नई दिल्ली। गुजरात के आनंद जिले की एक अदालत ने एक मासूम बच्ची से दुष्कर्म और हत्या के जघन्य मामले में दोषी को ‘दोहरी मौत की सजा’ सुनाकर देशभर में सनसनी फैला दी। इस अभूतपूर्व फैसले ने आम लोगों के मन में कई सवाल खड़े कर दिए हैं। सवाल है आखिर ‘दोहरी मौत की सजा’ क्या है, यह किन परिस्थितियों में दी जाती है और इसका वास्तविक अर्थ क्या है? इन तमाम सवालों के जवाब तलाशने के लिए आईएएनएस ने सर्वोच्च न्यायालय के वकील नीरज कुमार से खास बातचीत की। नीरज कुमार ने इस सजा के कानूनी और सामाजिक पहलुओं पर विस्तार से प्रकाश डाला। नीरज कुमार ने बताया कि इस केस में दी गई दोहरी मौत की सजा का तात्पर्य यह है कि अगर आरोपी को किसी एक मामले में राहत मिल जाती है, तब भी उसे दूसरे मामले में मौत की सजा मिलेगी।
असल में इस केस में एक मामला पोक्सो (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस) एक्ट के तहत और दूसरा आईपीसी (भारतीय दंड संहिता) की धारा 376 (बलात्कार) और 302 (हत्या) के अंतर्गत है। जब इन दोनों धाराओं में अपराध ‘रेयर ऑफ द रेयरेस्ट’ (दुर्लभ में दुर्लभतम) की श्रेणी में आता है और अदालत में अपराध साबित हो जाता है, तब कोर्ट दोनों ही मामलों में मौत की सजा सुना सकती है। उन्होंने आगे समझाया कि इस सजा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अगर ऊपरी अदालत (उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय) किसी एक धारा में दोषी को बरी कर भी दे या सबूतों के अभाव में मामला कमजोर पड़ जाए, तो दूसरी धारा के तहत दी गई सजा कायम रहे और अपराधी को सजा से राहत न मिले।
जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी भी तकनीकी या सबूत संबंधी त्रुटि के कारण ऐसा जघन्य अपराध करने वाला व्यक्ति सजा से बच न पाए। नीरज कुमार ने 2004 के चर्चित धनंजय चटर्जी केस का उदाहरण दिया, जिसमें एक 15 वर्षीय किशोरी से बलात्कार और हत्या के मामले में दोषी को दोहरी मौत की सजा दी गई थी। यह वर्तमान मामले से मिलती-जुलती स्थिति थी। उस समय भी दोनों धाराओं में दोष सिद्ध हुआ था और अदालत ने यह व्यवस्था दी थी कि अपराधी किसी भी हालत में मृत्यूदंड से न बच सके। अधिवक्ता नीरज कुमार ने इस बात पर जोर दिया कि ट्रायल कोर्ट आमतौर पर तब भी सजा दे देता है जब आरोपी के खिलाफ 50 से 60 फीसदी तक दलील मजबूत हो। लेकिन, इसके बाद हाईकोर्ट में अपील की जाती है, जहां देखा जाता है कि प्रॉसिक्यूशन का केस कितना मजबूत था और क्या सजा सही तरीके से दी गई है।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वर्तमान मामले में दोषी के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 और 376 के अलावा पोक्सो एक्ट के तहत भी मुकदमा दर्ज किया गया था। दोनों ही मुकदमे अलग-अलग मामलों की तरह थे लेकिन अपराध एक ही व्यक्ति द्वारा किया गया था। क्योंकि पीड़िता नाबालिग थी, इसलिए पोक्सो लागू हुआ और फिर बलात्कार और हत्या की वजह से आईपीसी की धाराएं भी लागू की गईं। इसी वजह से अदालत ने दोनों मामलों में अलग-अलग मौत की सजा सुनाई, जिसे अंग्रेजी में ‘डबल कैपिटल पनिशमेंट’ कहा जाता है। उन्होंने आगे कहा कि वर्तमान स्थिति में दोषी के पास उच्च न्यायालय और फिर सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने का रास्ता खुला हुआ है। इसके बाद राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका का विकल्प भी रहेगा। लेकिन अगर ऊपरी अदालतों में दोनों मामलों में सजा सही मानी जाती है, तो दोहरी मौत की यह सजा कायम रहेगी।