देश में ऐसे कई मंदिर हैं, जहां भगवान और देवी को प्रसन्न करने के नाम पर मूक पशुओं की बलि दी जाती है। यह प्रथा अधार्मिक है। धर्म का ऐसी हिंसा से कोई सम्बन्ध हो ही नहीं सकता।
धर्म तो अहिंसा, करूणा, सहनशीलता तथा दूसरों की रक्षा करने की शिक्षा देता है। दूसरों की रक्षा करना धर्म है और उनका वध करना महापाप है। यह बात सभी कहते हैं और मानते भी हैं कि मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है।
कोई यह समझे कि मारना सबसे बड़ा धर्म है और कोई देवी या भगवान इससे प्रसन्न होंगे तो यह सबसे बड़ा अज्ञान है, सबसे बड़ा अधर्म है। यह संसार तो भगवान का उपवन है, बगीचा है। उसने हमारे उपयोग और लाभ के लिए नाना प्रकार के जीव रूपी पुष्प खिलाये हैं।
उनकी उपयोगिता समझे और उसका लाभ उठायें, किन्तु अपने स्वार्थ के लिए उनका वध न करें। हम उनका जीवन लेने वाले कौन होते हैं। जब हम किसी को जीवन दे नहीं सकते तो जीवन लेने का अधिकार भी हमें नहीं है। भगवान किसी जीव की रक्षा करने उसे बचाने से प्रसन्न होगा। किसी जीव का वध करोगे तो उसके क्रोध के पात्र ही बनोगे।