Sunday, November 10, 2024

कानून, अदालत या बुलडोजर किससे डरते हैं अपराधी?

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगली सुनवाई तक देश में एक भी बुलडोजर कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए। हालांकि इस ऑर्डर में सड़क, रेलवे लाइन जैसी सार्वजनिक जगहों के अवैध अतिक्रमण शामिल नहीं हैं। अगली सुनवाई एक अक्टूबर को है। केंद्र सरकार ने कोर्ट के इस ऑर्डर पर सवाल उठाए हैं। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा- संवैधानिक संस्थाओं के हाथ इस तरह नहीं बांधे जा सकते। इस पर जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की बेंच ने कहा- अगर कार्रवाई दो हफ्ते रोक दी, तो आसमान नहीं फट पड़ेगा। आप इसे रोक दीजिए, 15 दिन में क्या होगा?
यहां आपको बता दें कि पीले पंजे उर्फ बुलडोजर ने अपराधियों के दिल दिमाग में पहली बार कानून व्यवस्था का वह खौफ कायम किया जिसे आजादी के बाद 75 साल में अदालत और कड़े कानून कायम करने में नाकाम हो रहे थे। दरअसल, बुलडोजर एक्शन के खिलाफ जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने 22 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। इसमें यूपी के मुरादाबाद, बरेली और प्रयागराज में हुए बुलडोजर एक्शन का भी जिक्र किया गया था। कोर्ट ने कहा कि अगले आदेश तक देश में कहीं भी मनमाने ढंग से बुलडोजर की कार्रवाई नहीं होगी। हालांकि यह सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश है। शीर्ष अदालत इस संबंध में दिशा-निर्देश जारी करेगा। देश के सभी राज्यों को इन निर्देशों का पालन करना होगा। शीर्ष अदालत ने बुलडोजर कार्रवाई के महिमा मंडन पर भी सवाल खड़ा किया। कोर्ट ने कहा यह रुकना चाहिए।
वरिष्ठ अधिवक्ता सीयू सिंह ने कहा कि हर दिन तोडफ़ोड़ हो रही है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि 2022 में नोटिस दिया गया और उसके बाद कार्रवाई की गई। इस बीच अपराध भी हुए हैं। जस्टिस गवई ने कहा कि जब 2022 में नोटिस जारी किए गए तो 2024 में जल्दबाजी क्यों? सभी राज्य सरकार को सूचित किया जाए।
जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि मैं स्पष्ट कर दूं कि हमारे निर्देश होंगे। इन्हें गाइडलाइन कहा जा रहा है। अगली तारीख तक कोर्ट की अनुमति के बिना तोडफ़ोड़ पर रोक लगाई जाए। जस्टिस जे गवई ने कहा कि हमने स्पष्ट कर दिया है कि हम अनधिकृत निर्माण के बीच में नहीं आएंगे, लेकिन कार्यपालिका न्यायाधीश नहीं हो सकती। सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए यह आदेश पारित किया। मगर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आदेश पर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि वैधानिक अधिकारियों के हाथ इस तरह से नहीं बांधे जा सकते। इस पर पीठ ने कहा कि अगर दो सप्ताह तक तोडफ़ोड़ रोक दी जाए तो आसमान नहीं गिर जाएगा।
वैसे कई लोगों को इस बात से परेशानी हो रही है कि विशेषकर भाजपा के शासन वाले राज्यों में दंगाइयों पर कड़ी कार्रवाई की जा रही है और उनकी संपत्तियों पर बुलडोजर चलाया जा रहा है। भारत में धर्म, जाति आदि के नाम पर दंगाइयों के समर्थन में खड़े होने वालों की कमी नहीं है।  यहां दर्जनों लोगों के हत्यारे आतंकी के लिए रात को तीन बजे सुप्रीम कोर्ट भी खुलवाई जा सकती है तो दंगाइयों के पैरोकारों की भला कहां कमी होगी। ऐसे ही कुछ लोगों को विशेषकर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात में दंगाइयों, अपराधियों, पत्थरबाजों की संपत्ति पर बुलडोजर चलाने से पीड़ा हो रही है।
शीर्ष अदालत में कई याचिकाएं दायर की गई हैं कि इस बुलडोजर एक्शन पर रोक लगाई जाए। केंद्र सरकार ने अदालत को साफ  शब्दों में बताया भी कि धर्म विशेष या अपराधियों की संपत्तियों के ध्वस्त करने का ‘विमर्श’ गढ़ा जा रहा है। याचिका दायर करने वाले एक भी ऐसा मामला पेश नहीं कर पाए जहां कानून का पालन किए बिना बुलडोजर चलाया गया हो। केंद्र ने यह भी याद दिलाया कि जिन लोगों के अवैध अतिक्रमण पर बुलडोजर चला है, उनमें से तो कोई अदालत में याचिका लगाने आया ही नहीं, क्योंकि उनके निर्माण वास्तव में अवैध थे और ध्वस्तीकरण की कार्रवाई उचित थी डिमोलिशन की कार्रवाई जहां हुई है, वो कानूनी प्रक्रिया का पालन करके हुई है। एक समुदाय विशेष को टारगेट करने का आरोप गलत है और गलत नैरेटिव फैलाया जा रहा है।
