कुछ लोग धूनियां लगाकर तपते हैं, लम्बे व्रत रखते हैं, चिल्ले लगाते हैं, पर्वतों पर नंगे रहते हैं, ठेठ सर्दी में ठन्डे जल में खड़े होकर जाप करते हैं, एक टांग पर खड़े होकर तप करते हैं।
कुछ अन्य हठ क्रियाओं द्वारा मन, इन्द्रियों के दमन का प्रयत्न करते हैं, वे अपनी ओर से जो कुछ करते हैं, जो यातनाएं सहते हैं वे सब प्रभु प्राप्ति के लिए करते हैं, किन्तु जिज्ञासु को यह बात अच्छी प्रकार समझ लेनी चाहिए कि घोर से घोर हठ क्रियाओं द्वारा न कभी मन वश में हो सकता है और न प्रभु मिलाप हो सकता है।
प्रभु प्रेम और दया की मूर्ति है, उसने अपने साथ मिलाप के लिए अति सरल, सुगम और सहज मार्ग निश्चित किया है और हम अज्ञानतावश अनके प्रकार के कष्टदायक साधनों में फंसे हुए हैं। इन हठ क्रियाओं का सम्बन्ध शरीर के साथ है, परन्तु हमारा लक्ष्य तो मन को वश में करना होना चाहिए।
अपराधी हमारा मन है, परन्तु हम सजा तन को देते हैं। इन हठ क्रियाओं से काया दुखी और जर्जर होती है, परन्तु मन की अवस्था नहीं बदलती। मन की अवस्था तो सत्कर्मों से बदलेगी। मन से द्वेष, ईर्ष्या, शत्रुता, छल-कपट, दूसरों के हक छीनने की इच्छा चोरी, बेईमानी के भाव निकाल दो। निष्ठा और पुरूषार्थ के द्वारा अपनी जीविका चलाओ। मन में पवित्रता आयेगी, आत्मा शुद्ध होगी, धीरे-धीरे प्रयास करोगे तो मन शीघ्र ही वश में हो जायेगा।