मुजफ्फरनगर। कांग्रेस जिलाध्यक्ष सुबोध शर्मा ने बजट पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि केन्द्र सरकार की वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के द्वारा आम बजट पेश किया गया, जिससे ग्रामीण परिवेश का किसान व मजदूर वर्ग अनेकों आशाएं लिए बैठा था कि सरकार के द्वारा जारी होने वाले बजट में ग्रामीण खेत मजदूर की खुशहाली की घोषणा होगी, लेकिन मोदी सरकार 3.0 के द्वारा जारी बजट में फिर से किसानों के हाथ खाली ही रह गये।बजट का कुल आकार 48 लाख करोड रुपये हैं, जिसमें से देश की अर्थव्यवस्था की सबसे मजबूत धुरी और देश को कृषि प्रधान कहलाने का दर्जा देने वाले कृषकों के हिस्से में 1.52 लाख करोड़ रुपये ही आए। इससे तो यह प्रतीत होता है कि 65 प्रतिशत किसानों की आबादी को सरकार ने सिर्फ 3 प्रतिशत बजट में ही सीमित कर दिया है।
ये ग्रामीण भारत के लिए सबसे बड़ा भेदभाव है। देश का किसान कमेरा वर्ग कई वर्षों से आन्दोलनों के माध्यम से सरकार से फसल के वाजिब दाम के लिए एमएसपी गारंटी कानून की मांग कर रहा है। अगर फसल बेचने के समय दाम की गारंटी होगी तो किसान उत्पादकता स्वयं बढ़ा देगा, लेकिन सरकार एमएसपी को गारंटी कानून का दर्जा नहीं देना चाहती जिसका इस बजट में कोई प्रावधान नहीं है। इसके साथ-साथ सी2$50 का फार्मूला हो, सम्पूर्ण कर्जमाफी, कृषि उपकरणों से जीएसटी खत्म करने, बिजली कानून व प्रत्येक किसान परिवार को 10 हजार रुपये प्रति माह पेंशन देने की मांग का भी बजट में कोई प्रावधान नहीं किया गया है।
सरकार उत्पादकता बढाने के नाम पर कारपोरेट की बडी कम्पनियों को बीज बनाने के नाम से खेती में लेकर आना चाहती है, इसीलिए सरकार ने भारत में आयात करने वाली कारपोरेट कम्पनियों पर 5 प्रतिशत तक का कर घटा दिया है। इसी से स्पष्ट होता है कि कारपोरेट को छूट देकर देश के ग्रामीण परिवेश को लूटने की एक नई योजना का निर्माण सरकार द्वारा इस बजट में किया गया है। सरकार आज बाजार पर कारपोरेट का एकाधिकार स्थापित करने के लिए पूर्ण रूप से उनकी मदद कर रही है। वित्त मंत्री ने कहा है कि निजी क्षेत्र को फंडिंग मुहैया करायी जाएगी। इसी से प्रतीत होता है कि कृषि अनुसंधानों की फेरबदल और जलवायु के नाम पर लचीली किस्मों के बीज को लाना दोनों विदेशी लाबी समूहों और बडे निगमों के एजेंडे हैं। यह बजट ग्रामीण परिवेश के लिए सिर्फ एक कागजी आंकड़ा है, जो कभी गांव में रह रहे किसान व मजदूर तक नहीं पहुंच सकता।