दरअसल कई प्रदेशों में ध्वस्त कानून व्यवस्था को कायम करने में बुलडोजर एक्शन ने अहम भूमिका निभाई है। यूपी की योगी सरकार ने उपलब्ध कानून का सहारा लेकर  माफिया और अपराधियों की संपत्ति पर बुलडोजर का  एक्शन शुरू किया। जुलाई 2020 की रात को उत्तर प्रदेश पुलिस के इतिहास में सबसे बड़ा हमला हुआ था।उस दिन रात को कानपुर के बिकरू गांव में गैंगस्टर विकास दुबे ने साथियों के साथ मिलकर 8 पुलिसकर्मियों को मौत के घाट उतार दिया था। इसके बाद बुलडोजर एक्शन में विकास दुबे के साम्राज्य को रेत खेत कर दिया गया। वहीं माफिया डॉन अतीक अहमद के कब्जे से करीब 752 करोड़ 27 लाख की संपत्ति को बुलडोजर चला कर मुक्त कराया गया। अब तक 416 करोड़ 92 लाख रुपए की संपत्ति जब्त तक की गई है। वहीं, माफिया डॉन मुख्तार अंसारी की 314 करोड़ 23 लाख की संपत्ति गैंगस्टर एक्ट में जब्त की गई है। अब तक 285 करोड़ 70 लाख की अवैध कब्जे वाली संपत्ति को बुलडोजर चलाकर मुक्त कराया गया है। संगठित अपराध को खत्म करने के लिए माफिया की अवैध कमाई से बनाई संपत्ति 14 ए के तहत जब्त की जा रही है। सभी जनपदों में अरबों की संपत्ति जब्त की जा चुकी है।दंगाइयों और माफियाओं पर नियंत्रण के लिए बुलडोजर एक्शन सबसे कारगर और सटीक साबित हुआ योगी के बुलडोजर एक्शन की सफलता को देखते हुए मध्य प्रदेश, गुजरात, हरियाणा आदि राज्यों की सरकारों ने भी इसे अपनाया है।
हालांकि माननीय सुप्रीम कोर्ट एक अक्टूबर को बुलडोजर एक्शन पर आगे की सुनवाई करेगा लेकिन यहां यह भी गौर तलब है कि यदि देश भर में अदालतें समय बद्ध तरीके से न्याय कर रहीं होती तो बुलडोजर जस्टिस अस्तित्व में ही नहीं आता।बुलडोजर एक्शन या एनकाउंटर एक्शन तभी सक्रिय होते हैं जब एक एक अपराधी के हिस्ट्रीशीटर होने और अपराध दर अपराध करने के बावजूद अदालत ऐसे दुर्दांत अपराधियों को भी दंडित करने में असफल रहती हैं और अपराधी बेल लेकर बार बार अपराध करता है। तब अदालत के लेट लतीफ न्याय से आजिज आ चुके लोगों द्वारा पुलिस मुठभेड़ में अपराधी के मारे जाने पर खुशी व्यक्त की जाती है।
सवाल उठता है कि देश में कानून है, कानून मंत्री हैं, सुप्रीम कोर्ट वाले न्याय के देवता भी हैं, सीबीआई है, तमाम जांच एजेंसी हैं फिर भी देश के सबसे चर्चित निठारी कांड की डेढ़ दर्जन गरीब बच्चियों के हत्यारों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया जाता है। क्या न्याय के देवता बताएंगे कि यदि कोहली और पंढेर इंवाल्व नहीं थे तो ये हत्याएं किसने की? क्या अदालत ने इतनी नृशंसता पूर्ण हत्याओं के लिए दोबारा जांच या साक्ष्य जुटाने के लिए कुछ निर्देश दिया? मजलूमों ने दिहाड़ी छोड़ कर सत्रह साल अदालत के चक्कर काटे फिर भी न्याय नहीं ठेंगा मिला? ऐसे कानून और अदालतों पर आम आदमी कैसे भरोसा करेगा?
आज हमारी अदालतें भ्रष्टाचार के दलदल में फंसी हैं। ये कानून की मोटी किताब थ्योरीकल ज्ञान देतीं है प्रेक्टिकल कुछ अलग होता है। वहाँ दलीलों और रूलिंग्स को गांधीजी छपे कागज बेकार कर देते हैं। अदालत और न्याय के देवता ही समूचे भ्रष्ट तंत्र के सरपरस्त बन गए है अदालत से न्याय पाना आसमान से तारे तोड़ कर लाने जितना कठिन है। कई बार तो इस दुरूह लचीली सुविधानुसार उपयोग कर लेने वाली प्रक्रिया को देखकर ऐसा अनुभव हुआ है कि शायद लोग भगवान के दरवाजे पर अर्जी लगा आते तो न्याय मिल जाता लेकिन यहां तो बोली लग रही है। पहले विवेचना अधिकारी दारोगा पैसे लेकर केस डायरी का सत्यानाश कर देता है।कहीं सजा की गुंजाइश रह भी जाए तो छोटे बड़े निचली सत्र उच्च तक सब जगह गांधी जी के फोटो के नीचे वह सब कुछ हो रहा है जिसे लिखना अदालत की अवमानना मान लिया जाएगा ।यह एक नाकाम होते व्यवस्था तंत्र का मकडज़ाल है ।मीलार्ड खुद कालेजियम से चुने गए हैं, ऐसे में बुलडोजर ही आम आदमी के लिए न्याय के फौरी तरीके बतौर स्वीकार किया जा रहा है। बुलडोजर ने उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में जहां दंगाइयों और असामाजिक तत्वों पर कानून का कोई दबाव नहीं बन पा रहा था कानून व्यवस्था कायम करने में बड़ा रोल निभाया है ,खाकी और कानून के इकबाल को जिंदा किया है इस तथ्य को सिरे से खारिज तो नहीं किया जा सकता है।
(मनोज कुमार अग्रवाल-विनायक फीचर्स)

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