आज का इंसान अर्थात हम बहुत अधिक स्वार्थी हो गये हैं। हम केवल वह कार्य करना चाहते हैं, जिससे हमें और हमारी संतान को ही लाभ हो और शीघ्र हो। अच्छे परिणाम के लिए हम प्रतीक्षा भी नहीं करना चाहते।
श्रेयष्कर तो यह है कि हम वे कार्य करें जिनका लाभ हमें भी मिले, हमारी सन्तति को भी मिले, समाज को भी मिले तथा आने वाली पीढ़ियों को भी मिलता रहे। जो सज्जन परोपकार की भावना से कार्य करते हैं, वे निजि लाभ की चिंता नहीं करते। वास्तव में वे ही पूजनीय होते हैं।
इस सम्बन्ध में एक सच्चा दृष्टान्त प्रासांगिक होगा। अमेरिका में एक बहुत बड़ा समाजसेवी हुआ करता था जिसका नाम थाजॉन द एप्पल सीड (नाम तो जॉन था, द एप्पल सीड लोगों ने जोड़ दिया)। वह सेबों के बीज लाता था और जहां भी जाता था झोली में भरकर उन बीजों को बिखेरता रहता था। किसी ने कहा कि भाई तू रेलों में बैठता है तो खिड़की से बाहर बीज फेंकता रहता है, तांगे पर बैठता है या पैदल चलता है तब भी तू रास्ते में बीज फेंकता रहता है, परन्तु जब सेब उगकर फल देने लगेंगे तब तो तू जिंदा भी नहीं रहेगा।
इस बात पर जॉन ने उत्तर दिया कि यदि मैं जिंदा नहीं रहूंगा तो क्या बात है, मेरे बेटे, पोते खायेंगे, सारा अमेरिका खायेगा और सच में उसकी लगन का प्रताप है कि अमेरिका में जहां भी आप जायेंगे सेब के पेड़ मिलेंगे, यही भावना हम सबके भीतर होनी चाहिए। सतलोक के निर्माण में हम जीवित रहे न रहे, हमारी आने वाली पीढ़ियां तो इस सतलोक का दर्शन करेंगी।