Friday, November 22, 2024

तीन गोली, दो शब्द और गांधी की यादें

30 जनवरी 1948, समय शाम के 5:15  बजे,अपने समय का दुनिया का सबसे बड़ा राजनीतिक चमत्कार करने वाला कृशकाय शख्स, जिसे दुनिया ने ‘महात्मा और देश ने ‘बापू कहा था अपनी रोजमर्रा की प्रार्थना के लिए बिरला हाउस पहुंचता है।  एक युवा पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेता है, नमस्ते कहता है और फिर अचानक ही तीन गोलियां दाग देता है, पहली गोली सीने में  और  दूसरी तथा तीसरी पेट में लगती है।

तीसरी गोली के साथ ही मुंह से दो शब्द निकले ‘हे राम  और वैष्णव जन तो तेनै कहिए जो पीड़ पराई जाने रे तथा रघुपति राघव राजा राम, पतित पावन सीताराम जैसी राम धुन गाकर देश को दुनिया के उस साम्राज्य से मुक्त करने वाला जिसके बारे में कहा जाता था कि उसका सूर्य कभी नहीं डूबता अपने ही देश के एक  युवा के संकीर्ण दृष्टिकोण का शिकार होकर देह से विदेह हो गया। आज उसी गांधी नाम के शख्स की पुण्यतिथि है।

आज वही 30 जनवरी है जिस दिन  दुनिया की तत्कालीन सबसे शक्तिशाली साम्राज्यवादी ताकत की गुलामी की जंजीरों से मुक्त करवाने का चमत्कारिक काम करने वाले मोहनदास करमचंद गांधी की हत्या हुई थी । अब दुनिया भर के लिए भले ही यह एक चमत्कार हो मगर आजाद होने के बाद यह देश गांधी को साल भर भी सहन नहीं कर पाया । मगर क्या नाथूराम गोडसे नाम का वह व्यक्ति भारत का प्रतिनिधि था ?  बेशक नहीं, लेकिन उसके कृत्य से देश के माथे पर एक ऐसा कलंक लगा जो आने वाली सदियों तक भी मिट नहीं पाएगा।

समय के साथ सब बदलता है, देश भी बदला है और गांधी के प्रति देश की सोच भी। एक विचारधारा ऐसी भी पनपी  है जो गोडसे की विचारधारा को उचित समझती है। मगर अभी भी इस देश में गांधी के चाहने व सराहने वाले लोगों का एक विशाल वर्ग मौजूद है जो गांधी को आज भी आधार देता है और उन्हें आज भी प्रासंगिक मानता है। बेशक, भारत में गांधी आज भी याद किए जाते हैं बावजूद इसके कि केंद्र में उस विचारधारा की सरकार है जो गांधी को उनके जीते जी सही मानती थी।

मगर आज वह भी गांधी के बताए जनता और उनकी सोच के साथ गांव के आखिरी आदमी तक पहुंचने के संकल्प के साथ चल रही है स्वच्छता को अपना मिशन बना रही है ‘वोकल फॉर लोकल के माध्यम से स्वदेशी पर जोर दे रही है । इसका साफ-साफ मतलब यह हुआ कि गांधी की विचारधारा को छोड़कर इस देश को आगे ले जाने का काम बहुत मुश्किल है और लोग मानते हैं कि गांधी आज भी प्रासंगिक हैं।

गांधी ने ऐसे वक्त में अहिंसा का अद्भुत प्रयोग किया जब दुनिया भर में ब्रिटिश हुकूमत डंडे के बल पर कितने ही देशों को गुलाम बना चुकी थी मगर गांधी ने अहिंसा के बल पर अंग्रेजों को देश छोडऩे पर विवश किया ।  हालांकि इस बात पर बहस मुबाहसे की काफी गुंजाइश है कि देश गांधी के अहिंसा की वजह से आजाद हुआ या अंग्रेजों को यहां पर रहना घाटे का सौदा लगने लगा था या इसलिए आजाद हुआ कि वें क्रांतिकारियों से डर गए थे लेकिन यदि देश ने गांधी को बापू, महात्मा और राष्ट्रपिता जैसे संबोधन दिए हैं तो इसका कुछ तो मतलब है ।

