तुम मृत्यु के दृष्टा हो। तुमने मृत्यु को अनेक बार देखा है। मृत्यु को देखने वाले, मृत्यु के दृष्टा कभी मृत्यु को प्राप्त नहीं होते। वे केवल एक यात्रा पूरी करते हैं, दूसरी यात्रा पर चल देते हैं।
मृत्यु कई बार आई और इस शरीर को झपटकर चली गई। तुम्हारी कभी मृत्यु नहीं हुई, केवल शरीर बदलते आये हैं। इस योनि से उस योनि में, फिर उस योनि से किसी अन्य योनि में। तुम आत्मा हो, तुम निर्भय हो, तुम नि:शंक हो, तुम साक्षात चैतन्य हो। तुम न कभी मरे हो न कभी मरोगे।
यह शरीर तो मरणधर्मा है, इसे तो छूट ही जाना है। इसकी तो नियति ही यही है, परन्तु तुम्हें तो उस अमरत्व को जानना चाहिए जो सत्य है, अविनाशी है, शाश्वत है। उसे जान लेंगे, उसकी प्रतिष्ठा अपने भीतर कर लेंगे, तो इन शरीरों से विभिन्न योनियों की यात्राओं से पीछा छूट जायेगा, मुक्ति हो जायेगी। तुम्हारी तुम्हारे असली घर में वापसी हो जायेगी। आत्मा परमात्मा में विलीन हो जायेगी, वही तो जीवात्मा का अंतिम लक्ष्य है।