Friday, September 20, 2024

सुप्रीम कोर्ट के मनी लॉन्ड्रिंग केस में आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका पर अब तीन अक्टूबर को होगी सुनवाई

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग केस में अपने (सुप्रीम कोर्ट) आदेश के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई टाल दी। जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने पुनर्विचार याचिका पर तीन अक्टूबर को सुनवाई करने का आदेश दिया।

 

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आज प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुनवाई टालने की मांग की। मेहता की मांग का याचिकाकर्ता के वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने विरोध किया। इसके पहले सुनवाई के दौरान सिब्बल ने कहा था कि जुलाई 2022 के आदेश में कई गलतियां हैं जिन पर दोबारा विचार करने की जरूरत है। जस्टिस उज्जवल भूईयां ने कहा था कि कोर्ट ने जिन दो मसलों की पहचान की थी उन पर विचार करने की जरूरत है। जस्टिस सीटी रविकुमार ने कहा था कि कोर्ट को ये सुनिश्चित करना होगा कि पुनर्विचार याचिका अपील का शक्ल न ले ले। केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कोई गड़बड़ी नहीं है।

पुनर्विचार याचिका दायर करनेवालों में कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 24 अगस्त 2022 को पुनर्विचार याचिका पर खुली अदालत में सुनवाई करने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने 27 जुलाई 2022 को अपने फैसले में ईडी की शक्ति और गिरफ्तारी के अधिकार को बहाल रखने का आदेश दिया था। जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली बेंच ने मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत ईडी को मिले विशेषधिकारों को बरकरार रखा था। कोर्ट ने पूछताछ के लिए गवाहों, आरोपितों को समन, संपत्ति जब्त करने, छापा डालने, गिरफ्तार करने और जमानत की सख्त शर्तों को बरकरार रखा था।

शीर्ष अदालत ने कहा था कि मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट में किए गए संशोधन को वित्त विधेयक की तरह पारित करने के खिलाफ मामले पर बड़ी बेंच फैसला करेगी। कोर्ट ने कहा था कि मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट की धारा 3 का दायरा बड़ा है। कोर्ट ने कहा था कि धारा 5 संवैधानिक रूप से वैध है। कोर्ट ने कहा था कि धारा 19 और 44 को चुनौती देने की दलीलें दमदार नहीं है। कोर्ट ने कहा था कि ईसीआईआर एफआईआर की तरह नहीं है और यह ईडी का आंतरिक दस्तावेज है। एफआईआर दर्ज नहीं होने पर भी संपत्ति को जब्त करने से रोका नहीं जा सकता है। एफआईआर की तरह ईसीआईआर आरोपी को उपलब्ध कराना बाध्यकारी नहीं है। जब आरोपी स्पेशल कोर्ट के समक्ष हो तो वह दस्तावेज की मांग कर सकता है।

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