Tuesday, April 30, 2024

कहानी पतंग की: सपनों को हवा देती उड़ान पतंग की!

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एक ओर मकर सक्रांति को दान, पुण्य एवं मोक्षदायक पर्व कहा जाता है दूसरी तरफ उत्तर भारत में विशेष तौर पर राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश आदि में यह युवाओं एवं बड़े बूढ़ों तक के लिए यह पतंग उड़ाने का महापर्व बनकर आता है।

जी हां, मकर संक्रांति का पर्व और पतंग  की कहानी एक दूसरे से जुड़ी हुई है। बच्चों की पतंग, कवि बिहारी की ‘गुड़ी अंग्रेजों की ‘लाइट अलग अलग देशों व प्रदेशों में अलग अलग नामों से जाने जाने वाली पतंग इन दिनों शबाब पर होती है । कभी चार आने में चार मिलने वाली पतंगें अब भले ही महंगाई की मार झेल रही है, फिर भी न केवल जिंदा है, अपितु ठसक के साथ उड़ान पर है।  आइए देखते हैं पतंग का भूत वर्तमान व भविष्य पतंगबाजी कें मौसम में।

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परंपरा की वाहक पतंग:  पुराने ज़माने में मनुष्य की आसमान में उडऩे की आकांक्षा को संतुष्ट करने और डोर थामने वाले की उमंगों को उड़ान देने वाली पतंग दुनिया के विभिन्न भागों में अलग-अलग मान्यताओं परम्पराओं तथा अंधविश्वास की वाहक रही है। पर, आज इसने विज्ञान के सहारे ऊंचाइंयां छू रखी हैं अब पतंग की उड़ान पूरी तरह मनोरंजन व विज्ञान की कहानी बन गई है।

2300 वर्ष पुरानी है पतंग: अगर कोई कहे कि पतंग मोदी जी ने बनाई थी तो शायद आप हंसेगें। पर यह सच है माना जाता है कि दुनिया की पहली पतंग चीनी दार्शनिक मोदी ने ईसा पूर्व तीसरी सदी में चीन में बनाई। पतंग का इतिहास लगभग 2300 वर्ष पुराना है। चीन के बाद पतंगों का प्रसार जापान, कोरिया, थाईलैंड, बर्मा, भारत, अरब, उत्तर अफ्रीका तक हुआ। यूरोप में मार्कोपोलो के आने के बाद पतंग उड़ाना शुरु हुआ।

मार्को पालों पूर्व की यात्रा से पतंग उडाने का कौशल यूरोप लाया था। उसके बाद यूरोप और फिर अमेरिका के लोगों ने वैज्ञानिक और सैन्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए पतंग का प्रयोग किया। ब्रिटेन के प्रसिद्ध वैज्ञानिक डाक्टर नीडहम ने अपनी पुस्तक ‘ए हिस्ट्री आफ  चाइनाज साइंस एण्ड टेक्नोलॉजी में पतंग को चीन द्वारा यूरोप को दी गई एक प्रमुख खोज बताया था।

संस्कृति व सभ्यता की पतंग: आसमान की ऊंचाइयों पर उडऩे वाली पतंग अनेक अनूठे प्रयोगों का सबब  रही है। डोर पर सवार उड़ती पतंग ने अपने अलग-अलग रूपों में दुनिया को न केवल एक रोमांच दिया, बल्कि यह विश्व की विभिन्न सभ्यताओं और संस्कृतियों में रच-बस गई है। पतंग भारत समेत दुनिया के अनेक देशों में आशाओं वआकांक्षाओं को बल और कल्पनाशीलता के पंख  देती है।

शगुन अपशगुन की पतंग: मानव की महत्वाकांक्षा को आसमान की ऊँचाईयों तक ले जाने वाली पतंग कहीं शगुन और अपशकुन से जुड़ी है तो कहीं ईश्वर तक अपना संदेश पहुंचाने के माध्यम के रूप में प्रतिष्ठित है। प्राचीन दंतकथाओं पर विश्वास करें तो चीन और जापान में पतंगों का उपयोग सैन्य उद्देश्यों के लिये भी किया जाता था। चीन में पतंग का अंधविश्वासों में विशेष स्थान है। वहां किन राजवंश के शासन के दौरान पतंग उड़ाकर उसे छोड़ देने को अपशकुन माना जाता था।

