सम्मान दिया और बैठने को उचित आसन दिया। कुछ देर की बातचीत के बाद राजा ने उससे कहा, ‘आप हमारा एक चित्र बनाओ जो न सिर्फ वास्तविक सा लगे अपितु सुंदर भी हो। ध्यान रहे ऐसा न हुआ तो तुम्हें मृत्युदंड मिलेगा।’
‘जी,’ चित्रकार ने कुछ सोचते हुए राजा से कहा ‘इसके लिए मुझे वक्त चाहिए।’
राजा बोला, ‘ठीक है। तुम्हें एक सप्ताह का समय दिया जाता है। अगले सप्ताह आज ही के दिन इसी समय तुम दरबार में चित्र लेकर उपस्थित होना।’
इसके बाद चित्रकार राजा और दरबारियों से विनयपूर्वक विदा लेकर चला गया। वह अपने घर जाकर बिस्तर पर सोच में पड़ गया। वह सोच नहीं पा रहा था कि कैसा चित्र बनाए जो वास्तविक भी लगे और सुंदर भी। उसे काफी सोचने के बाद भी चित्र की कोई थीम न सूझी। उसे अपनी मृत्यु निश्चित जान पड़ी। कई दिन हो गये सोचते-सोचते। असल में एक बड़ी समस्या सामने थी कि राजा एक आंख से काना था। अगर वह राजा की एक आंख खराब दिखाता तो चित्र वास्तविक तो लगता परंतु सुंदर नहीं और यदि दोनों आंखें ठीक-ठाक दिखाता वह चित्र सुंदर लगता किंतु हकीकत से दूर।
छह दिन हो गये यही सोचते-सोचते और अंतत: उसी सांयकाल उसे एक युक्ति सूझ गयी। वह पूरी लगन से चित्र बनाने में जुट गया। सुबह होते-होते उसने चित्र को पूरा कर लिया।
दोपहर बाद वह कपड़े में लपेटकर दरबार में हाजिर हुआ। चित्र को एक सही स्थान पर रखा गया। सबकी नजऱें चित्र की ओर थी। राजा का संकेत मिलते ही चित्रकार ने कपड़ा हटाया। चित्र देखकर सभी वाह-वाह कर उठे। चित्रकार की चतुराई पर राजा दंग रह गया।
चित्र में जंगल का सुंदर दृश्य था। राजा एक भागते हिरण पर तीर का निशाना साध रहा था। एक आंख से देखते हुए। एक आंखें मींचे हुए। यही वह आंख थी जो खराब थी। चित्र सुंदर तो था ही, वास्तविक भी जान पड़ा। चित्रकार ने चतुराई से कानी आंख मीच दी थी।
राजा ने मुस्कुराते हुए चित्रकार की पीठ ठोंकी और कहा, ‘मान गये, हुनरमंद के साथ-साथ तुम चतुर भी हो।’ सभी ने चित्रकार की प्रशंसा की। राजा ने उसे इनाम दिया।
– अयोध्या प्रसाद भारती