Monday, January 27, 2025

महाकुम्भ मेले में बढ़ी भीड़ तो बढ़ गए कुल्हड़ के दाम, मांग के मुकाबले सप्लाई कम

महाकुम्भनगर । महाकुम्भ मेले में लगातार बढ़ती श्रद्धालुओं की संख्या का असर चाय की चुस्की पर भी दिखाई देने लगा है। चाय की बढ़ती खपत के चलते अब मिट्टी के कुल्हड़ भी महंगे हो गए हैं, इसलिए कुल्हड़ की चाय भी मंहगी हो गई है। क्योंकि मेले के चलते कुल्हड़ की मांग अधिक हो गई है, जिसकी वजह से बाजार में मांग के अनुसार कुल्हड़ उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। मांग अधिक और उपलब्धता कम होने से दाम बढ़ गए हैं। अगर कोई कुल्हड़ में चाय पीना चाह रहा है तो उसे अतिरिक्त खर्च करना पड़ रहा है। कुल्हड़ में मिलने वाली 10 रुपये की चाय 15 और 20 वाली 30 रुपये में बिक रही है। वहीं दूध का बड़ा कुल्हड़ जो 40 रुपये का था, अब 60 रुपये में बिक रहा है। गौरतलब है, बाजार में तीन साइज छोटा, मीडियम और बड़ा तीन साइज के कुल्हड़ उपलब्ध हैं।

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मेला क्षेत्र में सेक्टर 2 केंद्रीय अस्पताल के सामने चाय की दुकान लगाने वाले अंकुर ने बताया कि, ‘पहले 100 रुपये में 100 कुल्हड़ मिलते थे, लेकिन मेले में लगातार बढ़ती भीड़ की वजह से अब 200 रुपये में मिल रहे हैं।’ मेला क्षेत्र के सेक्टर 18 के चाय विक्रेता रामआधार बताते हैं, ‘मेले की शुरूआ में छोटे कुल्हड़ में हम 10 रुपये की चाय बेच रहे थे। अब कुल्हड़ मंहगा मिल रहा है। इसलिये हमने भी कुल्हड़ के दाम बढ़ा दिय हैं।’

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वहीं कुल्हड़ बनाने वाले झूंसी गांव के कारीगर रवि ने बताया कि, ‘कोरोना महामारी के बाद कुल्हड़ में चाय पीने की आदत लोगों ने अपना ली है। जिससे चाय की दुकानों पर कुल्हड़ की मांग अधिक बढ़ गई है।’ वो बताते हैं, ‘हम लोग मांग पूरी करने के लिए दिन-रात काम कर रहे हैं। एक्स्ट्रा लेबर लगाने की वजह से हमारा खर्च भी बढ़ गया है, इसलिये दाम बढ़ गये हैं।’ प्रयागराज में महाकुम्भ क्षेत्र में झूंस गांव और जसरा गांव में प्रजापति समाज कुल्हड़, मिट्टी के बर्तन व अन्य सामान बनाता है।

संगम क्षेत्र में चाय विक्रेता शशिकांत विश्वकर्मा बताते हैं, ‘पहले 70 या 80 रुपये में 100 छोटे कुल्हड़ मिल जाते थे। इन दिनों 100-110 का रेट पड़ रहा है।’ मेले की वजह से दाम बढ़ गया है इस पर शशिकांत बताते हैं, ‘हम लोग यहां परमानेंट सारा साल चाय की दुकान लगाते हैं, इसलिये हमें थोड़े बड़े रेट पर माल मिल रहा है।’ वो आगे बताते हैं कि, ‘मेले की वजह से काफी दुकानदार बाहर से आये हुये हैं, उन्हें लोकल मार्केट की कोई जानकारी नहीं है। वो कुम्हार की बजाय दुकानदारों से माल उठा रहे हैं। इसलिये उन्हें ऊंचे दामों में माल मिल रहा है।’

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झूंसी गांव के कुल्हड़ कारीगर फूलचन्द बताते हैं, ‘कुम्भ में कुल्हड़ की मांग बढ़ जाती है। पिछले एक हफ्ते में मांग में तेजी आई है। हमें भी ज्यादा मेहनत और खर्चा करना पड़ रहा है। इसलिए दाम में बढ़ोत्तरी हुई।’ वो बताते हैं, मौनी अमावस्या के स्नान तक कुल्हड़ के रेट बढ़ना लाजिमी है, क्योंकि डिमांड बहुत ज्यादा है।’

सेक्टर 1 मीडिया सेन्टर के पास चाय की दुकान चलाने वाले मुकेश ने बताया कि, ‘चाय की डिमांड बढ़ी तो कुल्हड़ की खपत बढ़ गई। कुल्हड़ मंहगा पड़ रहा है, जिससे चाय के रेट बढ़ाने पड़े। रेट बढ़ने से दुकानदारी कम हो जाती है। इसलिये हमने पेपर कप में चाय दे रहे हैं।’ उन्होंने बताया कि, ‘पेपर के 100 गिलास 50 रुपये में मिल रहे हैं। ग्राहक कुल्हड़ में चाय तो पीना चाहता है लेकिन ज्यादा दाम के चलते पेपर कप की डिमांड करता है।’

चाय विक्रेताओं रमेश, रिंकू और रोहित ने बताया कि कोरोना के बाद कुल्हड़ में चाय पीने की लोगों की धारणा बन गई है कि प्लास्टिक के गिलास में चाय नहीं पीनी चाहिए। वहीं डॉक्टरों ने भी माना है कि मिट्टी के बर्तन में चाय पीना सेहत के लिए अच्छा होता है। चाय विक्रेता रोहताश ने बताया कि, कई बार दुकान पर मिट्टी के कुल्हड़ नहीं होने के कारण ग्राहक चाय ही नहीं पीता। इससे दुकानदारी पर असर पड़ता है। मंहगा कुल्हड़ खरीदने की वजह से मुनाफा कम हो जाता है, इसलिए मजबूरी में पेपर कप रखना पड़ रहा है।’

दारागंज में कुल्हड़ विक्रेता राजेन्द्र ने बताया कि, ‘मेले जैसे-जैसे भीड़ बढ़ रही है, कुल्हड़ की मांग भी उसी तरह बढ़ रही है। पीछे से माल कम आ रहा है। और जो माल आ भी रहा है, वो चढ़े हुए दाम में आ रहा है। इसलिये रेट बढ़ाना मजबूरी हो गया है।’

आयुर्वेदाचार्य अजय शर्मा के अनुसार, प्लास्टिक में गर्म चाय डालने से प्लास्टिक के खतरनाक केमिकल निकलते हैं। पेपर कप के अन्दर भी प्लास्टिक की लेयर हाेती है। जिससे चाय स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बन जाती है। मिट्टी के बने कुल्हड़ नेचुरल है। वहीं इनका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता। इसलिए हमेशा चाय कुल्हड़ में पीनी चाहिए।

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