Wednesday, May 8, 2024

क्यों बन जाता है वैवाहिक जीवन अभिशाप

मुज़फ्फर नगर लोकसभा सीट से आप किसे सांसद चुनना चाहते हैं |

कई परिवारों की लड़कियां जो आदतन किसी का आना-जाना पसंद नहीं करतीं, उन्हें निश्चय ही अपने यहां आने वाले मेहमान आंख की किरकिरी के समान लगते हैं जबकि स्वयं के घर से माता-पिता, भाई-बहन आते हैं तो उनकी खूब आवभगत होती है व फुर्सत के क्षणों में, जब पति बाहर होता है, तब उसकी व उसके परिवार की जी भर के आलोचना की जाती है।

ससुराल और मायके के सगे-संबंधियों के बीच दोहरे मापदण्ड प्राय: देखने को मिलते हैं। ऐसी स्थिति में अवश्य ही पति-पत्नी के बीच तनाव का माहौल बना रहता है। सबसे ज्यादा असमंजस की स्थिति में बेचारा पति होता है जो इधर बोले तो मरे और उधर बोले तो मरे।

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यह तो मानकर चलिये कि जब दो परिवारों के मध्य संबंध जुड़ते हैं तो प्रत्येक के मन में जिज्ञासा बनी रहती है कि वे लड़के-लड़की के यहां कुछ दिन के लिए मेहमान बन कर जायें। हालांकि मेहमान दो चार दिन से ज्यादा नहीं टिकते लेकिन घर में काम का बोझ अवश्य ही बढ़ जाता है, इसलिए पत्नी के तेवर चढ़े ही रहते हैं। कई बार घर में नौकर होने के बावजूद कुछ पत्नियां अपने घरों में खुश नजर नहीं आतीं। भले ही उन्हें काम कुछ भी न करना पड़े, तब भी वे तनावग्रस्त रहती हैं।

पत्नी भले ही लाख कमाऊ हो, लेकिन जब तक वह एक कुशल गृहिणी की भूमिका अपने पति के घर नहीं निभाती, पति उससे कदापि खुश नहीं रह सकता। हर वक्त नौकर हाजिरी में रहकर भी उस कमी को पूरा नहीं कर सकते जितना एक पत्नी अपने प्रेम व स्नेह से पति की इच्छा पूर्ण करती है। केवल कमाने का ही गर्व रखकर, गृहस्थ को खुशहाल नहीं रखा जा सकता।

पति, चाहे अपनी पत्नी की संतुष्टि के लिए या घर में शांति का माहौल बनाये रखने के लिए उसके रूख को भांप कर चले लेकिन उसके मन में अपनी पत्नी के प्रति जो क्रोध भीतर ही भीतर उसे कचोटता है, उस पर भी वह नियंत्रण रखने की कोशिश करता है लेकिन यह तभी संभव है जब पति काफी धैर्य रखने वाला हो अन्यथा गुस्सा फूटते एक क्षण भी नहीं लगता। कई बार परिस्थितियां ऐसी भी आ जाती हैं कि पत्नी सीधे तौर पर मायके जाने की धमकी दे बैठती है। तब बेचारा पति और भी दबाव में आ जाता है, चूंकि उसे बिना जग हंसाई के जिन्दगी पत्नी के साथ जो काटनी है।

शादी होने के बाद एक पत्नी के लिए अपने पति का घर व सगे संबंधी ही उसके मायके वालों से बढ़कर होते हैं व उसे अंत तक उन्हीं के बीच रहकर निभाना पड़ता है। केवल पति पर रोब जमाने व धौंस देने से कार्य नहीं चलता। अपने अहम् व दूसरों के सम्मान को कम आंकने वाली पत्नियां पति की नजर में कभी भी एक योग्य पत्नी का दर्जा नहीं पा सकती। उन्हें शायद यह मालूम नहीं कि इसके दूरगामी परिणाम क्या होंगे व वे अपने बच्चों की जिम्मेदारियां भविष्य में किस तरह से उठा पायेंगी। सगे-संबंधियों से दुराव व मनमुटाव बनाये रखना शुरू में तो अच्छा लग सकता है परन्तु लम्बे समय तक यह स्थिति नहीं बनी रह सकती। आखिर जाना तो दो परिवारों के बीच में ही पड़ता है। तब अपने पति के प्रति गलत दृष्टिकोण रखने से क्या फायदा होता है, यह उन पत्नियों को अच्छी तरह जान लेना चाहिए।

प्रश्न यह उठता है कि आखिर ऐसे व्यवहार से क्या मिलता है? पति-पत्नी एक दूसरे में समाहित होकर एक नये आत्मविश्वास से जिन्दगी की शुरूआत करते हैं लेकिन जरा-जरा सी बातों से अपने ही घर में क्लेश व तनाव उत्पन्न कर एक-दूसरे की जिन्दगी के लिए बोझ बन जातें हैं।

होना तो यह चाहिए कि पति-पत्नी दोनों एक दूसरे के परिवारों का सम्मान करना सीखें। सुख-दुख में उन्हीं से अपेक्षा रखें बल्कि समय-समय पर यदि आप बाहर हैं तो उन्हें फोन कर के आने का अनुरोध करें। आयें तो अपने कर्त्तव्य पूर्ण निष्ठा के साथ अदा करें ताकि सगे-संबंधी भी लौटकर आपकी तारीफ करना न भूलेें। इससे जो खुशी मिलती है, उसका पति-पत्नी के संबंधों पर सकारात्मक असर होता है। जीवन में मिठास तो घुलती ही है, शनै:शनै: संबंध भी प्रगाढ़ होते जाते हैं।

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