जी हां इसी दुनिया में दिल का लेना और देना गैर कानूनी है। वह देश है जापान वहां दिल के प्रत्यारोपण के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता। ऐसा नहीं है कि जापान में दिल के मरीज हैं ही नहीं या फिर जापान में हृदय रोग के डॉक्टरों की कमी है। जापान में हृदय रोग पीडि़तों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। लेकिन कोई अपना दिल दान करना भी चाहे तो स्वीकार करने वाला कोई मिलेगा नहीं। कानून के चक्कर में कोई फंसना नहीं चाहता। प्राय: विकसित देशों में कई मनुष्य हृदय रोग से पीडि़त लोगों रक्तचाप, मानसिक अवसाद, धड़कन, दिल का दौरा पडऩा इत्यादि अन्य बीमारियां जापान में भी बड़ी तेजी से पनप रही है।
30-40 की उम्र पार करने के पश्चात दिल का रोग आदमी को जकड़ लेता है। विकसित देशों में इसकी घुसपैठ बड़ी तीव्रता से हो रही है। रोगियों की जो विकट स्थिति सामने आ रही है उसमें पेस मेकर भी बेकार साबित हो रहे हैं। बस डॉक्टर लोग पीडि़तों को एक ही इलाज बताते हैं कि दिल का प्रत्यारोपण लेकिन प्रश्न उठता है कि इतने दिल वहां से लाए जाएं। ब्रिटेन में हजारों लोग नए हृदय लगाने की वेटिंग लिस्ट में शामिल है। पिछले 5 वर्षों में 1068 लोगों को दिल प्रत्यारोपण की जरूरत थी। यदि इतने दिल मिल भी जाए तो रोगी का शरीर इसे आसानी से स्वीकार नहीं कर पाता। 273 लोग अपनी बारी का इंतजार करते हुए स्वर्ग सिधार गए।
इसके लिए रोगियों को इन्युनोसरमेंट दवाओं को लंबे समय तक प्रयोग में लाना पड़ता है। जापान के डॉक्टरों का कहना है कि जापान में दिल का लेना देना पूरी तरह वर्जित और गैर कानूनी है। वहां अंग के प्रत्यारोपण को बहुत संवेदनशील माना जाता है। आज से 10 वर्ष पूर्व वहां की एथिक्स कमेटी ने इस बात की सिफारिश की थी कि मस्तिष्क की मृत्यु (ब्रेन डैथ) को स्वाभाविक मृत्यु माना जाए। आमतौर पर हम दिल की धड़कन बंद होने पर उसे मृत्यु का सूचक मान लेते हैं लेकिन सच्चाई यह है कि इससे पहले मस्तिष्क मर जाता है।
मस्तिष्क के मरने के पश्चात उसके पुनर्जीवित होने की संभावना बहुत कम हो जाती है। ब्रेन डैथ और फड़कन के बंद होने के बीच एक अंतराल होता है। इसी अंतराल में अंगदाता का अंग निकाल लिया जाता है और उसे सुरक्षित रख लिया जाता है। इसी तरह सुरक्षित रखे गए अंग ही प्रत्यारोपण के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं परन्तु जापान के नीति बनाने वाले अधिकांश लोग दिल की धड़कन बंद होने को ही मृत्यु के रूप में स्वीकार करते हैं। डॉक्टरों का मानना है कि आज दुनिया बहुत विकसित हो चुकी है। नए-नए ढंग से आदमी के हृदय का इलाज किया जा रहा है।
अब ब्रिटेन में सूअर का हार्ट बाल्व मनुष्य में प्रत्यारोपण हो रहा है। स्विट्जरलैंड के वैज्ञानिकों ने रीढ़ की हड्डी में गाय की एनीमल एडीसनल ग्रंथि की कोशिकाओं का प्रत्यारोपण करने का सफल प्रयोग सिद्ध कर दिया है। भारत में अंग प्रत्यारोपण अधिनियम के अधीन अंग अंग प्रत्यारोपण को कानूनी मान्यता प्राप्त है तथा मस्तिष्क की मृत्यु (बैन डैथ) को स्वाभाविक मृत्यु मान लिया गया है।
भारत में इसी अधिनियम के अधीन बड़े-बड़े अस्पतालों में रोगियों के शरीर में स्वस्थ दिल का प्रत्यारोपण किया जा चुका है लेकिन जापान में दिल का लेना देना अवैध होना अपने आप में एक बड़ा प्रश्न है।
सुभाष आनंद – विभूति फीचर्स