देश ही क्यों दुनिया ने गांधी को 20 वीं सदी का शताब्दी पुरुष घोषित कर इस बात पर मोहर लगाई है कि गांधी नाम का वह शख्स एक चमत्कार से कम नहीं था।
गांधी की हत्या तात्कालिक परिस्थितियों में देश पर एक गहरा आघात थी। यह त्रासद ही था कि गांधी जिस हिंसा के खिलाफ जीवन भर लड़ते रहे वें स्वयं उसी के शिकार हुए। यहां यह भी बताना समीचीन होगा कि गांधी जानते थे कि किस प्रकार आम आदमी को राष्ट्रीय महत्व के कार्यों के लिए खड़ा किया जाए।  इसके लिए वें  जनकल्याण के मुद्दों को उठाते थे और लोग उन्हें हाथों हाथ लेते थे और उनके पीछे भारी जनसमूह रहता था। यें लाखों-करोड़ों लोग ही गांधी की ताकत थे उनकी इसी ताकत के आगे ब्रिटिश हुकूमत चाह कर भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाई और अंतत: उसे जाना पड़ा।

गांधी राजनीति में ऊंचाइयों पर पहुंचने के बावजूद भी सदा धरातल से जुड़े रहे। उनका हर कदम आखिरी आदमी के कल्याण के लिए उठाया गया कदम होता था. वह जानते थे कि आम आदमी के साथ कैसे जुड़ा जाए, इसीलिए चाहते थे कि देश के लोग अपने कार्य स्वयं करें। इसका उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए वें ऐसे कार्य स्वयं करते थे, जिन्हें तात्कालिक समाज में छोटा या है समझा जाता था. गांधी जी की खास बात यह रही कि उन्होंने अपने लिए कभी भी सुख एवं समृद्धि के लिए राजनीति का इस्तेमाल नहीं किया । आज की राजनीति एवं राजनीतिज्ञों को यह बात गांधी जी से जरूर सीखनी चाहिए कि सत्ता शक्ति के प्रदर्शन का माध्यम न बने, अपने लिए सब कुछ समेटने का निमित्त न बने बल्कि निस्वार्थ सेवा तथा जनकल्याण के लिए उसका उपयोग किया जाए।

गांधीजी स्वदेशी एवं हस्त कौशल विकास पर बल देते थे। उनका मानना था कि यदि भारत के लोग स्वदेशी वस्तुओं का अधिकाधिक प्रयोग करेंगे तो यहां की अर्थव्यवस्था स्वयं सुदृढ़ हो जाएगी। भले ही समय के साथ स्वरूप बदला हो मगर वर्तमान सरकार का ‘मेक इन इंडिया और ‘स्किल डेवलपमेंट तथा वह ‘वॉकल फॉर लोकल कार्यक्रम गांधी जी के ही दर्शन का एक समय के अनुसार बदला हुआ रूप है, यानी गांधी बेकार की वस्तु नहीं हुए हैं. बस उन्हें थोड़ा सा समझने, धोने और मांजने की जरूरत है. यदि उनके दर्शन को अपनाया जाए तो बेशक देश बहुत आगे जाएगा।

गांधीजी जीवन एवं विचारों दोनों में स्वच्छता के हामी थे। वें शुचिता पर बल देते थे। सार्वजनिक जीवन में शुचिता का मतलब ही है राष्ट्रीय चरित्र में शुचिता का होना। अच्छी बात है कि वर्तमान सरकार देश की भावी पीढ़ी में क्लीन इंडिया या स्वच्छ भारत जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से यह जागरूकता पैदा कर रही है। बस, अब विचारों एवं सार्वजनिक जीवन में भी शुचिता पर जोर हो।
अस्तु स्तुति गोलियां भले ही गांधी जी के शरीर को समाप्त कर गई मगर गांधी और गांधीवाद दोनों ही आज भी सूक्ष्म रूप में जिंदा है और आज भी उपयोग एवं महत्व रखते हैं।
-डॉ घनश्याम बादल

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