साथ ही किसी की कटी पतंग को उठाना भी बुरे शकुन के रूप में देखा जाता था। जबकि थाईलैंड में पतंग धार्मिक आस्थाओं के प्रदर्शन का माध्यम रही है। थाइलैंड में हर राजा की अपनी विशेष पतंग होती थी जिसे जाड़े के मौसम में भिक्षु और पुरोहित देश में शांति और खुशहाली की आशा में उड़ाते थे।थाइलैंड के लोग अपनी प्रार्थनाओं को भगवान तक पहुंचाने के लिए वर्षा ऋतु में पतंग उड़ाते थे। कोरिया में पतंग पर बच्चे का नाम और उसके जन्म कीतिथि लिखकर उड़ाया जाता था ताकि उस वर्ष उस बच्चे से जुड़ा दुर्भाग्य पतंग के साथ ही उड़ जाए।

ऐसी है उड़ान पतंग की: डोर के सहारे उडऩे वाली पतंग तब हवा में उठती है जब हवा का प्रवाह पतंग के ऊपर कम और नीचे अधिक होता है। यह दबाव हवा की दिशा के साथ डोर का खिंचाव भी उत्पन्न करता है मूलत: पतंग की उड़ान हवा के दबाव व धागे के तनाव पर  निर्भर करती है। इसमें पतंग का आकार भी मुख्य भूमिका निभाता है जो उससे बंधे धागे के खिंचने पर नीचे के हवा के दबाव को उसे ऊपर धकेलता है। पतंग आमतौर पर हवा से भारी होती है, लेकिन हैलिकाइट हवा से हल्की पतंग होती है। यह पतंग हवा के बिना भी उड़ सकती हैं। हैलिकाइट पतंगे स्थिरता सिद्धांत पर काम करती हैं क्योंकि हैलिकाइट हीलियम-स्थिर और हवा-अस्थिर होती हैं।

सृजन उड़ान पतंग की: पतंग उड़ाने का शौक चीन, कोरिया और थाइलैंड आदि दुनिया के कई अन्य भागों से होकर भारत में पहुंचा। देखते ही देखते यह शौक यहां की संस्कृति और सभ्यता में रच-बस गया। खाली समय का साथी बनी पतंग को खुले आसमान में उड़ाने का शौक बच्चों से लेकर बूढ़ों तक के सिर चढ़कर बोलने लगा। भारत में पतंगबाजी इतनी लोकप्रिय हुई कि इस पर गीत व कविताएँ तक लिखी गई। जैसे ‘ना कोई उमंग है, ना कोई तरंग है, मेरी जि़ंदगी है क्या एक कटी पतंग है …. और उड़ी उड़ी रे पतंग मेरी उड़ी रे, ‘हो के डोर पे सवार चली बादलों के पार …. और कविताओं में ‘कुछ छोटी कुछ बड़ी पतंगें, आसमान में उड़ी पतंगें ……, बच्चों की कल्पना देखिए ‘मुझको पतंग बना दे कोई, बिन पंखों मुझे उड़ा दे कोई, आसमान में जाऊंगी मैं , नहीं लौटकर आऊंगी मैं …..

कितने सारे काइट फैस्टिवल्स: दुनिया के कई देशों में पतंग उडा़ओ दिवस ‘फ्लाई ए काइट डे के रूप में मनाते हैं। जापान के हिगाशियोमी में योकाइची नामक  विशाल पतंग महोत्सव, हर वर्ष मई के चौथे रविवार को मनाया जाता है। राजस्थान में हर वर्ष मकर संक्रांति के दिन पर्यटन विभाग की ओर से तीन दिवसीय पतंगबाजी प्रतियोगिता होती है जिसमें जाने-माने पतंगबाज भाग लेते हैं। जयपुर में तो पूरे साल ही पतंग उत्सव का माहौल रहता है वहां पर करीब अस्सी पतंग क्लब हैं जिनमें नवरंग, सफर, कोहिनूर व पिंक सिटी पतंग क्लब तो काफी प्रसिद्धि पाए हुए हेैं। दिल्ली और लखनऊ में भी पतंगबाजी के प्रति काफी आकर्षण है। लखनऊ में दीपावली के अगले दिन आसमान में पतंगों की कलाबाजियां देखते ही बनती हैं। दिल्ली में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर पतंग उडाऩे का विशेष चलन है।

दिक्कतें पतंग की: एक समय मनोरंजन के प्रमुख साधनों में से एक, पतंगबाजी का शौक अब कम होता जा रहा है। समय का अभाव और खुले स्थानों की कमी तथा बढ़ती महंगाई जैसे कारणों के चलते पतंगबाजी की कला अब इतिहास में सिमटती जा रही है और कुछ विशेष दिनों में ही पतंगों के दर्शन हो पाते हैं। पर उम्मीद करें कि इन संकटों के बावजूद भी पतंग और पतंग बाजी दोनों बने और बचे रहेंगे।
-डॉ0 घनश्याम बादल

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