Tuesday, May 20, 2025

बल और बुद्धि में संतुलन जरुरी

एक बार बल और बुद्धि में विवाद हो गया। बल ने कहा,मैं बड़ा हूं। मेरे बिना कुछ भी नहीं होता। बुद्धि ने कहा, तुम किसी काम के नहीं हो। मैं बड़ी हूं। मेरे बिना तुम्हारी उपयोगिता ही क्या है? दोनों इस विषय पर उलझ गए। विवाद का निपटारा करने के लिए वे विवेक के पास पहुंचे। दोनों ने अपनी-अपनी श्रेष्ठता बताते हुए न्याय करने की प्रार्थना की। विवेक ने कहा,मेरे साथ चलो। मैं न्याय करूंगा। उसने अपने हाथ में एक हथौड़ा और लोहे की एक कील ली। वह कील मुड़ी हुई थी। विवेक उन दोनों को साथ लेकर चल पड़ा।

वे तीनों एक वृद्ध व्यििक्त के पास पहुंचे। विवेक बोला, आप समझदार हैं, बुद्धिमान और अनुभवी हैं। हमारा एक छोटा-सा काम कर दें। यह लोहे की कील टेढ़ी हो गई। आप इसे सीधी कर दें। वृद्ध ने कहा-हां कर दूंगा। विवेक ने वृद्ध के हाथ में हथौड़ा थमा दिया। वृद्ध व्यििक्त ने हथौड़ा चलाना चाहा किंतु वह उसे चला नहीं सका। उसके हाथ इस कार्य को करने में असमर्थ थे। उसने हथौड़ा लौटाते हुए कहा, भाई, यह कार्य संभव नहीं है। विवेक ने बुद्धि से कहा,देखो, बुद्धिमान होते हुए भी यह वृद्ध इस छोटे से कार्य को नहीं कर सका।

बुद्धि, बल और विवेक तीनों आगे बढ़े। विवेक ने देखा एक हट्टा-कट्टा जवान खेत में काम कर रहा है। वह शििक्तशाली था किंतु बुद्धिमान नहीं था। तीनों उस जवान के पास पहुंचे। विवेक ने कहा,भैया, तुम बहुत शििक्तशाली हो। क्या तुम हमारा एक काम कर दोगे? यह लोहे की कील टेढ़ी हो गई है। इसे सीधा करना है। तुम इस हथौड़े से इसे सीधा बना दो। जवान ने हथौड़ा हाथ में लिया। कील को रेतीले टीले पर रखा।

उस पर हथौड़े से एक जोरदार प्रहार किया। उस तेज प्रहार से खूब रेत उड़ी और सबकी आंखों में भर गई। कील भूमि के अंदर तक चली गई। विवेक ने बल से कहा, जब बल होता है, बुद्धि नहीं होती, तब यही स्थिति बनती है। बल और बुद्धि दोनों का अहंकार आहत हो उठा।

विवेक ने कहा-बलवान वही है, जिसमें बल और बुद्धि दोनों हो। जब तक मनुष्य में अपने बल और बुद्धि का घमंड रहेगा, उस पर भगवान की कृपा नहीं होगी। उसके बल की समाप्ति के बाद ही, भगवान का बल प्रारंभ होता है। भगवान को भूलकर मनुष्य कितना ही बुद्धि का विकास कर ले और कितना ही बलशाली बन जाए, उसे अपने लक्ष्य में सफलता नहीं मिल सकती।

प्रेम से पुकारने पर भगवान खुद ही दौड़े चले आते हैं। सुदामा जब बाल सखा से मिलने पहुंचे तो उनके मन में कई शंकाएं थीं। भगवान श्रीकृष्ण को पता चला कि सुदामा उनसे मिलने आए हैं तो वे सुदामा को लाने के लिए नंगे पाव दौड़ पड़े।

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