मनुष्य का एक स्वभाव है आसपास होने वाली घटनाओं के द्वारा प्रेरित होना। जिस प्रकार मनुष्य अचानक होने वाली किसी घटना के वशीभूत होकर खुश हो जाता है उसी प्रकार वह डर का अनुभव भी करता है। किसी भी खौफनाक स्थिति या मौत का भय मनुष्य को भयभीत कर देता है।
मनुष्य में उत्पन्न डर का वैज्ञानिक कारण हमारे शरीर में उपस्थित एक हार्मोन है। इस हार्मोन को एड्रीनेलीन या इपीनेफ्रिन कहते हैं। जब कभी हमारे ऊपर संकट आता है, हम भय से कांपने लगते हैं, उस समय इस हार्मोन का अधिक स्राव होने लगता है। इसी कारण मनुष्य में भय के भाव दिखाई देने लगते हैं। एड्रीनेलीन मनुष्य की अरेखित पेशियों को उत्तेजित करता है।
इसके फलस्वरूप शरीर के बाहर तथा अंदर की ओर रक्त कोशिकाओं की दीवारें सिकुड़ जाती हैं जिससे रक्तचाप बढ़ता है, हृदय तेजी से धड़कने लगता है, शरीर के रोम खड़े हो जाते हैं, आंखों की पुतलियां फैल जाती हैं, पसीना अधिक आने लगता है, आंसुओं की धार लग जाती है। रक्त में थक्का बनने की प्रक्रिया तेज हो जाती है, सांस तेजी से चलने लगती है। इन सभी लक्षणों का मुख्य कारण एड्रीनेलीन का अधिक स्राव है।
एड्रीनेलीन का स्राव तेजी से होने के साथ-साथ यकृत में उपस्थित ग्लाईकोजन का ग्लूकोज में परिवर्तन भी तीव्र गति से होने लगता है। परिवर्तन ग्लूकोज मनुष्य में संकट से लडऩे की क्षमता एवं भागने की शक्ति प्रदान करता है। संकट से लडऩे की क्षमता प्रदान करने के कारण एड्रीनेलीन को संकटकालीन हार्मोन की संज्ञा दी जाती है।
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में एड्रीनेलीन का उपयोग हृदय रोगियों के उपचार में किया जाता है। रोगी की हृदय गति जब अचानक रूक जाती है, तब इसे सीधे हृदय में पहुंचाकर उसमें पुन: गति लायी जाती है। रक्त का बहाव रोकने में इसका महत्वपूर्ण योगदान है। अत: चिकित्सक मुख, नाक, गला एवं दंत चिकित्सा में एड्रीनेलीन की फुहार इन अंगों पर करते है, इससे चीर-फाड़ करते समय रक्त का बहाव रूक जाता है।