प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश के अभियोजन निदेशालय के हेड के तौर पर आईपीएस अधिकारी आशुतोष पांडेय की नियुक्ति को कानून के विपरीत व अवैध करार दिया है।
आशुतोष पाण्डेय एडीजी अभियोजन के पद पर कार्यरत थे। कोर्ट ने कहा है कि उनकी अभियोजन विभाग के मुखिया के रूप में की गई नियुक्ति सीआरपीसी की दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 25 ए (2) के विरुद्ध है। इसी के साथ कोर्ट ने राज्य सरकार के अभियोजन निदेशालय को निदेशक की छह माह में नये सिरे से नियुक्ति करने का निर्देश दिया है।
कोर्ट ने कहा विपक्षी निदेशक अभियोजन पद पर नियुक्ति की निर्धारित योग्यता नहीं रखते। वे इस पद पर बने रहने लायक नहीं है। यह आदेश न्यायमूर्ति एसपी केशरवानी तथा न्यायमूर्ति जयंत बनर्जी की खंडपीठ ने किशन कुमार पाठक की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। न्यायमूर्ति बनर्जी ने न्यायमूर्ति केशरवानी के फैसले पर सहमत होते हुए अपने अलग फैसले में कानूनी उपबंधों की चर्चा की है। कोर्ट ने याचिका की पोषणीयता पर राज्य सरकार के अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल की प्रारंभिक आपत्ति अस्वीकार कर निरस्त कर दी।
अपर महाधिवक्ता का कहना था कि धारा 25 ए उत्तर प्रदेश में लागू नहीं है। इसका पालन बाध्यकारी नहीं है। संसद द्वारा पारित कानून को राज्य विधायिका ने इसे स्वीकृति नहीं दी है। धारा 25 ए के तहत महानिदेशक सहित अन्य पदों पर नियुक्ति योग्यता दस वर्ष की वकालत का अनुभव होना चाहिए तथा नियुक्ति में मुख्य न्यायाधीश की सहमति होनी चाहिए। याची के वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि अपर महानिदेशक अभियोजन की नियुक्ति में धारा 25 ए का पालन नहीं किया गया। इसलिए यह नियुक्ति अवैध है। बिना विधिक प्राधिकार के विपक्षी पद पर कार्यरत हैं। उन्हें हटाया जाय।
कोर्ट ने कहा राज्य सरकार ने 14वें विधि आयोग की संस्तुति पर 27 नवम्बर 1980 को प्रदेश में अभियोजन निदेशालय की स्थापना की। संसद ने धारा 25ए पारित किया। राज्य सरकार ने इसमें संशोधन की कोशिश की किंतु महाधिवक्ता की राय नहीं मिली, कोई निर्णय नहीं लिया गया। इसलिए केंद्र सरकार द्वारा पारित कानून राज्य पर बाध्यकारी होगा। धारा 25ए दंड प्रक्रिया संहिता में निर्विवाद रूप से जोड़ा गया है। प्रदेश में इस धारा में संशोधन नहीं किया गया।
राज्य सरकार ने साधना शर्मा केस में सुप्रीम कोर्ट को लागू करने का आश्वासन भी दिया था। राज्य सरकार कानून व फैसले का सम्मान नहीं कर रही। कोर्ट ने कहा कि सरकार का यह कहना कि धारा 25ए प्रदेश में लागू नहीं है, निराधार है। कोई आफिस मेमोरंडम है तो उस पर कानून प्रभावी होगा। धारा 25 ए, 23 जून 2006 से लागू है। कोर्ट ने अपर महानिदेशक अभियोजन उप्र लखनऊ की नियुक्ति को अवैध करार दिया है।