आज स्वामी विवेकानन्द जी की जन्म जयंती है। इस पुनीत अवसर पर उनके विचार साझाकर उन्हें पुष्पाजंलि अर्पित की जाये। स्वामी जी ने कभी भारतवासियों से कहा था ‘पाश्चात्य देशों में आने से पहले मैं भारत को हृदय से प्रेम करता था, किन्तु अब मेरे लिए भारत की वायु यहां तक कि भारत का प्रत्येक धूलिकण स्वर्ग से भी अधिक पवित्र है। भारत भूमि वह मेरी मां है, भारत मेरा तीर्थ है।’ स्वामी विवेकानन्द जी ने सम्भ्रांत देशवासियों, युवकों और संन्यासियों से कहा ‘देखो ये भारतीय असहाय, असमर्थ, निरक्षरजन कितने सरल हृदय है। क्या तुम इनके कष्टों को कुछ भी कम न कर सकोगे? तुम अपने जीवन को दरिद्र नारायण को अर्पित कर दो।’ स्वामी विवेकानन्द योगी, तत्वदर्शी, गुरू, नेता, ज्ञानी, धर्म प्रचारक और एक महान राष्ट्र निर्माता थे। इन्होंने पाश्चात्य देशों में वहां के निवासियों के समक्ष भारतीय धर्म का खजाना खोलकर देश का सिर ऊंचा किया। 11 सितम्बर, 1893 में सर्वधर्म सम्मेलन में उद्घोष किया कि ‘मुझे ऐसे धर्मावलम्बी होने का गौरव प्राप्त है, जिसने संसार को ‘सहिष्णुता’ तथा सब धर्मों को मान्यता प्रदान करने की शिक्षा दी है तथा वसुधैव कुटम्बकम का पाठ पढ़ाया है।’ बहुजन हिताय बहुजन सुखाय का नारा विश्व को दिया।