प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि जब तक अत्यधिक क्रूरता न हो अदालतें जोड़ों के निजी सम्बंधों की जांच नहीं कर सकतीं। उनके गोपनीय क्षणों पर कोई फैसला नहीं दे सकतीं।
न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने यह टिप्पणी तलाक की मंजूरी के खिलाफ पत्नी की दायर अपील की सुनवाई करते हुए की। फिरोजाबाद की पारिवारिक अदालत ने तलाक को स्वीकार कर लिया था। इसके खिलाफ अपील कोर्ट ने अपील स्वीकार कर ली और प्रतिवादी (पति) पर 50 हजार रुपये जुर्माना लगाया।
खंडपीठ ने कहा कि जोड़े के निजी सम्बंधों का पता लगाना अदालत का काम नहीं है, जब तक उनमें अत्यधिक क्रूरता और/या भ्रष्टता न हों। जोड़े ने 1999 में शादी की थी और 11 महीने बाद ही पति ने तलाक के लिए अर्जी दायर कर दी। पारिवारिक अदालत ने 2015 में पति के पक्ष में फैसला सुनाया। इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। पत्नी का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने कहा कि विवाह विच्छेद के लिए पति की याचिका सुनवाई योग्य नहीं थी, क्योंकि यह विवाह की तारीख से एक वर्ष के भीतर दायर की गई थी।
हाईकोर्ट ने माना कि हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत शादी के एक साल के भीतर तलाक की याचिका की अनुमति नहीं है। कोर्ट ने कहा, वास्तव में प्रावधान को पूरी तरह से पढ़ने पर यह पता चलता है कि हिन्दू विवाह को भंग करने की कार्रवाई का कारण विवाह के पहले वर्ष के भीतर किसी भी पक्ष के लिए उत्पन्न नहीं हो सकता है, सिवाय ’अत्यधिक कठिनाई’ या ’अत्यधिक भ्रष्टता’ से जुड़े मामलों को छोड़कर। फिर भी, शादी के एक साल के भीतर याचिका दायर करने की अनुमति मांगने के लिए विशिष्ट आवेदन दायर करना होगा।
खंडपीठ ने पाया है कि फैमिली कोर्ट ने पत्नी की आपत्ति पर कोई निष्कर्ष नहीं निकाला है। क्रूरता को लेकर उच्च न्यायालय ने कहा कि पारिवारिक अदालत ने कानूनी कार्यवाही के दौरान पत्नी के आचरण का उल्लेख किया था और उस पर भरोसा किया था कि उसने पति के खिलाफ 3-4 मामले दायर कराए थे। कोर्ट ने कहा, तलाक देने का कोई आधार नहीं है। पत्नी को अनावश्यक मुकदमे में घसीटा गया है। पति पर 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया।