एक था राजा, बहुत ही सरल और मधुर स्वभाव वाला। उसका एक ही पुत्र था पर वह बहुत अभिमानी तथा अक्खड़ था। जरा-सी बात पर उत्पात मचा देता। झट से किसी का भी अपमान कर देता।
राजा यह देख कर बहुत दुखी था। उसने राजकुमार को सुधारने के लिए बहुत से प्रयत्न किए परंतु नतीजा कुछ न निकला। अंत में राजा अपने पुत्र को महात्मा बुद्ध के पास ले गया। उसे पूरा विश्वास था कि उनकी संगति में रह कर राजकुमार सुधर जाएगा। उसने महात्मा बुद्ध को राजकुमार के विषय में सब कुछ बता दिया। फिर उनसे अनुरोध किया कि वह कृपा करके उसके पुत्र को सुधार दें। महात्मा बुद्ध ने शांत मन से सब कुछ सुना, फिर राजा को निश्चिंत हो कर लौट जाने को कहा।
बुद्ध सायंकाल घूमने जाया करते थे। कई बार उनके शिष्य तथा श्रद्धालु भी उनके साथ होते। वह राजकुमार को भी साथ ले जाने लगे। वन की ओर जाती पगडंडी के साथ नीम का एक पौधा खड़ा था। पौधा अभी छोटा ही था।
एक दिन बुद्ध ने राजकुमार से कहा, ‘वत्स, इस पौधे की एक-दो पत्तियां तोड़ लो। फिर उन्हें चबा कर मुझे उनके स्वाद के विषय में बताओ।’
राजकुमार ने झट दो-तीन पत्तियां तोड़ लीं। उन्हें मुंह में डाल कर चबाने लगा। उसका मुंह कड़वाहट से भर गया। उसने तुरंत पत्तियां थूक दीं लेकिन मुंह की कड़वाहट तब भी न मिटी। आखिर गुस्से में आ कर उसने उस पौधे को ही उखाड़ फेंका। बुद्ध ने तुरंत उससे पूछा, ‘वत्स, क्या हुआ? पौधे को क्यों उखाड़ फेंका?’
‘गुरूवर, इस पौधे की पत्तियां बहुत ही कड़वी हैं। अनजान आदमी को ये पत्तियां परेशान न करें, इसलिए पौधे को ही जड़ से उखाड़ फेंका।’ राजकुमार ने गर्व के साथ बताया।
बुद्ध मुस्कुराए। बोले, ‘वत्स, तुम्हारा व्यवहार भी तो इतना ही कड़वा है जितनी नीम की पत्तियां। यदि तुम्हारे स्वभाव को देख कर कोई तुम्हारे साथ भी ऐसा ही व्यवहार करे तो क्या होगा?’
सुनकर शर्म से राजकुमार की गर्दन झुक गई। थोड़ी देर बाद वह विनम्रता पूर्वक बोला, ‘आप सही कह रहे हैं गुरूवर। मैं अपने किए पर लज्जित हूं।’
‘मुझे प्रसन्नता है कि तुम मेरी बात समझ रहे हो इसलिए यदि तुम फलना-फूलना चाहते हो तो अपने व्यवहार को मधुर बनाओ। जिनका स्वभाव सरल और मधुर होता है, उनकी अपनी शक्ति स्वयं के काम आती है न कि दूसरों को उखाडऩे और पछाडऩे में।’ बुद्ध ने उसकी पीठ थपथपाते हुए समझाया। उसी दिन से राजकुमार बदल गया।
– नरेंद्र देवांगन